“आखिर तक – संक्षेप में” (In Shorts)
- सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को पलटा, जिसमें AMU का अल्पसंख्यक दर्जा मानने से इंकार किया गया था।
- कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक नई तीन-न्यायाधीश बेंच द्वारा अंतिम निर्णय लेने का आदेश दिया।
- फैसला 4:3 के बहुमत से पारित किया गया।
- अल्पसंख्यक दर्जा से AMU को शिक्षा और प्रशासन में विशेष अधिकार प्राप्त हो सकते हैं।
- यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत आता है।
“आखिर तक – विस्तार से” (In Depth)
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने ही 1967 के निर्णय को पलटते हुए कहा कि अब इस मुद्दे पर एक नई तीन-न्यायाधीश बेंच निर्णय लेगी कि अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है या नहीं। यह फैसला 4:3 के बहुमत से पारित हुआ, जो एक ऐतिहासिक कदम है। इस फैसले से AMU को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत विशेष अधिकार मिल सकते हैं।
1967 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने से मना कर दिया था, यह कहते हुए कि इसे संसद द्वारा स्थापित किया गया है। अदालत ने कहा कि संसद द्वारा स्थापित संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया जा सकता। अब, नई बेंच इस बात पर विचार करेगी कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है या नहीं, जो उसे शिक्षा और प्रशासन में विशेष अधिकार देगा।
अल्पसंख्यक दर्जा का महत्व
अल्पसंख्यक दर्जा किसी भी संस्थान को अपने छात्रों और शिक्षकों के चयन में विशेष अधिकार देता है। यह दर्जा AMU को अपने विशेष लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संरचनात्मक आजादी दे सकता है, जो अल्पसंख्यक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक है।
न्यायालय का फैसला और प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। कई धार्मिक और शैक्षिक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक कदम माना है।
“याद रखने योग्य मुख्य बिंदु”
- सुप्रीम कोर्ट ने 1967 का निर्णय पलट दिया और AMU का अल्पसंख्यक दर्जा एक नई बेंच द्वारा तय किया जाएगा।
- यह निर्णय अल्पसंख्यक अधिकारों और शिक्षा क्षेत्र में बड़े प्रभाव डाल सकता है।
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