भारत में एमएसएमई प्रतिस्पर्धा: नई नीति की रूपरेखा

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भारत में एमएसएमई प्रतिस्पर्धा: नई नीति की रूपरेखा

आख़िर तक – एक नज़र में

  • नीति आयोग के सहयोग से इंस्टिट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस (IFC) ने भारत में एमएसएमई प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर एक मसौदा रिपोर्ट जारी की है।
  • यह एमएसएमई नीति दस्तावेज़ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके समाधानों पर केंद्रित है।
  • रिपोर्ट में वित्तीय पहुंचकौशल विकास, और तकनीकी उन्नयन जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की गई है।
  • क्लस्टर विकास और संस्थानों के बीच सहयोग (IFCs) को एमएसएमई की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
  • इस पहल का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में एमएसएमई क्षेत्र को और अधिक जीवंत और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है।

आख़िर तक – विस्तृत समाचार

भारत में एमएसएमई प्रतिस्पर्धा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के उद्देश्य से, इंस्टिट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस (IFC) ने नीति आयोग के लिए “एन्हांसिंग एमएसएमई कॉम्पिटिटिवनेस इन इंडिया” नामक एक महत्वपूर्ण मसौदा रिपोर्ट तैयार की है। यह एमएसएमई नीति पत्र देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के विकास और उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रोडमैप प्रस्तुत करता है।

एमएसएमई: भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़

एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधारस्तंभ हैं। ये उद्यम न केवल रोजगार सृजन में अग्रणी हैं, बल्कि उत्पादन और निर्यात में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 29.2% का योगदान देता है और देश के कुल निर्यात का लगभग 45% हिस्सा इन्हीं उद्यमों से आता है। इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र करोड़ों लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जिससे यह भारतीय अर्थव्यवस्था के समावेशी विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। उद्यम पंजीकरण पोर्टल के अनुसार, नवंबर 2023 तक पंजीकृत 3.06 करोड़ एमएसएमई में से लगभग 97.92% सूक्ष्म, 1.89% लघु और केवल 0.01% मध्यम उद्यम हैं। यह “मिसिंग मिडिल” (मध्यम उद्यमों की कमी) समस्या को उजागर करता है।

एमएसएमई के समक्ष प्रमुख चुनौतियां

रिपोर्ट में एमएसएमई के सामने आने वाली कई गंभीर चुनौतियों को रेखांकित किया गया है:

  1. औपचारिकता (Formalisation): अधिकांश एमएसएमई अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं और ऋण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। केवल 9% पंजीकृत फर्में ही अपंजीकृत रूप में शुरू होती हैं।
  2. वित्तीय पहुंच (Access to Finance): एमएसएमई के लिए ऋण प्राप्त करना एक बड़ी बाधा है। उच्च जोखिम की धारणा, संपार्श्विक की कमी और लंबी प्रक्रियाएं वित्तीय समावेशन में बाधक हैं। वित्त वर्ष 2021 में एमएसएमई ऋण की मांग ₹99 लाख करोड़ थी, जिसमें से केवल 19% ही औपचारिक स्रोतों से पूरी हुई, जिससे ₹80 लाख करोड़ का ऋण अंतर पैदा हुआ।
  3. कौशल अंतर (Skill Gap): कुशल कार्यबल की कमी नवाचार और उत्पादकता को प्रभावित करती है। 2014 और 2022 के बीच मध्यम उद्यमों में कुशल कर्मचारियों की संख्या में 19.94% की वृद्धि हुई, लेकिन अभी भी मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर है।
  4. प्रौद्योगिकी और नवाचार (Technology and Innovation): नई तकनीकों को अपनाने में एमएसएमई पीछे हैं। अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश की कमी और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में जागरूकता का अभाव उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करता है।
  5. उत्पाद विविधीकरण (Product Diversification): कमजोर ब्रांडिंग और बाजार के रुझानों की समझ की कमी के कारण एमएसएमई अपने उत्पादों का विविधीकरण नहीं कर पाते हैं।
  6. कर अनुपालन (Tax Compliance): जटिल कर संरचनाएं, विशेष रूप से जीएसटी, एमएसएमई के लिए एक चुनौती हैं। वित्त अधिनियम 2023 के नए नियम (धारा 43B(h)) ने एमएसएमई आपूर्तिकर्ताओं को 45 दिनों के भीतर भुगतान करने की आवश्यकता पर चिंता जताई है।
  7. बुनियादी ढांचा (Infrastructure): बिजली, सड़क और संचार जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी उनकी दक्षता को प्रभावित करती है।

नीतिगत सिफारिशें और समाधान

IFC की रिपोर्ट एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर कई महत्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तुत करती है:

  • वित्तीय पहुंच में सुधार:
    • क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (CGTMSE) में सुधार, जैसे गारंटी कवरेज बढ़ाना और प्रीमियम दरें कम करना।
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) को मजबूत करना और सिडबी (SIDBI) द्वारा उन्हें थोक वित्तपोषण प्रदान करना।
    • राज्य स्तर पर, टर्नओवर आवश्यकताओं के बिना ब्याज सब्सिडी योजनाएं और वैकल्पिक वित्तपोषण तंत्र (जैसे कैश-फ्लो आधारित ऋण, इक्विटी फाइनेंसिंग) को बढ़ावा देना।
  • कौशल विकास को बढ़ावा:
    • उद्योगों, शैक्षणिक संस्थानों और सरकार के बीच साझेदारी को मजबूत करना।
    • लघु, लचीले प्रशिक्षण कार्यक्रम और सूक्ष्म उद्यमों के लिए लागत-साझाकरण मॉडल बनाना।
    • आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित “कौशल जनगणना” (Skill Census) जैसी पहल को अन्य राज्य भी अपना सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार:
    • आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण (Supply Chain Integration) को मजबूत करना।
    • डिजिटल जोखिम प्रबंधन और बीमा समाधानों को प्रोत्साहित करना।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता और जागरूकता अभियान चलाना।
    • इंस्टीट्यूट फॉर कोलैबोरेशन (IFCs) की भूमिका को बढ़ाना और कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर (CFCs) को उन्नत करना।
  • बाजार पहुंच में वृद्धि:
    • निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं का विस्तार और डिजिटल व ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना।
    • उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों (जैसे सेमीकंडक्टर, बायोटेक्नोलॉजी) पर ध्यान केंद्रित करना।
    • टेक्सटाइल क्षेत्र में डिजाइन स्कूलों के साथ सहयोग और रासायनिक क्षेत्र में प्रतिभा पूल का विस्तार करना।
  • नीति निर्माण, प्रतिक्रिया और संचार:
    • राज्य सरकारों द्वारा एमएसएमई के लिए विशिष्ट और अद्यतन नीतियां बनाना।
    • नीतियों की प्रभावशीलता का निरंतर मूल्यांकन और हितधारकों के साथ नियमित परामर्श।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के एमएसएमई को सरकारी/सार्वजनिक डेटासेट में शामिल करना।

क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण

रिपोर्ट में पोर्टर के डायमंड मॉडल और क्लस्टर दृष्टिकोण का उपयोग करके क्लस्टर विकास पर जोर दिया गया है। भारत की क्लस्टर नीति को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाने की आवश्यकता है, जिसमें केवल भौगोलिक निकटता के बजाय उद्योगों के बीच प्रणालीगत संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। पांच प्रमुख क्षेत्रों – ऑटोमोटिव, टेक्सटाइल, रसायन, फार्मास्युटिकल और खाद्य प्रसंस्करण – के लिए क्लस्टर-विशिष्ट सिफारिशें दी गई हैं। उदाहरण के लिए, टेक्सटाइल क्षेत्र में मूल्यवर्धन के लिए रेडीमेड गारमेंट्स जैसे डाउनस्ट्रीम गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया गया है।

यह व्यापक एमएसएमई नीति मसौदा भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को न केवल उनकी वर्तमान चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा, बल्कि उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास इंजन के रूप में उनकी वास्तविक क्षमता को प्राप्त करने में भी सक्षम बनाएगा। उद्यमिता विकास और तकनीकी उन्नयन इस परिवर्तन के मूल में होंगे।


आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें

  • यह रिपोर्ट भारत में एमएसएमई प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए नीति आयोग और IFC की एक महत्वपूर्ण पहल है।
  • एमएसएमई नीति में वित्तीय पहुंचकौशल विकासतकनीकी उन्नयन, और क्लस्टर विकास पर व्यापक ध्यान दिया गया है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की “मिसिंग मिडिल” समस्या और औपचारिकता की कमी प्रमुख चिंताएं हैं।
  • रिपोर्ट में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एमएसएमई के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की सिफारिश की गई है।
  • इसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में एमएसएमई की भूमिका को मजबूत करना और उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है।

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