आख़िर तक – एक नज़र में
- अजमेर की अदालत ने दरगाह सर्वे की याचिका पर नोटिस जारी किया।
- याचिका में दावा किया गया कि दरगाह पहले एक शिव मंदिर थी।
- याचिकाकर्ता ने 1911 की किताब ‘Ajmer: Historical And Descriptive’ का हवाला दिया।
- किताब में महादेव मंदिर की मौजूदगी का उल्लेख है।
- मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
विवाद की पृष्ठभूमि
हाल ही में अजमेर की एक अदालत ने केंद्र सरकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), और दरगाह कमेटी को नोटिस जारी किए हैं। यह नोटिस एक याचिका के संदर्भ में है जिसमें दावा किया गया है कि अजमेर दरगाह पहले एक शिव मंदिर थी।
हर बिलास सरदा की पुस्तक के दावे
याचिकाकर्ता ने हर बिलास सरदा की 1911 में प्रकाशित पुस्तक ‘Ajmer: Historical And Descriptive’ का हवाला दिया। इस पुस्तक में एक भूमिगत तहखाने में महादेव की प्रतिमा होने की “परंपरा” का उल्लेख है।
इतिहास और प्रमाण
ब्रिटिश इतिहासकार पी.एम. करी की 1989 की पुस्तक ‘The Shrine and Cult of Mu’in al-din Chishti of Ajmer’ में भी इसी तरह के संदर्भ मिलते हैं।
दरगाह के निर्माण का इतिहास
दरगाह का निर्माण ममलूक सुल्तान इल्तुतमिश (1211-1236) के शासनकाल में हुआ था। बाद में मुगल सम्राट हुमायूं और शाहजहाँ ने इसमें कई निर्माण कार्य किए।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- अजमेर दरगाह सर्वे पर अदालती नोटिस
- याचिका में शिव मंदिर होने का दावा
- ऐतिहासिक पुस्तकों में संदर्भ
- दरगाह का निर्माण इल्तुतमिश के काल में हुआ
- अगली सुनवाई 20 दिसंबर को
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