गोवा भोग भूमि नहीं, अब योग-गोमाता भूमि: प्रमोद सावंत

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गोवा भोग भूमि नहीं, अब योग-गोमाता भूमि: प्रमोद सावंत

आख़िर तक – एक नज़र में

  • गोवा भोग भूमि नहीं, अब योग भूमि और गो-माता भूमि है – मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का बड़ा बयान।
  • राज्य अब “सूर्य, रेत और समुद्र” से अधिक अपने मंदिरों और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध हो रहा है।
  • यह बात मुख्यमंत्री ने सनातन संस्था के ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’ में कही।
  • सावंत ने गोवा को भगवान परशुराम की भूमि भी बताया, इसकी आध्यात्मिक जड़ों को उजागर किया।
  • मुख्यमंत्री का जोर गोवा की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने पर है।

आख़िर तक – विस्तृत समाचार

गोवा की पहचान में ‘सनातन’ बदलाव: मुख्यमंत्री का दृष्टिकोण

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि गोवा अब केवल “भोग भूमि” (आनंद की भूमि) नहीं है। राज्य की पहचान में एक बड़े बदलाव का संकेत दिया गया। मुख्यमंत्री का मानना है कि गोवा “योग भूमि” (भक्ति और योग की भूमि) और “गो-माता भूमि” (गायों की भूमि) के रूप में उभर रहा है। तटीय राज्य अब अपने “सूर्य, रेत और समुद्र” के बजाय अपने मंदिरों और संस्कृति के लिए अधिक लोगों को आकर्षित कर रहा है। मुख्यमंत्री का यह बयान दिखाता है कि गोवा भोग भूमि नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक छवि को पुनः स्थापित कर रहा है।

सनातन संस्था के मंच से उद्घोष

मुख्यमंत्री सावंत शनिवार को एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। यह ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’ का उद्घाटन समारोह था। उन्होंने कहा, “पहले, जब भी लोग गोवा आते थे, वे सोचते थे कि यह भोग भूमि है।” उन्होंने आगे स्पष्ट किया, “लेकिन, यह गोवा भोग भूमि नहीं, यह योग भूमि है।” मुख्यमंत्री ने इसे “गो-माता भूमि” भी कहा। उन्होंने उल्लेख किया, “…यहां सनातन संस्था का आश्रम भी है।” यह संस्था गोवा में आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र है।

भगवान परशुराम की भूमि

मुख्यमंत्री सावंत ने भगवान विष्णु के अवतार का उल्लेख किया। भगवान परशुराम ने गोवा का निर्माण किया था। पौराणिक कथा के अनुसार, उन्होंने अरब सागर में एक तीर चलाया था। इससे समुद्र पीछे हट गया और गोवा भूमि का उदय हुआ। मुख्यमंत्री सावंत ने कहा: “यह भगवान परशुराम की भूमि है।” मुख्यमंत्री सावंत सनातन संस्था के संस्थापक जयंत अठावले की 83वीं जयंती पर बोल रहे थे। यह संदर्भ गोवा की प्राचीन आध्यात्मिक जड़ों को दर्शाता है।

मंदिरों और संस्कृति की ओर बढ़ता रुझान

सावंत ने कहा कि राज्य के स्वच्छ और सुंदर मंदिर अधिक लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। यह समुद्र तटों की तुलना में अधिक है। समाचार एजेंसी पीटीआई ने यह रिपोर्ट दी। उन्होंने कहा, “अतीत में, लोग सूर्य, रेत और समुद्र देखने गोवा आते थे।” मुख्यमंत्री ने आगे कहा, “अब वह बदल गया है। पर्यटक हमारी समृद्ध संस्कृति और भव्य मंदिरों का अनुभव करने यहां आ रहे हैं।” सावंत का मानना है कि गोवा भोग भूमि नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है। राज्य में पर्यटन का स्वरूप बदल रहा है।

मंदिरों का सामुदायिक प्रबंधन

उन्होंने आगे उल्लेख किया कि गोवा में मंदिरों का प्रबंधन सरकार द्वारा नहीं किया जाता है। इनका प्रबंधन स्थानीय समुदायों द्वारा किया जाता है। इन समुदायों ने सदियों पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं को बनाए रखा है। उन्होंने कहा, “राज्य में मंदिरों के प्रबंधन में सरकार की कोई संलिप्तता नहीं है।” यह गोवा की अनूठी सांस्कृतिक व्यवस्था को दर्शाता है।

सनातन संस्था की प्रशंसा

मुख्यमंत्री ने सनातन संस्था की भरपूर प्रशंसा भी की। यह संस्था उत्तरी गोवा के रामनाथी गांव में स्थित है। उन्होंने कहा कि संस्था लोगों में आध्यात्मिक जागरूकता ला रही है। यह लोगों को सनातन धर्म के बारे में अधिक सिखा रही है। मुख्यमंत्री का यह दृष्टिकोण गोवा की पहचान को एक नई दिशा देता है, जहाँ गोवा भोग भूमि नहीं बल्कि आध्यात्मिकता का केंद्र बने। यह राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है।


आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें

  • मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के अनुसार, गोवा भोग भूमि नहीं, बल्कि अब “योग भूमि” और “गो-माता भूमि” है।
  • राज्य की पहचान बदल रही है; पर्यटक अब “सूर्य, रेत और समुद्र” के बजाय मंदिरों और संस्कृति के प्रति आकर्षित हो रहे हैं।
  • सावंत ने गोवा को भगवान परशुराम की भूमि बताते हुए इसकी प्राचीन आध्यात्मिक विरासत पर प्रकाश डाला।
  • उन्होंने सनातन संस्था की सनातन धर्म के प्रचार और आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने में भूमिका की सराहना की।
  • गोवा के मंदिरों का प्रबंधन सरकार नहीं, बल्कि स्थानीय समुदाय करते हैं, जो सदियों पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं।

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