आख़िर तक – एक नज़र में
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “भारत धर्मशाला नहीं” जो दुनिया भर के शरणार्थियों को रखे।
- अदालत ने एक श्रीलंकाई नागरिक की निर्वासन के खिलाफ याचिका खारिज कर दी।
- याचिकाकर्ता ने अपने देश में जान को खतरा बताकर निर्वासन से सुरक्षा मांगी थी।
- न्यायालय ने 140 करोड़ की आबादी का हवाला देते हुए कहा, “हम पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं।”
- अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि “भारत धर्मशाला नहीं” है। यह दुनिया भर के शरणार्थियों की मेजबानी नहीं कर सकता। यह टिप्पणी एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर आई। याचिकाकर्ता ने अपनी सजा पूरी करने के बाद निर्वासन को चुनौती दी थी।
याचिका और न्यायालय का कड़ा रुख
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने कहा, “क्या भारत को दुनिया भर के शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम पहले से ही 140 करोड़ की आबादी के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है जहां हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का मनोरंजन कर सकें।” अदालत की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है।
याचिकाकर्ता एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक था। उसने अपने गृह देश लौटने पर जान को खतरा बताते हुए निर्वासन से सुरक्षा की मांग की थी। हालांकि, पीठ याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमत नहीं हुई। न्यायाधीशों ने याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की, “किसी और देश में जाओ।” इस फैसले से श्रीलंकाई नागरिक को झटका लगा है।
मामले की पृष्ठभूमि और याचिकाकर्ता की दलीलें
शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता को 7 साल की सजा पूरी करने के तुरंत बाद निर्वासित किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया था।
आज की सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया। उन्होंने कहा कि सजा के बाद याचिकाकर्ता लगभग तीन साल से हिरासत में है। इस दौरान निर्वासन की कोई कार्यवाही शुरू नहीं की गई। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता, जो वीजा पर भारत आया था, श्रीलंका वापस भेजे जाने पर उसकी जान को गंभीर खतरा है। वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता एक शरणार्थी है। उसकी पत्नी और बच्चे पहले से ही भारत में बसे हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का कानूनी विश्लेषण और निर्णय
हालांकि, पीठ इन दलीलों से प्रभावित नहीं हुई। न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा, “यहां बसने का आपका क्या अधिकार है?” इस पर वकील ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता एक शरणार्थी है और उसका परिवार भारत में है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं हुआ है। हिरासत कानून के अनुसार थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 19 के तहत भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए आरक्षित है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने विदेशी नागरिकों के भारत में रहने के अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण स्थिति स्पष्ट की है, खासकर उन मामलों में जहां व्यक्ति आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा हो। अदालत ने अपनी टिप्पणी “भारत धर्मशाला नहीं” के माध्यम से देश की सीमाओं और संसाधनों पर दबाव का भी संकेत दिया। यह याचिका खारिज होने का एक प्रमुख कारण बना।
यह मामला उन कई मामलों में से एक है जहां विदेशी नागरिक विभिन्न कारणों से भारत में शरण या रहने की अनुमति मांगते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है। अदालत ने निर्वासन के आदेश को सही ठहराया। यह सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “भारत धर्मशाला नहीं” जो सभी शरणार्थियों को जगह दे।
- एक श्रीलंकाई नागरिक की निर्वासन के खिलाफ याचिका खारिज कर दी गई।
- याचिकाकर्ता ने यूएपीए के तहत सजा काटी थी और जान का खतरा बताया था।
- अदालत ने कहा, भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों का है।
- यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय के निर्वासन के आदेश के खिलाफ दायर किया गया था।
Discover more from Hindi News, हिंदी न्यूज़ , Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi, ताजा ख़बरें
Subscribe to get the latest posts sent to your email.