आख़िर तक – एक नज़र में:
- विपक्ष ने जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया।
- यादव ने बहुसंख्यकों की इच्छा के आधार पर कानून लागू करने का सुझाव दिया।
- यह टिप्पणी विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में की गई थी।
- 55 सांसदों ने राज्यसभा सचिवालय को नोटिस सौंपा।
- विपक्ष ने इसे असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताया।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार:
विवादित टिप्पणी का संदर्भ
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव ने रविवार को विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यक्रम में टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि “कानून बहुसंख्यकों की इच्छाओं के अनुसार चलना चाहिए।” इस बयान ने देशभर में विवाद को जन्म दिया।
विपक्ष का महाभियोग प्रस्ताव
विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव का नेतृत्व समाजवादी पार्टी के सांसद कपिल सिब्बल ने किया। प्रस्ताव में जज पर “असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण” रवैया अपनाने का आरोप लगाया गया।
न्यायपालिका में पूर्व विवाद
यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस यादव विवादों में रहे हैं। 2021 में उन्होंने गौहत्या पर टिप्पणी करते हुए गाय को ‘पवित्र’ बताया था। उनके इस बयान पर भी कड़ी प्रतिक्रिया आई थी।
संवैधानिक प्रक्रिया क्या है?
संविधान के अनुसार, जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में बहुमत का समर्थन जरूरी है। यह प्रक्रिया दुर्लभ और जटिल होती है, जिसमें राष्ट्रपति की अंतिम मंजूरी आवश्यक होती है।
कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
वकील प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर न्यायाधीश के व्यवहार की जांच की मांग की। उन्होंने इसे “न्यायपालिका की निष्पक्षता पर चोट” बताया।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें:
- जज यादव की टिप्पणी पर बहस छिड़ी।
- विपक्ष ने न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
- महाभियोग की प्रक्रिया कठिन है, लेकिन यह न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
- क्या यह मामला न्यायपालिका के सुधार का संकेत देगा?
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