पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें? जानें अपने कानूनी अधिकार

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पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें? जानें अपने कानूनी अधिकार

पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें: अपने कानूनी अधिकारों की पूरी गाइड

किसी भी अपराध की घटना के बाद, न्याय पाने की पहली सीढ़ी होती है FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज कराना। लेकिन कई बार आम आदमी को इस प्रक्रिया में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ा डर और सवाल जो मन में आता है, वह है – “अगर पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या होगा?” क्या FIR दर्ज करना या न करना पुलिस की मर्जी पर निर्भर है? यह एक ऐसा सवाल है जो सच और झूठ के बीच फंसा हुआ लगता है। इस लेख में, हम इसी सच और झूठ के पर्दे को हटाएंगे और आपको आपके कानूनी अधिकारों की पूरी जानकारी देंगे।

यह जानना आपका अधिकार है कि कानून आपको क्या शक्तियां देता है। कई लोग जानकारी के अभाव में हार मान लेते हैं और न्याय की उम्मीद छोड़ देते हैं। लेकिन कानून आपके साथ है। यदि कोई पुलिस अधिकारी आपकी FIR दर्ज करने से मना करता है, तो यह न केवल उसकी ड्यूटी का उल्लंघन है, बल्कि यह एक दंडनीय अपराध भी हो सकता है। आइए, इस पूरी प्रक्रिया को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि ऐसी स्थिति में आपको कौन से कदम उठाने चाहिए।

FIR क्या होती है और यह इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

इससे पहले कि हम जानें कि पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करना है, यह समझना जरूरी है कि FIR आखिर है क्या।

FIR का पूरा नाम है First Information Report (प्रथम सूचना रिपोर्ट)। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 154 के तहत, यह किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा तैयार किया गया एक लिखित दस्तावेज है।

FIR क्यों है न्याय की पहली सीढ़ी?

  • कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत: FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस कानूनी रूप से मामले की जांच शुरू कर सकती है।
  • सबूतों का संग्रह: FIR के आधार पर पुलिस घटनास्थल का दौरा करती है, सबूत इकट्ठा करती है, गवाहों के बयान लेती है और अपराधियों को गिरफ्तार कर सकती है।
  • अदालती कार्यवाही का आधार: यही FIR कोर्ट में मामले की सुनवाई का आधार बनती है। बिना FIR के, कानूनी लड़ाई शुरू ही नहीं हो सकती।

संक्षेप में, FIR न्याय की पूरी मशीनरी को गति देने वाला एक ट्रिगर है।


सबसे बड़ा सवाल: क्या पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर सकती है?

इसका जवाब हां और ना, दोनों में है, और यह अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है। कानून ने अपराधों को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा है:

  1. संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense)
  2. असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offense)

सच: संज्ञेय अपराध में FIR दर्ज करना अनिवार्य है

संज्ञेय अपराध गंभीर किस्म के अपराध होते हैं। जैसे:

  • हत्या या हत्या का प्रयास
  • बलात्कार
  • दहेज हत्या
  • चोरी, लूट या डकैती
  • अपहरण
  • गंभीर मारपीट

कानून क्या कहता है?
CrPC की धारा 154(1) स्पष्ट रूप से कहती है कि जब भी किसी पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय अपराध के होने की सूचना मिलती है, तो वह उसे दर्ज करने के लिए बाध्य है। पुलिस यह कहकर मना नहीं कर सकती कि उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं या घटना उनके थाना क्षेत्र में नहीं हुई है।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2013) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि यदि दी गई सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो पुलिस के लिए FIR दर्ज करना अनिवार्य है। पुलिस प्रारंभिक जांच (Preliminary Inquiry) सिर्फ यह पता लगाने के लिए कर सकती है कि अपराध संज्ञेय है या नहीं, लेकिन वह FIR दर्ज करने में देरी या मनाही नहीं कर सकती।

झूठ: असंज्ञेय अपराध में प्रक्रिया अलग है

असंज्ञेय अपराध कम गंभीर प्रकृति के होते हैं। जैसे:

  • मामूली मारपीट (जिसमें गंभीर चोट न हो)
  • मानहानि
  • धोखाधड़ी के कुछ मामले
  • धमकी देना

कानून क्या कहता है?
CrPC की धारा 155 के अनुसार, असंज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है। इसके बजाय, वे इसे अपनी स्टेशन डायरी या एक अलग रजिस्टर में दर्ज करते हैं, जिसे NCR (Non-Cognizable Report) कहते हैं। इसके बाद, पुलिस शिकायतकर्ता को संबंधित मजिस्ट्रेट (अदालत) के पास जाने का निर्देश देती है। ऐसे मामलों में पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के जांच शुरू नहीं कर सकती।

तो, पुलिस का “मना करना” असल में एक अलग कानूनी प्रक्रिया का पालन करना है।


अगर पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें? (स्टेप-बाय-स्टेप गाइड)

अब आते हैं सबसे महत्वपूर्ण हिस्से पर। यदि किसी संज्ञेय अपराध के मामले में पुलिस FIR दर्ज न करे, तो आपको चुप नहीं बैठना है। कानून ने आपको कई रास्ते दिए हैं।

कदम 1: वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से संपर्क करें

यदि थाने का कोई अधिकारी (जैसे SHO) आपकी FIR दर्ज करने से मना करता है, तो आप तुरंत जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से संपर्क करें।

  • किससे मिलें: पुलिस उपाधीक्षक (DSP), पुलिस अधीक्षक (SP) या पुलिस कमिश्नर (शहरों में)।
  • कैसे करें: आप उनके कार्यालय में जाकर व्यक्तिगत रूप से मिल सकते हैं या उन्हें एक लिखित शिकायत दे सकते हैं। अपनी शिकायत में घटना का पूरा विवरण और यह भी बताएं कि संबंधित थाने ने आपकी FIR दर्ज करने से कैसे मना किया।

अक्सर, वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप से ही मामला सुलझ जाता है और FIR दर्ज हो जाती है।

कदम 2: रजिस्टर्ड डाक से लिखित शिकायत भेजें

यह एक बहुत ही शक्तिशाली कानूनी उपाय है।

  • कानूनी आधार: CrPC की धारा 154(3) आपको यह अधिकार देती है।
  • प्रक्रिया:
    1. घटना का पूरा विवरण एक कागज पर लिखें।
    2. इस शिकायत पत्र को जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) को रजिस्टर्ड डाक (Registered Post) से भेजें।
    3. डाक की रसीद को संभाल कर रखें, यह एक महत्वपूर्ण सबूत है।
  • आगे क्या होगा: यदि SP को लगता है कि आपकी शिकायत में एक संज्ञेय अपराध का मामला बनता है, तो वह या तो खुद मामले की जांच करेगा या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी को FIR दर्ज करके जांच करने का निर्देश देगा।

कदम 3: अदालत का दरवाजा खटखटाएं (सबसे प्रभावी रास्ता)

यदि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी मदद नहीं मिलती है, तो आपके पास सबसे बड़ा हथियार है – न्यायपालिका।

  • कानूनी आधार: CrPC की धारा 156(3) के तहत आप सीधे मजिस्ट्रेट की अदालत में जा सकते हैं।
  • प्रक्रिया:
    1. आपको एक वकील की मदद लेनी होगी।
    2. आपका वकील मजिस्ट्रेट के सामने एक आवेदन दायर करेगा, जिसमें घटना का पूरा विवरण और पुलिस द्वारा FIR दर्ज न करने की बात बताई जाएगी।
    3. आपको अपनी शिकायत के समर्थन में एक शपथ पत्र (Affidavit) भी देना होगा।
  • अदालत का आदेश: यदि मजिस्ट्रेट आपकी शिकायत से संतुष्ट होता है, तो वह संबंधित पुलिस थाने को तत्काल FIR दर्ज करने और मामले की जांच करके रिपोर्ट सौंपने का आदेश दे सकता है। पुलिस के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश का पालन करना अनिवार्य है।

कदम 4: मानवाधिकार आयोग से संपर्क करें

यदि पुलिस का व्यवहार बहुत ही खराब रहा है या उन्होंने आपके साथ दुर्व्यवहार किया है, तो आप राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) या राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) में भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।


‘जीरो FIR’ – आपका शक्तिशाली अधिकार जिसे जानना जरूरी है

कई बार पुलिस यह कहकर FIR दर्ज करने से मना कर देती है कि “यह घटना हमारे थाना क्षेत्र (Jurisdiction) की नहीं है।” यह पूरी तरह से गैर-कानूनी है। ऐसे मामलों के लिए ‘जीरो FIR’ का प्रावधान है।

जीरो FIR क्या है?

  • जीरो FIR का मतलब है कि आप किसी भी संज्ञेय अपराध की FIR किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करा सकते हैं, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो।
  • वह पुलिस स्टेशन FIR को “0” नंबर से दर्ज करेगा और तत्काल प्रारंभिक कार्रवाई करेगा।
  • इसके बाद, वे उस FIR को संबंधित थाना क्षेत्र में ट्रांसफर कर देंगे, जहां उसे एक रेगुलर FIR नंबर दिया जाएगा।

इसका उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ित को तत्काल मदद मिले और सबूत नष्ट होने से पहले जांच शुरू हो जाए, खासकर बलात्कार, अपहरण और हत्या जैसे गंभीर मामलों में।


FIR दर्ज कराते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • स्पष्ट और सटीक जानकारी दें: घटना की तारीख, समय और स्थान का स्पष्ट उल्लेख करें।
  • पूरा विवरण दें: बताएं कि क्या हुआ, कैसे हुआ और कौन-कौन शामिल थे।
  • अतिशयोक्ति से बचें: कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर या झूठी बातें न बताएं। इससे आपका केस कमजोर हो सकता है।
  • FIR की मुफ्त कॉपी लें: FIR दर्ज कराने के बाद, CrPC की धारा 154(2) के तहत आपको उसकी एक कॉपी मुफ्त में पाने का अधिकार है। इसे लेना न भूलें।
  • FIR को ध्यान से पढ़ें: पुलिस अधिकारी को FIR पढ़कर सुनाने के लिए कहें और सुनिश्चित करें कि आपने जो बताया है, वही लिखा गया है। इसके बाद ही उस पर हस्ताक्षर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न 1: क्या FIR दर्ज कराने के लिए कोई फीस लगती है?
उत्तर: नहीं, FIR दर्ज कराना पूरी तरह से मुफ्त है। कोई भी पुलिस अधिकारी इसके लिए आपसे पैसे नहीं मांग सकता। ऐसा करना रिश्वतखोरी है और एक अपराध है।

प्रश्न 2: FIR दर्ज कराने में कितना समय लगता है?
उत्तर: कानून के अनुसार, संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस को तुरंत FIR दर्ज करनी चाहिए। इसमें कोई अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 3: क्या FIR दर्ज होने के बाद उसे वापस लिया जा सकता है?
उत्तर: FIR एक बार दर्ज होने के बाद आमतौर पर शिकायतकर्ता द्वारा वापस नहीं ली जा सकती, क्योंकि यह राज्य के खिलाफ एक अपराध बन जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में (जो कम गंभीर होते हैं), आप हाईकोर्ट में याचिका दायर करके इसे रद्द (Quash) करवा सकते हैं, लेकिन यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।

प्रश्न 4: झूठी FIR दर्ज कराने पर क्या सजा है?
उत्तर: किसी को परेशान करने या फंसाने के इरादे से झूठी FIR दर्ज कराना एक गंभीर अपराध है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 182 और 211 के तहत ऐसा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है और उसे जेल भी हो सकती है।

प्रश्न 5: FIR और NCR में क्या अंतर है?
उत्तर: FIR (First Information Report) संज्ञेय (गंभीर) अपराधों के लिए दर्ज की जाती है और पुलिस बिना वारंट के जांच और गिरफ्तारी कर सकती है। NCR (Non-Cognizable Report) असंज्ञेय (कम गंभीर) अपराधों के लिए दर्ज की जाती है और पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के जांच नहीं कर सकती।

निष्कर्ष: आपका अधिकार, आपकी ताकत

तो, सवाल का अंतिम जवाब यह है: नहीं, संज्ञेय अपराध के मामले में FIR दर्ज करना पुलिस की मर्जी पर नहीं है, यह उनकी कानूनी जिम्मेदारी है।

जानकारी ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है। यदि अगली बार आपको या आपके किसी जानने वाले को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े जहां पुलिस FIR दर्ज न करे, तो निराश न हों। शांत रहें और कानून द्वारा दिए गए अपने अधिकारों का उपयोग करें। वरिष्ठ अधिकारियों से मिलें, रजिस्टर्ड डाक से शिकायत भेजें और जरूरत पड़ने पर अदालत का दरवाजा खटखटाने से न डरें। न्याय का रास्ता लंबा हो सकता है, लेकिन इसकी शुरुआत आपके एक साहसिक कदम से ही होती है।


हम आपसे सुनना चाहेंगे!
क्या आपको कभी FIR दर्ज कराने में कोई समस्या आई है? आपने उस स्थिति का सामना कैसे किया? अपना अनुभव नीचे कमेंट्स में साझा करें ताकि और लोग भी जागरूक हो सकें। इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करना न भूलें।


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