आख़िर तक – एक नज़र में
- सरकार संसद सत्र में “एक देश, एक चुनाव” बिल पेश करने की तैयारी में है।
- इस बिल का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है।
- इसे पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर कैबिनेट से मंजूरी मिली।
- बिल पर चर्चा के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाई जाएगी।
- आम जनता और विशेषज्ञों से सुझाव लेकर इसे व्यापक सहमति से लागू करने की योजना है।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
क्या है “एक देश, एक चुनाव” बिल?
“एक देश, एक चुनाव” बिल का उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है। यह न केवल चुनावी खर्चों को कम करेगा, बल्कि प्रशासनिक व्यवधानों को भी सीमित करेगा।
कैबिनेट की मंजूरी और अगला कदम
बिल को हाल ही में कैबिनेट से मंजूरी मिली है, जो राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर आधारित है। सरकार ने इसे संसद के मौजूदा सत्र या आगामी सत्र में पेश करने का संकेत दिया है।
जेपीसी का गठन और परामर्श प्रक्रिया
इस बिल पर गहन चर्चा और सहमति के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाएगा। यह समिति सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करेगी।
सभी पक्षों को शामिल करना
सरकार ने इस बिल के लिए व्यापक विचार-विमर्श की योजना बनाई है। सभी राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों, विशेषज्ञों, और नागरिक समाज के सदस्यों से सुझाव मांगे जाएंगे।
चुनौतीपूर्ण मुद्दे और संभावित बहस
हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव की आलोचना की है। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने इसे संविधान पर “सीधा हमला” करार दिया। इसके विपरीत, भाजपा नेता गौरव भाटिया ने इसे समय और संसाधन बचाने वाला कदम बताया।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- “एक देश, एक चुनाव” बिल चुनावी खर्च और व्यवधान को कम करने का प्रस्ताव देता है।
- जेपीसी द्वारा व्यापक चर्चा और सार्वजनिक सुझाव लिए जाएंगे।
- बिल के फायदे और चुनौतियों पर विचार कर राष्ट्रीय सहमति बनाई जाएगी।
- यह प्रस्ताव राजनीति में सुधार का एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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