यूपीआई सेवा बाधित: भुगतान विफल, NPCI कर रहा समाधान

आख़िर तक
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यूपीआई सेवा बाधित: भुगतान विफल, NPCI कर रहा समाधान

आख़िर तक – एक नज़र में

  • शनिवार को भारत में यूपीआई सेवा बाधित होने से परेशानी हुई।
  • यह एक महीने के अंदर चौथी बार हुई तकनीकी खराबी है।
  • Paytm, Google Pay जैसे ऐप्स पर यूजर्स भुगतान नहीं कर पाए।
  • NPCI ने तकनीकी समस्या स्वीकारी, समाधान पर काम जारी है।
  • लगातार रुकावटों के बावजूद UPI भुगतान रिकॉर्ड स्तर पर हैं।

आख़िर तक – विस्तृत समाचार

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डिजिटल भारत में फिर झटका: यूपीआई सेवा बाधित

भारत में शनिवार को यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) सेवाओं में बड़ी रुकावट आई। विभिन्न ऐप्स पर उपयोगकर्ताओं को लेनदेन में परेशानी हुई। यह पिछले एक महीने में इस तरह की चौथी बड़ी यूपीआई सेवा बाधित होने की घटना है। डिजिटल भुगतान पर बढ़ती निर्भरता के बीच यह चिंता का विषय है। लोगों को अपने दैनिक लेनदेन पूरे करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

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आउटेज का विवरण और समय

आउटेज ट्रैक करने वाली साइट डाउन डिटेक्टर के अनुसार, उपयोगकर्ताओं ने सुबह करीब 11:26 बजे से समस्याएं रिपोर्ट करना शुरू कर दिया था। यूपीआई सेवा बाधित होने की समस्या सुबह करीब 11:40 बजे चरम पर थी। इस दौरान डिजिटल भुगतान विफल होने की 222 से अधिक रिपोर्ट दर्ज की गईं। यह दिखाता है कि समस्या काफी व्यापक थी। कई यूजर्स ने सोशल मीडिया पर अपनी निराशा व्यक्त की।

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एनपीसीआई का बयान और आश्वासन

यूपीआई बुनियादी ढांचे की देखरेख करने वाली संस्था, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) ने समस्या को स्वीकार किया है। एनपीसीआई ने कहा कि वे इस रुकावट को दूर करने के लिए काम कर रहे हैं। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में एनपीसीआई ने कहा, “एनपीसीआई वर्तमान में रुक-रुक कर तकनीकी समस्याओं का सामना कर रहा है, जिससे यूपीआई लेनदेन आंशिक रूप से विफल हो रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हम इस मुद्दे को हल करने के लिए काम कर रहे हैं, और आपको अपडेट रखेंगे। असुविधा के लिए हमें खेद है।” यह बयान यूपीआई सेवा बाधित होने से परेशान यूजर्स के लिए था।

उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया और परेशानी

सोशल मीडिया पर यूजर्स ने अपनी दिक्कतें साझा कीं। उन्होंने बताया कि पेटीएम, गूगल पे और फोनपे जैसे थर्ड-पार्टी प्लेटफॉर्म पर भुगतान करने में कठिनाई हो रही थी। एक एक्स यूजर ने लिखा, “आज फिर यूपीआई डाउन है, सभी भुगतान विफल हो रहे हैं। कम से कम नियोजित आउटेज की स्थिति में पूर्व सूचना भेजी जानी चाहिए।” एक अन्य यूजर ने पोस्ट किया, “मेरे पास नकदी नहीं थी और इस डाउनटाइम ने मुझे ऑटो वाले को किराया देते समय अजीब स्थिति में डाल दिया। कृपया, हमें शून्य-डाउनटाइम यूपीआई इंफ्रा की आवश्यकता है।” ये प्रतिक्रियाएं यूपीआई सेवा बाधित होने के वास्तविक प्रभाव को दर्शाती हैं।

तकनीकी समस्याओं का बढ़ता पैटर्न

शनिवार का आउटेज लोकप्रिय रियल-टाइम भुगतान प्रणाली को प्रभावित करने वाली तकनीकी समस्याओं की श्रृंखला में नवीनतम है। इससे पहले भी यूजर्स को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। 26 मार्च को, यूपीआई सेवाएं कुछ घंटों के लिए बंद थीं। एनपीसीआई ने इसका कारण “रुक-रुक कर तकनीकी समस्याएं” बताया था। कुछ ही दिनों बाद, 31 मार्च को, उपयोगकर्ताओं को फिर से भुगतान प्रसंस्करण समस्याओं का सामना करना पड़ा। एनपीसीआई ने कहा कि यह वित्तीय वर्ष के अंत की भीड़ के दौरान बैंक-साइड देरी के कारण हुआ। 2 अप्रैल को “यूपीआई नेटवर्क में लेटेंसी” के कारण एक और संक्षिप्त रुकावट आई थी। बार-बार यूपीआई सेवा बाधित होना चिंताजनक है।

यूपीआई का बढ़ता प्रभुत्व और महत्व

सेवा में रुकावटें ऐसे समय में आ रही हैं जब यूपीआई भुगतान तेजी से सर्वव्यापी होते जा रहे हैं। वित्त मंत्रालय के अनुसार, जनवरी में यूपीआई लेनदेन 16.99 बिलियन को पार कर गया। इन लेनदेन का कुल मूल्य 23.48 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। यह किसी भी महीने के लिए एक रिकॉर्ड उच्च स्तर है। मंत्रालय ने भारत के डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में यूपीआई की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला। पीटीआई के हवाले से मंत्रालय ने कहा, “यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) भारत के डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र का आधार बना हुआ है, जो देश भर में खुदरा भुगतानों का 80 प्रतिशत योगदान देता है।” इसलिए यूपीआई सेवा बाधित होने का असर व्यापक होता है।

आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें

  • शनिवार को भारत में यूपीआई सेवा बाधित हुई, यह माह में चौथी घटना थी।
  • Paytm, Google Pay, PhonePe यूजर्स को लेनदेन में विफलता का सामना करना पड़ा।
  • NPCI ने तकनीकी समस्या स्वीकार की और समाधान का आश्वासन दिया।
  • यूजर्स ने बिना पूर्व सूचना के आउटेज और नकदी न होने पर असुविधा की शिकायत की।
  • लगातार रुकावटों के बावजूद, UPI भारत के 80% खुदरा डिजिटल भुगतान का आधार है।

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आख़िर तक मुख्य संपादक
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