आख़िर तक – एक नज़र में
- चीन की DeepSeek AI ने अमेरिकी AI चैटबॉट्स को पीछे छोड़कर अमेरिका में H-1B वीज़ा पर बहस छेड़ दी।
- अमेरिकी विशेषज्ञों का दावा है कि घरेलू प्रतिभा को नज़रअंदाज़ करने से अमेरिका पीछे रह गया।
- MAGA समर्थक और ट्रंप समर्थक H-1B भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका छोड़ने की मांग कर रहे हैं।
- अमेरिका ने 1990 में H-1B वीज़ा शुरू किया था ताकि श्रेष्ठ विदेशी प्रतिभा को आकर्षित किया जा सके।
- विशेषज्ञों का मानना है कि H-1B वीज़ा ने अमेरिकी टेक उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाए रखा है।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
H-1B वीज़ा पर क्यों हो रही है बहस?
चीन की DeepSeek R1 AI ने ChatGPT जैसी अमेरिकी AI टेक्नोलॉजी को पीछे छोड़ दिया, जिससे अमेरिका में H-1B वीज़ा कार्यक्रम पर नई बहस छिड़ गई है। कई अमेरिकी विशेषज्ञों और राष्ट्रवादियों का कहना है कि अमेरिकी कंपनियों ने अपनी घरेलू प्रतिभा की उपेक्षा की, जबकि चीन ने स्थानीय विशेषज्ञों की मदद से एक मजबूत AI सिस्टम तैयार किया।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक और MAGA समर्थक लंबे समय से H-1B वीज़ा पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिकी नौकरियों पर भारतीय और चीनी पेशेवरों का कब्जा हो गया है, जिससे अमेरिकी टैलेंट को नुकसान हो रहा है।
H-1B वीज़ा की शुरुआत और उद्देश्य
H-1B वीज़ा कार्यक्रम 1990 में जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश प्रशासन के दौरान शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य अमेरिका में विशेष तकनीकी और वैज्ञानिक कौशल वाले विदेशी पेशेवरों को लाना था। अमेरिकी श्रम विभाग के अनुसार, इस वीज़ा की मदद से उन क्षेत्रों में भर्ती होती है, जहां अमेरिकी श्रमिकों की कमी होती है।
हालांकि, अब इस कार्यक्रम को लेकर विवाद बढ़ गया है। DeepSeek AI की सफलता के बाद कई अमेरिकी विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि क्या H-1B भारतीय कर्मचारियों को हटाने से अमेरिका अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकता है?
अमेरिका में H-1B का प्रभाव और आलोचना
H-1B वीज़ा का सबसे अधिक लाभ भारतीय पेशेवरों को मिला है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, H-1B आवेदकों में 75% भारतीय होते हैं, जबकि 12% चीनी होते हैं। कई अमेरिकी राष्ट्रवादियों का कहना है कि भारतीय कर्मचारियों को सस्ते श्रम के रूप में उपयोग किया जाता है और इससे अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों को खतरा है।
एक अमेरिकी सोशल मीडिया यूजर ने लिखा,
“DeepSeek AI की सफलता बताती है कि अमेरिका को H-1B भारतीयों की ज़रूरत नहीं है। चीन ने भारतीयों के बिना AI टेक्नोलॉजी में जीत हासिल कर ली।”
हालांकि, इस दावे को कई विशेषज्ञ भ्रमपूर्ण मानते हैं। एक भारतीय टेक विशेषज्ञ ने जवाब दिया,
“H-1B वीज़ा कार्यक्रम ने अमेरिका को बेहतरीन इंजीनियर और वैज्ञानिक दिए हैं। भारतीय इंजीनियरों ने सिलिकॉन वैली को दुनिया की टेक राजधानी बनाया है।”
H-1B वीज़ा अमेरिका के लिए क्यों ज़रूरी है?
अमेरिकी कंपनियों के लिए H-1B वीज़ा बेहद महत्वपूर्ण रहा है। Economic Policy Institute के अनुसार, 60% विदेशी कर्मचारी अमेरिकी कर्मचारियों की तुलना में कम वेतन पर काम करते हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियां लागत बचा पाती हैं और प्रतिस्पर्धी बनी रहती हैं।
टेक उद्योग में भारतीयों की भूमिका भी अहम रही है। Google के सुंदर पिचाई, Microsoft के सत्य नडेला, IBM के अरविंद कृष्णा, और Micron Technology के संजय मेहरोत्रा सभी H-1B वीज़ा के तहत अमेरिका आए थे।
इसलिए, सिर्फ DeepSeek AI की सफलता के आधार पर H-1B वीज़ा की आलोचना करना तर्कसंगत नहीं है।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- चीन की DeepSeek AI की सफलता के बाद अमेरिका में H-1B वीज़ा पर बहस छिड़ गई।
- ट्रंप समर्थक H-1B भारतीयों को अमेरिका से निकालने की मांग कर रहे हैं।
- 1990 में शुरू हुआ H-1B कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
- भारतीय पेशेवरों ने अमेरिका की टेक इंडस्ट्री को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि H-1B कार्यक्रम को समाप्त करना अमेरिका के लिए नुकसानदायक होगा।
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