आख़िर तक – एक नज़र में
- महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी से प्रयागराज में शुरू होगा।
- यह मेला हर 12 वर्षों में ज्यूपिटर की विशेष स्थिति में आयोजित होता है।
- महाकुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इसका संबंध ग्रहों की ऊर्जा और जैव-चुंबकत्व से है।
- इस बार ज्यूपिटर, शुक्र, शनि, और मंगल जैसे ग्रहों की उपस्थिति खगोलीय घटना को खास बनाएगी।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
महाकुंभ 2025 का प्रारंभ
महाकुंभ 2025, 13 जनवरी से प्रयागराज में शुरू होगा। यह आयोजन केवल धार्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि खगोल विज्ञान और जैव-ऊर्जा के पहलुओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
समुद्र मंथन और महाकुंभ का पौराणिक महत्व
महाकुंभ की कहानी समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से उत्पन्न होती है। इसके अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
ज्योतिष और ग्रहों का महत्व
महाकुंभ का समय और स्थान ग्रहों की विशेष स्थिति पर आधारित है। विशेष रूप से, गुरु ग्रह (ज्यूपिटर) का 12-वर्षीय चक्र और सूर्य-चंद्रमा की स्थिति इस आयोजन को शुभ बनाती है। जनवरी 2025 में, गुरु और अन्य ग्रहों की विशेष स्थिति मेले के दौरान ऊर्जा को बढ़ाएगी।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
महाकुंभ की परंपरा प्राचीन विज्ञान और खगोल शास्त्र का उदाहरण है। शोध से पता चला है कि ग्रहों की स्थिति मानव शरीर पर जैव-चुंबकीय प्रभाव डालती है। इस दौरान कई लोग मानसिक शांति और ऊर्जा में वृद्धि अनुभव करते हैं। प्रयागराज जैसे स्थान, जो भू-चुंबकीय ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध हैं, आध्यात्मिक विकास के लिए आदर्श माने गए हैं।
खगोलीय घटनाएं
इस वर्ष, गुरु ग्रह दिसंबर 2024 में विरोध स्थिति में था, जिससे यह रात के आकाश में सबसे चमकीला दिखाई दिया। जनवरी 2025 में, शुक्र, शनि और मंगल ग्रह भी इस खगोलीय उत्सव को और अद्वितीय बनाएंगे।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा।
- यह आयोजन पौराणिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक पहलुओं का अद्वितीय संगम है।
- ग्रहों की स्थिति मानव शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
- यह आयोजन भारत की प्राचीन परंपराओं और खगोल शास्त्र की गहराई को दर्शाता है।
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