आख़िर तक – एक नज़र में
- वक्फ कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई।
- केंद्र ने कहा कि वक्फ सिर्फ दान है, इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं।
- याचिकाकर्ताओं ने वक्फ को ईश्वर के प्रति समर्पण बताया, जिसका आध्यात्मिक लाभ परलोक में मिलता है।
- मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की: “हिंदुओं में मोक्ष की अवधारणा है।”
- वकीलों ने विभिन्न धर्मों में दान और ईश्वर की उपासना के स्वरूप पर तर्क रखे।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस: ‘हिंदुओं में है मोक्ष की अवधारणा’
वक्फ कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार के तर्कों का जवाब दिया। केंद्र सरकार ने एक दिन पहले ही कोर्ट को बताया था कि वक्फ केवल दान है और यह इस्लाम का कोई अनिवार्य अंग नहीं है। यह मामला वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उनकी प्रकृति को लेकर काफी अहम माना जा रहा है।
केंद्र का तर्क: वक्फ केवल दान
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को दलील दी थी। उन्होंने कहा था, “वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है। लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है… वक्फ इस्लाम में दान के अलावा कुछ नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा था कि अदालती फैसले दिखाते हैं कि दान हर धर्म का हिस्सा है। यह ईसाई धर्म में भी हो सकता है। हिंदुओं में दान की व्यवस्था है। सिखों में भी यह है। केंद्र का मुख्य जोर इस बात पर था कि वक्फ को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं का जवाब: ईश्वर को समर्पण
केंद्र के इस तर्क के जवाब में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने गुरुवार को अदालत को बताया। उन्होंने कहा, “वक्फ ईश्वर के प्रति समर्पण है, परलोक के लिए। दूसरों के विपरीत, वक्फ ईश्वर के लिए दान है। सामान्य दान एक समुदाय के लिए होता है, जबकि वक्फ ईश्वर के प्रति समर्पण है। यह भविष्य के लिए, आध्यात्मिक लाभ के लिए है।” सिब्बल ने वक्फ की विशिष्टता पर जोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
कपिल सिब्बल की इस दलील पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “हिंदुओं में मोक्ष की अवधारणा है।” न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने भी मुख्य न्यायाधीश की बात का समर्थन किया। उन्होंने ईसाई धर्म में एक समान प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा, “हम सभी स्वर्ग जाने की कोशिश करते हैं।” इन टिप्पणियों से कोर्ट विभिन्न धर्मों की मूल भावनाओं को समझने का प्रयास कर रहा था।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने गुरुवार को कहा, “दान अन्य धर्मों का भी एक मौलिक सिद्धांत है।” ऐसा प्रतीत होता है कि उनका इरादा दान के मामले में धर्मों के बीच समानताएं दिखाना था।
अन्य धर्मों से तुलना और प्रबंधन का मुद्दा
केंद्र के तर्क का खंडन करते हुए अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा। उनके अनुसार, वेदों के मुताबिक मंदिर हिंदू धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हैं। “प्रकृति की पूजा का प्रावधान है। अग्नि, जल और वर्षा के देवता हैं। पहाड़, महासागर आदि हैं।”
गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने पहले दावा किया था कि वक्फ मूल रूप से ईश्वर के नाम पर दान है। इस पर केंद्र ने जवाब दिया था कि दान सभी धर्मों का अभिन्न अंग है।
इसके बाद कपिल सिब्बल ने वक्फ प्रबंधन समिति में गैर-मुसलमानों को शामिल करने के मार्ग प्रशस्त करने वाले प्रावधान का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि जहां तक हिंदू धार्मिक स्थलों के प्रबंधन का सवाल है, उसमें गैर-हिंदू शामिल नहीं होते। “लेकिन जहाँ तक वक्फ का सवाल है, यहाँ भी गैर-मुसलमान शामिल नहीं हैं। चार व्यक्तियों के लिए आरक्षण गैर-मुसलमानों के लिए किया गया है। मेरी राय में, एक भी काफी है।” यह वक्फ कानून से जुड़ा एक संवेदनशील पहलू है।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- वक्फ कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और याचिकाकर्ताओं के बीच बहस हुई।
- केंद्र ने वक्फ को सभी धर्मों में मौजूद सामान्य दान की तरह बताया।
- याचिकाकर्ताओं ने वक्फ को परलोक के लिए ईश्वर के प्रति विशिष्ट समर्पण कहा।
- सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू धर्म में मोक्ष और ईसाई धर्म में स्वर्ग की अवधारणा का उल्लेख किया।
- वक्फ प्रबंधन समिति में गैर-मुसलमानों की भूमिका पर भी चर्चा की गई।
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