॥ शिव ताण्डव स्तोत्रम् ॥
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥
जटा टवी गलज् जल प्रवाह पावितस्थले (पावित: थले)
गले अवलंब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
डमड् डमड् डमड् डमन्नि नाद वड्ड मर्वयं
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥
उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,
और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,
और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,
भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।॥1॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥2॥
जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि।
धगद धगद धगज् ज्वल ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥2॥
मेरी शिव में गहरी रुचि है,
जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है,
जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं?
जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,
और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।॥2॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥3॥
धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फ़ुरद दिगंत सन्तति प्रमोद मान मानसे।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धर आपदि
क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि॥3॥
मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,
अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,
जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,
जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,
और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।॥3॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो
विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥4॥
जटा भुजंग पिंगल स्फुरत् फ़णा मणि प्रभा
कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्त दिग् वधू मुखे।
मदान्ध सिन्धुर स्फुरत्त् त्व गुत्तरीय मेदुरे (त्वग उत्तरीय मेदुरे)
मनो विनोद मद्भूतं बिभर्तु भूत भर्तरि॥4॥
मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,
उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,
ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,
जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।॥4॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक:
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥5॥
सहस्रलोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर-
प्रसून धूलि धोरणी विधू सराङ्ग़ ध्रि पीठभूः।
भुजङ्ग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः॥5॥
भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
जिनका मुकुट चंद्रमा है,
जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,
जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,
जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।॥5॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः॥6॥
ललाट चत्वर ज्वलद् धनञ्जय स्फु लिङ्गभा-
निपीत पञ्च सायकं नमन्नि लिम्प नायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराज मान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटाल मस्तु नः॥6॥
शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,
जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,
जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,
जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।॥6॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्-
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥7॥
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज् ज्वल्ल् (ज्वल्ल्द)
धनंजय आहुतिकृत प्रचण्ड पञ्च सायके।
धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रति र्मम॥7॥
मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,
जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,
उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,
वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,
सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।॥7॥
नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमःप्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः॥8॥
नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्-
कुहू निशी थिनी तमः प्रबन्धबद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद धुरंधर:॥8॥
भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,
जिनकी शोभा चंद्रमा है,
जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,
जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।॥8॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥9॥
प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा-
वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिद आन्धकच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे॥9॥
मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,
पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,
जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।॥9॥
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥10॥
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधु व्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे॥10॥
मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं
शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः॥11॥
जय त्वद भ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्गम अश्वस (अश्वसद्-)
विनिर् गमत् क्रम स्फ़ुरत कराल भाल हव्य वाट।
धिमिद धिमिद धिमिद् ध्वन मृदंग तुङ्ग मङ्गल-
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥11॥
शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड
तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,
जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,
गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो-
र्वरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥12॥
दृषद् विचित्र तल्पयोर् भुज़ँग मौक्ति कस्रजोर्-
गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद् विपक्ष पक्षयोः।
तृणार विन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः
सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥12॥
मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,
जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,
घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,
सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,
सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?॥12॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मञ्जलिं वहन्।
विलोल लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,
अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,
अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,
महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?॥13॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥14॥
इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत् मौत्तमम स्तवं
(इमं हि नित्यम एवं उक्तम उत्मोत्तमम स्तवं)
पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धि मेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥14॥
इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,
वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।
इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।
बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।॥14॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं
सदैवसुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥15॥
पूजावसान (पूजा अवसान) समये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजन परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्रतुरङ्ग युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥15॥
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं विभुंव्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पंनिरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥1॥
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयंगिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालंगुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥2॥
तुषाराद्रिसङ्काशगौरं गभीरंमनोभूतकोटिप्रभाश्रीशरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गालसद्भालबालेन्दुकण्ठे भुजङ्गा॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालंप्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियंशङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भंपरेशमखण्डमजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिंभजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥
कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी प्रसीदप्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दंभजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्तिसन्तापनाशंप्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजांनतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघतातप्यमानं प्रभोपाहि आपन्नमामीश शम्भो॥8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तंविप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्यातेषां शम्भुः प्रसीदति॥9॥
॥ इति श्रीरामचरितमानसे उत्तरकाण्डे श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
॥ श्रीशिवरक्षास्तोत्रम् ॥
॥ विनियोग ॥
श्री गणेशाय नमः॥
अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः॥
श्री सदाशिवो देवता॥ अनुष्टुप् छन्दः॥
श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः॥
॥ स्तोत्र पाठ ॥
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥1॥
गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥2॥
गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः।
नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषण॥3॥
घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः॥4॥
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्॥5॥
हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः॥6॥
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।
उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः॥7॥
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।
चरणौ करुणासिंधुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः॥8॥
एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्॥9॥
ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्॥10॥
अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्॥11॥
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत॥12॥
॥ इति श्रीयाज्ञवल्क्यप्रोक्तं शिवरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
भगवान शिव का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
शिवो महेश्वरः शम्भुःपिनाकी शशिशेखरः।
वामदेवो विरूपाक्षःकपर्दी नीललोहितः॥1॥
शङ्करः शूलपाणिश्चखट्वाङ्गी विष्णुवल्लभः।
शिपिविष्टोऽम्बिकानाथःश्रीकण्ठो भक्तवत्सलः॥2॥
भवः शर्वस्त्रिलोकेशःशितिकण्ठः शिवाप्रियः।
उग्रः कपालीकामारिरन्धकासुरसूदनः॥3॥
गङ्गाधरो ललाटाक्षःकालकालः कृपानिधिः।
भीमः परशुहस्तश्चमृगपाणिर्जटाधरः॥4॥
कैलासवासी कवचीकठोरस्त्रिपुरान्तकः।
वृषाङ्को वृषभारूढोभस्मोद्धूलितविग्रहः॥5॥
सामप्रियः स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः।
सर्वज्ञः परमात्मा चसोमसूर्याग्निलोचनः॥6॥
हविर्यज्ञमयः सोमःपञ्चवक्त्रः सदाशिवः।
विश्वेश्वरो वीरभद्रोगणनाथः प्रजापतिः॥7॥
हिरण्यरेता दुर्धर्षोगिरीशो गिरिशोऽनघः।
भुजङ्गभूषणो भर्गोगिरिधन्वा गिरिप्रियः॥8॥
कृत्तिवासाः पुरारातिर्-भगवान् प्रमथाधिपः।
मृत्युञ्जयः सूक्ष्म-तनुर्जगद्व्यापी जगद्गुरुः॥9॥
व्योमकेशो महासेनजनकश्चारु विक्रमः।
रुद्रो भूतपतिःस्थाणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बरः॥10॥
अष्टमूर्तिरनेकात्मासात्त्विकः शुद्धविग्रहः।
शाश्वतः खण्डपरशुरजःपाशविमोचकः॥11॥
मृडः पशुपतिर्देवोमहादेवोऽव्ययो हरिः।
पूषदन्तभिदव्यग्रोदक्षाध्वरहरो हरः॥12॥
भगनेत्रभिदव्यक्तःसहस्राक्षः सहस्रपात्।
अपवर्गप्रदोऽनन्तस्तारकःपरमेश्वरः॥13॥
॥ इति श्रीशिवाष्टोत्तरशतदिव्यनामामृतस्त्रोत्रं सम्पूर्णम् ॥
भगवान शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी।बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण॥
नीलकंठ महादेव मंत्र
ॐ नमो नीलकंठाय।
दक्षिणामूर्ति शिव मंत्र
ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये।
मह्यं मेधं प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा॥
मृत्युंजय महादेव मंत्र
ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहि मां शरणगतम्।
जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधिपीडितं कर्मबन्धनैः॥
शिव गायत्री मंत्र
ॐ महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धीमहि
तन्नः शिवः प्रचोदयात्॥
रूद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव मूल मंत्र
ॐ नमः शिवाय॥
महा शिवरात्रि षोडशोपचार पूजा विधि
महा शिवरात्रि और भगवान शिव से संबंधित अन्य अवसरों के दौरान पुराणिक मंत्रों के जाप के साथ पूरे सोलह अनुष्ठानों के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है। सभी 16 अनुष्ठानों के साथ देवी-देवताओं की पूजा करना षोडशोपचार पूजा (षोडशोपचार पूजा) के रूप में जाना जाता है।
- ध्यानम्
- संकल्पः
- आवाहनम्
- आसनम्
- पाद्यम्
- अर्घ्यम्
- आचमनीयम्
- स्नानम्
- वस्त्रम्
- यज्ञोपवीतम्
- गन्धः
- पुष्पाणि
- धूपम्
- दीपः
- नैवेद्यम्
- ताम्बूलम्
- दक्षिणा
- नीराजनम् / आरती
- फलम्
- प्रदक्षिणा
- नमस्कारः
- मन्त्रपुष्पाञ्जलिः
- प्रार्थना
आइए उपर्युक्त सभी अनुष्ठानों को मंत्रसहित विस्तार से जानें:
1. ध्यानम्
पूजा की शुरुआत भगवान शिव के ध्यान से करनी चाहिए। ध्यान अपने सामने शिव की छवि या मूर्ति के सामने करना चाहिए। भगवान शिव का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए।
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः ध्यानात् ध्यानं समर्पयामि।
2. सङ्कल्पः
भगवान शिव का ध्यान करने के बाद, मूर्ति के सामने निम्नलिखित मंत्र का जाप करके पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
श्री शिव संकल्प मंत्र
ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे
जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे अमुक-प्रदेशे अमुक-पुण्य-क्षेत्रे कलियुगे
कलि-प्रथम-चरणे अमुक-सम्वत्सरे अमुक-मासे अमुक-पक्षे
अमुक-तिथौ अमुक-वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक-नाम-अहं
मम पापक्षयार्थम् अक्षयमोक्षभोगप्राप्त्यर्थं शिवरात्रिव्रतं करिष्ये।
3. आवाहनम्
भगवान शिव का ध्यान करने के बाद, मूर्ति के सामने आवाहन मुद्रा (आवाहन मुद्रा दोनों हथेलियों को जोड़कर और दोनों अंगूठों को अंदर की ओर मोड़कर बनाई जाती है) दिखाकर निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए।
श्री शिव आवाहन मंत्र
ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥
आगच्छ देवदेवेश मर्त्यलोकहितेच्छया।
पूजयामि विधानेन प्रसन्नः सुमुखो भव॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः देवेशम् आवाहयामि।
4. आसनम्
भगवान शिव का आह्वान करने के बाद, अंजलि में पांच फूल लें (दोनों हाथों की हथेलियां जोड़कर) और उन्हें मूर्ति के सामने छोड़ दें और निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को आसन दें।
श्री शिव आसन मंत्र
पुरुष एवेदगं सर्वम् यद्भूतं यच्छ भव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानः यदन्नेनातिरोहति॥
सदासनं कुरु प्राज्ञ निर्मलं स्वर्णनिर्मितम्।
भूषितं विविधै रत्नैः कुरु त्वं पादुकासनम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः आसनं कल्पयामि।
5. पाद्यम्
आसन अर्पण के पश्चात श्री शिव को जल अर्पित करें तथा निम्न मंत्र का जाप करते हुए पैर धोएं।
श्री शिव पद्य मंत्र
एतावानस्य महिमा अतो ज्यायागंश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम्।
तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः पाद्यं समर्पयामि।
6. अर्घ्यम्
षोडशोपचारान्तर्गत अर्घ्यम्
पाद्य अर्पण के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को जल अर्पित करें।
श्री शिव अर्घ्य मंत्र
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवात्पुनः।
ततो विश्वङ्व्यक्रामत् साशनानशने अभि॥
गन्धोदकेन पुष्पेण चन्दनेन सुगन्धिना।
अर्घ्यं गृहाण देवेश भक्तिं मे ह्यचलां कुरु॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
(अथ प्रहरानुसारम् अर्घ्यम् – प्रथमप्रहरे अर्घ्यम्)
अर्घ्य अर्पित करने के बाद दिन के प्रहर के अनुसार भगवान शिव को अर्घ्य अर्पित करें। निम्न मंत्र पढ़ते हुए प्रथम प्रहर का अर्घ्य दें।
प्रथम प्रहार अर्घ्य मंत्र
नमः शिवाय शान्ताय सर्वपापहराय च।
शिवरात्रौ मया दत्तं गृहाणार्घ्यं प्रसीद मे॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः प्रथमप्रहरस्य अर्घ्यं समर्पयामि।
द्वितीयप्रहरे अर्घ्यम्
पहले प्रहर के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को दूसरे प्रहर का अर्घ्य अर्पित करें।
द्वितीया प्रहर अर्घ्य मंत्र
मया कृतान्यनेकानि पापानि हर शङ्कर।
गृहाणार्घ्यम् उमाकान्त शिवरात्रौ प्रसीद मे॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः द्वितीयप्रहरस्य अर्घ्यं समर्पयामि।
तृतीयप्रहरे अर्घ्यम्
दूसरे प्रहर के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को तीसरा प्रहर अर्घ्य अर्पित करें।
तृतीया प्रहर अर्घ्य मंत्र
दुःखदारिद्र्यभावैश्च दग्धोऽहं पार्वतीपते।
मां वै त्राहि महादेव गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः तृतीयप्रहरस्य अर्घ्यं समर्पयामि।
चतुर्थप्रहरे अर्घ्यम्
तीसरे प्रहर के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को चौथे प्रहर का अर्घ्य अर्पित करें।
चतुर्थ प्रहर अर्घ्य मंत्र
किं न जानासि देवेश तावद्भक्तिं प्रयच्छ मे।
स्वपादाग्रतले देव दास्यं देहि जगत्पते॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः चतुर्थप्रहरस्य अर्घ्यं समर्पयामि।
7. आचमनीयम्
अर्घ्य देने के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को आचमन हेतु जल अर्पित करें।
श्री शिव आचमनीय मंत्र
तस्माद्विराडजायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः॥
कर्पूरोशीरसुरभि शीतलं विमलं जलम्।
गङ्गायास्तु समानीतं गृहाणाचमनीयकम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः आचमनीयं समर्पयामि।
8. स्नानम्
आचमनीय अर्पण के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को स्नान कराएं।
श्री शिव स्नान मंत्र
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तो अस्यासीदाज्यम् ग्रीष्म इध्मश्शरद्धविः॥
मन्दाकिन्याः समानीतं हेमाम्भोरुहवासितम्।
स्नानाय ते मया भक्त्या नीरं स्वीक्रियतां विभो॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः स्नानं समर्पयामि।
9. वस्त्रम्
स्नान के बाद अब निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को नए वस्त्र अर्पित करें।
श्री शिव वस्त्र मंत्र
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥
वस्त्रं सूक्ष्मं दुकूलं च देवानामपि दुर्लभम्।
गृहाण त्वमुमाकान्त प्रसन्नो भव सर्वदा॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः वस्त्रं समर्पयामि।
10. यज्ञोपवीतम्
वस्त्रार्पण के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को पवित्र धागा अर्पित करें।
श्री शिव यज्ञोपवीत मंत्र
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम्।
पशूगँस्तागंश्चक्रे वायव्यान् आरण्यान् ग्राम्याश्च ये॥
यज्ञोपवीतं सहजं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
आयुष्यं ब्रह्मवर्चस्कम् उपवीतं गृहाण मे॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
11. गन्धः
यज्ञोपवीत अर्पण के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को चंदन का लेप या चूर्ण अर्पित करें।
श्री शिव गंध मंत्र
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दाँसि जज्ञिरे तस्मात् यजुस्तस्मादजायत॥
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ! चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः गन्धं समर्पयामि।
12. पुष्पाणि
चंदन अर्पण के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें।
श्री शिव पुष्पाणी मंत्र
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता अजावयः॥
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयाऽऽनीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः पुष्पाणि समर्पयामि।
13. धूपम्
पुष्पा अर्पण के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को धूप अर्पित करें।
श्री शिव धूप मंत्र
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादावुच्येते॥
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः धूपम् आघ्रापयामि।
14. दीपः
धूपबत्ती अर्पित करने के बाद, निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को शुद्ध घी का दीपक अर्पित करें।
श्री शिव दीप मंत्र
ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रोऽजायत॥
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश! त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः दीपं दर्शयामि।
15. नैवेद्यम्
दीपदान के बाद हाथ धोकर नैवेद्य अर्पित करें। इसमें विभिन्न प्रकार के फल और मिठाइयाँ होनी चाहिए और निम्न मंत्र का जाप करते हुए इसे भगवान शिव को अर्पित करें।
श्री शिव नैवेद्य मंत्र
ॐ चन्द्रमा मनसो जातः चक्षोः सूर्यो अजायत।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत॥
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरु।
इप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गतिम्॥
शर्कराखण्डखाद्यनि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
16. ताम्बूलम्
नैवेद्यम अर्पित करने के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को पान का पत्ता अर्पित करें।
श्री शिव तांबूल मंत्र
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
ऐलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
17. दक्षिणा
ताम्बूलम अर्पित करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को दक्षिणा अर्पित करें।
श्री शिव दक्षिणा मंत्र
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः दक्षिणां समर्पयामि।
18. नीराजनम्) / आरती
दक्षिणा अर्पित करने के बाद, पूजा की थाली में जलते हुए कपूर से फलों की आरती करें और निम्न मंत्र का जाप करें। निम्न मंत्र का जाप करने के बाद भगवान शिव की स्तुति में श्री शिव आरती गाएँ।
श्री शिव निरजना मंत्र
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः नीराजनं समर्पयामि।
19. फलम्
आरती के बाद अब निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को फल अर्पित करें।
श्री शिव फल मंत्र
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्।
तस्मात् फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः फलं समर्पयामि।
20. प्रदक्षिणा
फल चढ़ाने के बाद अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए हाथ में फूल लेकर प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा (श्री सत्यनारायण की बाएं से दाएं परिक्रमा) करें।
श्री शिव प्रदक्षिणा मंत्र
नाभ्या आसीदन्तरिक्षम् शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात् तथा लोकाँ अकल्पयन्॥
यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणे पदे पदे॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि।
21. नमस्कारः
प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा के बाद निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को प्रणाम करें।
श्री शिव नमस्कार मंत्र
सप्तास्यासन् परिधयः त्रिःसप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वानाः अबध्नन्पुरुषं पशुम् ।
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्। पुरुषं जातमग्रतः॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर!।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः नमस्कारं समर्पयामि।
22. मन्त्रपुष्पाञ्जलिः
नमस्कार के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को पुष्प और मंत्र अर्पित करें।
श्री शिव मंत्र पुष्पांजलि
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकम् महिमानः सचन्ते यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः।
भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः॥
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
23. प्रार्थना
पुष्प अर्पित करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव से प्रार्थना करें।
श्री शिव प्रार्थना मंत्र
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
नूनं सम्पूर्णतां यातु सद्यो वन्देतमच्युतम्।
ॐ साङ्गाय सायुधाय साम्बसदाशिवाय नमः प्रार्थनां समर्पयामि।
आख़िर तक – एक नज़र में
- महाशिवरात्रि 2025, 26 फरवरी को मनाई जाएगी।
- इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है।
- व्रत के दौरान नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है।
- सात्विक भोजन और व्रत-अनुकूल खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, केसर, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
महाशिवरात्रि 2025 व्रत नियम: हिंदू हर साल महाशिवरात्रि का पवित्र त्योहार उत्साह के साथ मनाते हैं। इस साल, यह 26 फरवरी को है, और इसे पूरे देश में अनूठी परंपराओं और महान समर्पण के साथ मनाया जाएगा। वार्षिक रूप से, महाशिवरात्रि फाल्गुन या माघ के चंद्र मास के अंधेरे (क्षीण) आधे के 14 वें दिन, अमावस्या से एक दिन पहले पड़ती है। महाशिवरात्रि व्रत का पालन करना एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है।
इस दिन, भक्त भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजा करते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं और दिन भर का निर्जला व्रत (बिना पानी के उपवास) रखते हैं। यदि आप और आपके प्रियजन कठिन व्रत का पालन कर रहे हैं, तो आपको नियमों और क्या करें और क्या न करें के बारे में पता होना चाहिए।
महाशिवरात्रि 2025: व्रत के नियम
क्या करें
- भक्तों को त्रयोदशी पर शिव की पूजा करने के लिए अपने शरीर और दिमाग को तैयार करने के लिए एक दिन पहले – महाशिवरात्रि से एक दिन पहले एक ही भोजन करना चाहिए।
- शिवरात्रि की रात का बहुत महत्व है, और शिव पूजा से पहले, भक्तों को फिर से स्नान करना चाहिए।
- शिवरात्रि पूजा रात के दौरान एक बार या चार बार की जा सकती है।
- व्रत के दिन, भक्तों को जल्दी उठना चाहिए, एक शुद्ध स्नान करना चाहिए और नए कपड़े पहनने चाहिए।
- व्रत के दौरान, फल, दूध, दूध उत्पाद और जड़ वाली सब्जियां जैसे सात्विक और व्रत-अनुकूल खाद्य पदार्थों का सेवन करें। महाशिवरात्रि व्रत में इन चीजों का सेवन करना शुभ माना जाता है।
- शिवलिंग की पूजा करने से पहले उसे पानी, दूध, केसर, शहद और गंगाजल से स्नान कराएं। दीया और धूप जलाएं।
क्या न करें
- व्रत के दौरान, अनाज और फलियां जैसे निषिद्ध खाद्य पदार्थों से बचें।
- जबकि नारियल भगवान शिव को चढ़ाया जा सकता है, नारियल पानी न चढ़ाएं।
- यह सलाह दी जाती है कि भगवान शिव को अर्पित की गई किसी भी चीज का सेवन न करें क्योंकि यह दुर्भाग्य लाने वाला माना जाता है।
- उपवास करते समय, चाय और कॉफी पर ज्यादा ध्यान न दें, क्योंकि इससे निर्जलीकरण हो सकता है।
- भक्तों को इस पूजा के दौरान कभी भी कुमकुम का तिलक नहीं लगाना चाहिए, और चंदन के पेस्ट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। महाशिवरात्रि व्रत के दौरान चंदन का उपयोग शुभ है।
- केवड़ा और चंपा जैसे फूल न चढ़ाएं, क्योंकि उन्हें भगवान शिव ने शाप दिया है।
महाशिवरात्रि 2025: पूजा विधि और अनुष्ठान
महाशिवरात्रि पूजा के दौरान, भगवान शिव को बेल पत्र, धतूरा फल, कच्चे चावल, दूध, दही, चंदन, घी और जल चढ़ाएं। ये वस्तुएं भगवान शिव को सफलता, समृद्धि, शांति और सुख का आशीर्वाद पाने के लिए अर्पित की जाती हैं। भक्त दूध और उसके उत्पादों जैसे बर्फी, पेड़ा और खीर से बनी मिठाई भी चढ़ा सकते हैं। महाशिवरात्रि व्रत और पूजा दोनों महत्वपूर्ण हैं।
महाशिवरात्रि पूजा के दौरान, शिवलिंग को फूलों और बेल के पत्तों से सजाएं, और भगवान शिव को भांग, फल, शहद, घी, मिठाई और दूध चढ़ाएं। इस बीच, महाशिवरात्रि की शाम को, लोग मंदिरों में इकट्ठा होते हैं और शिव लिंग की पूजा करते हैं। वे दीये भी जलाते हैं, पूरी रात मंदिर में बिताते हैं, और भगवान शिव और पार्वती के शानदार जुलूसों में भाग लेते हैं – जिन्हें रात में पालकी पर निकाला जाता है।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी।
- व्रत के दौरान सात्विक भोजन का सेवन करें और नियमों का पालन करें।
- शिवलिंग को जल, दूध, केसर, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें।
- भगवान शिव को बेल पत्र, धतूरा फल, और अन्य शुभ वस्तुएं अर्पित करें।
- केवड़ा और चंपा जैसे शापित फूल चढ़ाने से बचें।
Discover more from पाएं देश और दुनिया की ताजा खबरें
Subscribe to get the latest posts sent to your email.