धनतेरस 2025 – पूजा विधि, मंत्र, मुहूर्त और खरीददारी

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धनतेरस 2025 पूजा विधि: 7 अचूक उपाय जो खुशहाली लाएं

धनतेरस 2025 विशेषांक: महालक्ष्मी को घर कैसे बुलाएँ

धनतेरस दीपावली से पहले आने वाला वह पूजनीय दिन है जब सौभाग्य, स्वास्थ्य और धन की देवी महालक्ष्मीभगवान कुबेर, और भगवान धन्वंतरि की आराधना की जाती है। यह दिन न केवल खरीदारी और उत्सव का प्रतीक है, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, आर्थिक समृद्धि और मानसिक शांति को भी आमंत्रित करता है।

धनतेरस का महत्व

धनतेरस का सीधा अर्थ है “धन का आगमन”। यह दिन त्रयोदशी तिथि को आता है, जब सम्पूर्ण परिवार महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए पूजा करता है। इस पर्व का मूल उद्देश्य जीवन में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का संतुलन बनाना है।

धनतेरस 2025 को शनिवार, 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
त्रयोदशी तिथि की अवधि: 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे से 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे तक।

धनतेरस 2025 पूजा मुहूर्त

  • प्रदोष काल: शाम 5:48 बजे – रात 8:20 बजे
  • वृषभ काल: शाम 7:16 बजे – रात 9:11 बजे
  • शुभ पूजा मुहूर्त: शाम 7:16 बजे – 8:20 बजे

इसी समय पर की गई पूजा से अत्यधिक शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।

सुबह की तैयारियाँ

  1. ब्रह्म मुहूर्त (सुबह लगभग 4:30 से 5:30 बजे तक) उठकर स्नान करें।
  2. घर की पूरी सफाई करें और विशेष रूप से मुख्य द्वार सजाएँ।
  3. घर के मंदिर को फूलों, रोशन दीपों और कमल के प्रतीकों से सुसज्जित करें।

धनतेरस पूजा विधि

  1. सफेद या गुलाबी आसन पर बैठें।
  2. देवी महालक्ष्मी, भगवान कुबेर, और भगवान धन्वंतरि के चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
  3. दीपक (मिट्टी या धातु के) को खील या चावल के ऊपर रखें और प्रज्वलित करें।
  4. जल, रोली, हल्दी, फूल, फल, पान, सुपारी, मिठाई एवं खील‑बताशे अर्पित करें।
  5. श्री यंत्र या महालक्ष्मी यंत्र की स्थापना करें।
  6. नीचे दिए गए मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करें।

गणेश पूजन हेतु मंत्र

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

श्री सूक्तम्

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥ (1)

हे जातवेद अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी स्वर्ण मिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान श्वेत पुष्पों की माला धारण करने वाली , चंद्रमा की तरह प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली अथवा चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका शरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाइये। ( इस मन्त्र के प्रभाव से स्वर्ण रजत की प्राप्ति होती है। )

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम॥ (2 )

हे जातवेद अग्निदेव आप मेरे लिए उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी laxmi ji को बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै समस्त ऐश्वर्य जैसे स्वर्ण ,गौ, अश्व और पुत्र पौत्रादि को प्राप्त करूँ। ( इस मन्त्र के जप से गौ, अश्व आदि की प्राप्ति होती है। )

ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनिम।
श्रियं देविमुप हव्ये श्रीर्मा देवी जुषताम ॥ (3)

जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं ,ऐसे रथ में बैठी हुई , हथियो की निनाद सम्पूर्ण संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली माँ लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ।
ऐसी सबकी आश्रयदाता माता लक्ष्मी मेरे घर में सदैव निवास करे। ( इस मन्त्र के शुभ प्रभाव से बहुमूल्य रत्नों की प्राप्ति होती है। )

ॐ कां सोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम्॥ (4 )

जिस देवी का स्वरूप, वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जिसके अधरों पर सदैव मुस्कान रहती है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं।
स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध धन दात्री माँ लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ। ( इस मन्त्र के दिव्य प्रभाव से मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है।)

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥ (5 )

चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृट कान्तिवाली , अपनी कीर्ति से देदीप्यमान , स्वर्ग लोक में इन्द्र अउ समस्त देवों से पूजित अत्यंत उदार, दानशीला ,कमल के मध्य रहने वाली ,सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदात्री ,जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ। अतः मैं आपका आश्रय लेता हूँ ।
हे माता आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो। ( इस मन्त्र के जप से दरिद्रता का नाश होता है, धन की कोई भी कमी नहीं होती है । )

ॐ आदित्यवर्णे तप्सोअधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोsथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्य अलक्ष्मीः॥ (6 )

हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक विशेष बिल्ब वृक्ष उत्पन्न हुआ है । उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें। ( इस मन्त्र का पाठ करने से लक्ष्मी जी की विशेष कृपा मिलती है। )

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रदुर्भूतोsस्मि राष्ट्रेsस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ॥ (7 )

हे लक्ष्मी ! देव सखा कुवेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापती की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हो अर्थात इस संसार में धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। अतः हे लक्ष्मी आप मुझे धन यश और ऐश्वर्य प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद में गृहात्॥ (8 )

भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी अलक्ष्मी ( दरिद्रता ) का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ।
हे लक्ष्मी आप मेरे घर में अनैश्वर्य, वैभवहीनता तथा धन वृद्धि के प्रतिबंधक विघ्नों को दूर करें। ( इस मन्त्र के प्रभाव से सम्पूर्ण परिवार की दरिद्रता दूर होती है।)

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यापुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम्। (9 )

सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य,किसी से भी न दबने योग्य। धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर समृद्धि देने वाली , समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार में सादर आह्वान करता हूँ। ( श्री सूक्त के इस मन्त्र के शुभ प्रभाव से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है, स्थिर सुख समृद्धि प्राप्त होती है । )

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रियं श्रयतां यशः॥ (10 )

हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प। वाणी की सत्यता,गौ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि ) एवं समस्त अन्नों के रूप इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ।
सम्पति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ। ( इस मन्त्र के पाठ से अन्न, धन, यश, मान की प्राप्ति होती है। )

कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियम वास्य मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥ (11 )

“कर्दम “नामक ऋषि -पुत्र से लक्ष्मी प्रकृष्ट पुत्र वाली हुई है। हे कर्दम ! आप मुझमें अच्छी प्रकार से निवास करो अर्थात कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी को मेरे यहाँ रहना ही होगा।
हे कर्दम ! केवल यही नहीं अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माता लक्ष्मी को मेरे घर में निवास कराएं । (इस मन्त्र के प्रभाव से संपूर्ण संपत्ति प्राप्ति होती है। )

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ (12)

जिस प्रकार कर्दम की संतति ‘ख्याति ‘से लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार समुद्र मंथन में चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी लिए कहा गया है कि हे जल के देव वरुण देवता आप मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें। माता लक्ष्मी के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रीत ये चार पुत्र हैं।

इनमे ‘चिक्लीत ‘ से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र ! आप मेरे गृह में निवास करो। केवल तुम ही नहीं वरन दिव्यगुण युक्तसबको आश्रय देने वाली अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ। ( इस मन्त्र का पाठ करने से माँ लक्ष्मी कभी भी साथ नहीं छोड़ती है।)

आद्रॉ पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पदमालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह॥ (13)

हे अग्निदेव ! आप मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडग्रा से अभिषिच्यमाना (आद्र शारीर वाली ) पुष्टि को देने वाली अथवा पीतवर्णवाली ,कमल की माला धारण करने वाली , चन्द्रमा के समान सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप, शुभ्र कांति से युक्त ,स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी को बुलाओ। ( इस मन्त्र के प्रभाव से तेज बढ़ता है , सुख – समृद्धि की प्राप्ति होती है । )

आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह॥ (14 )

हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयद्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुष्टो को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (अर्थात ‘जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता,उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना भी इस संसार में कोई भी कार्य नहीं चल सकता, अर्थात लक्ष्मी से संपन्न मनुष्य हर तरह से समर्थ हो जाता है) सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ। (इस मन्त्र के प्रभाव से धन- संपत्ति एवं वंश की वृद्धि होती है।)

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योsश्रान विन्देयं पुरुषानहम्॥ (15 )

हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन सम्पूर्ण जगत में विख्यात लक्ष्मी laxmi को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र ना जाएँ बुलाएँ । जिन लक्ष्मी laxmi के द्वारा मैं सुवर्ण , उत्तम ऐश्वर्य ,गौ ,दासी ,घोड़े और पुत्र -पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी laxmi को प्राप्त करूँ ऐसी लक्ष्मी मेरे घर में निवास करें । ( इस मन्त्र के शुभ प्रभाव से अचल संपत्ति की प्राप्ति होती है। )

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्॥ (16 )

जो मनुष्य सुख-समृद्धि अतुल लक्ष्मी laxmi कि कामना करता हो ,वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ ही श्रीसूक्त shri sukt कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें।इससे उस पर माँ लक्ष्मी ma laxmi की सदैव कृपा बनी रहती है । ( जो पूर्ण श्रद्धा से नित्य श्री सूक्त का पाठ करता है उसे इस संसार में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता है )

कनकधारा स्तोत्रम्

ॐ अङ्गं हरै (हरेः) पुलकभूषण-माश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुला-भरणं तमालं |
अंगीकृता-ऽखिलविभूतिर-पॉँगलीला-माँगल्य-दाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || १ ||

अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की वह दृष्टि मेरे लिए मंगलदायी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणि-हितानि गताऽगतानि ।
मला-र्दशोर्म-धुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || २ ||

अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करें।

विश्वामरेन्द्र पद-विभ्रम-दानदक्षमा-नन्दहेतु-रधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धं-मिन्दीवरोदर सहोदर-मिन्दीरायाः || ३ ||

अर्थ – जो देवताओ के स्वामी इंद्र को के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहंता नाम के दैत्य के शत्रु भगवान विष्णु को भी आप आधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है, नीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई है, उन लक्ष्मीजी के अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृश्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर पड़े।

आमीलिताक्ष-मधिगम्य मुदा-मुकुन्दमा-नन्द कंद-मनिमेष-मनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिक-पद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ४ ||

अर्थ – जिसकी पुतली एवं भौहे काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखनेवाले आनंद सत्चिदानन्द मुकुंद भगवान को अपने निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती हो, ऐसे शेष पर शयन करने वाले भगवान नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें धन-संपत्ति प्रदान करे।

बाह्यन्तरे मुरजितः (मधुजितः) श्रुत-कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याण-मावहतु में कमला-लयायाः ॥ ५ ॥

अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।

कालाम्बुदालि ललितो-रसि कैटभारे-र्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव |
मातुः समस्त-जगतां महनीय-मूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गव-नंदनायाः || ६ ||

अर्थ – जिस तरह से मेघो की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघपंक्ति की तरह सुमनोहर वक्षस्थल पर आप एक विद्युत के समान देदीप्यमान होती हो, जिन्होंने अपने अविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है वो भगवती लक्ष्मी मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावा-न्मांगल्य-भाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मय्यापतेत्त-दिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालय-कन्यकायाः || ७ ||

अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर पड़े।

दद्याद दयानु-पवनो द्रविणाम्बु-धारामस्मिन्न-किञ्चन विहङ्ग-शिशो विषण्णे |
दुष्कर्म-धर्म-मपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी-नयनाम्बु-वाहः ॥ ८ ॥

अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें।

इष्टा-विषिश्टम-तयोऽपि यया दयार्द्र-दृष्टया त्रिविष्ट-पपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहष्ट-कमलोदर-दीप्ति-रिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर-विष्टरायाः || ९ ||

अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।

गीर्देव-तेति गरुड़-ध्वज-सुन्दरीति शाकम्भ-रीति शशि-शेखर-वल्लभेति |
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थि-तायै तस्यै नमस्त्रिभुवनै-कगुरोस्तरुण्यै || १० ||

अर्थ – जो माँ भगवती श्री सृष्टिक्रीड़ा में अवसर अनुसार वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है, पालनक्रीड़ा के समय लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी के विराजमान होती है, प्रलयक्रीड़ा के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रूद्रशक्ति) भगवान शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान होती है, उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु पालनहार विष्णु की नित्य यौवना प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा सम्पूर्ण नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभ-कर्मफल-प्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्ण-वायै |
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र-निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै || ११ ||

अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालीकनि-भाननायै नमोऽस्तु दुग्धो-दधि-जन्म-भूत्यै |
नमोऽस्तु सोमा-मृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै || १२ ||

अर्थ – कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नयिकायै ।
नमोऽस्तु देवादि दया-परायै नमोऽस्तु शारङ्ग-युध वल्लभायै || १३ ||

अर्थ – सोने के कमलासन पर बैठनेवाली, भूमण्डल नायिका, देवताओ पर दयाकरनेवाली, शाङ्घायुध विष्णु की वल्लभा शक्ति को नमस्कार है।

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि संस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै || १४ ||

अर्थ – भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में निवास करनेवाली देवी, कमल के आसनवाली, दामोदर प्रिय लक्ष्मी, आपको मेरा नमस्कार है।

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै |
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ १५ ॥

अर्थ – भगवान् विष्णु की कान्ता, कमल के जैसे नेत्रोंवाली, त्रैलोक्य को उत्पन्न करने वाली, देवताओ के द्वारा पूजित, नन्दात्मज की वल्लभा ऐसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नंदनानि साम्राज्य-दान-विभवानि सरो-रुहाक्षि ।
त्वद्वन्द-नानि दुरिता-हरणो-द्यतानी मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये || १६ ||

अर्थ – कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।


यत्कटाक्ष-समुपासना-विधिः सेव-कस्य सकलार्थ-सम्पदः ।
सन्त-नोति वचनाङ्ग-मानसै-स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥ १७ ॥

अर्थ – जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।

सरसिज-निलये सरोज-हस्ते धवल-तमांशुक-गन्धमाल्य-शोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यं ॥ १८ ॥

अर्थ – हे भगवती नारायण की पत्नी आप कमल में निवास करने वाली है, आप के हाथो में नीलकमल शोभायमान है आप श्वेत वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित है, आपकी झांकी बड़ी मनोहर है, अद्वितीय है, हे त्रिभुवन के ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली आप मुझ पर भी प्रसन्न हो जाईये।

दिग्ध-स्तिभिः कनककुम्भ-मुखावसृष्ट-स्वर्वाहिनी-विमलचारु-जलप्लु तांगीं ।
प्रात-र्नमामि जगतां जननी-मशेष-लोकाधिनाथ-गृहिणी-ममृताब्धि-पुत्रीं || १९ ॥

अर्थ – दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गए, आकाशगंगा के स्वच्छ और मनोहर जल से जिन भगवान के श्रीअंगो का अभिषेक (स्नान) होता है, उस समस्त लोको के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी, समुद्र तनया (क्षीरसागर पुत्री), जगतजननी भगवती लक्ष्मी को मै प्रातःकाल नमस्कार करता हू ।

कमले कमलाक्ष-वल्लभे त्वां करुणा-पूरतरङ्गी-तैर-पारङ्गैः ।
अवलोक-यमां-किञ्चनानां प्रथमं पात्रम-कृत्रिमं दयायाः || २० ||

अर्थ – कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।

स्तुवन्ति ये स्तुति-भिरमू-भिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवन-मातरं रमां ।
गुणाधिका गुरु-तरभाग्य-भाजिनो (भागिनो) भवन्ति ते भुवि बुध-भाविता-शयाः || २१ ||

अर्थ – जो मनुष्य इन स्तु‍तियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।

ॐ सुवर्ण-धारास्तोत्रं यच्छंकराचार्य निर्मितं |
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत || २२ ||

अर्थ – यह उत्तम स्तोत्र जो आद्यगुरु शंकराचार्य विरचित स्तोत्र का (कनकधारा) का पाठ तीनो कालो में (प्रातःकाल मध्याह्नकाल-सायंकाल) करता है वो मनुष्य या साधक कुबेर के समान धनवान हो जाता है।

॥ इति श्रीमद्द शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्णं॥

लक्ष्मी बीज मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्म्यै नम:

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः

ॐ श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः

लक्ष्मी स्तुति

“ॐ महालक्ष्म्यै नमो नमः, विष्णुप्रियायै नमो नमः, धनप्रदायै नमो नमः, विश्वजनन्यै नमो नमः।”

लघु बीज मंत्र:
“श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः।”

कुबेर मंत्र, स्तोत्र, कवच

ध्यान मंत्र:

कुबेराध्यानं मनुजवहव्यविमानं वरस्थितं गरुड़रतनिभं निधिनायकम्।

शिवसखं मुकुटादि विभूषितं वरगदे दधातम भज तुण्डिलम्।

अष्टाक्षर मंत्र: ॐ वैश्रवणाय स्वाहा।

षोडशाक्षर मंत्र: ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।

पंचत्रिमशत अक्षर मंत्र: ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यधिपतये धनधान्य समृद्धिम् मे देहि दापय स्वाहा।

कुबेर अष्टलक्ष्मी स्तोत्र: ॐ कुबेराय अष्टलक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं कुबेराय नमः

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट‑लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः।

धन्वंतरि मंत्र, स्तोत्र, कवच

ॐ धन्वंतरये नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृतकलश हस्ताय सर्वामय विनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्री महाविष्णवे नमः

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः

धन्वंतरि स्तोत्रम्:
शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम्।
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम्॥

सरल समृद्धि, सुख-शांति के बीज मंत्र

ॐ श्रीं क्लीं नमः

ॐ ऐं श्रीं नमः

ॐ ह्रीं श्रीं नमः

आरती

॥ आरती श्री लक्ष्मी जी ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता,मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत,हरि विष्णु विधाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी,तुम ही जग-माता।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी,सुख सम्पत्ति दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत,ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।

सब सम्भव हो जाता,मन नहीं घबराता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते,वस्त्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर,क्षीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन,कोई नहीं पाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती,जो कोई जन गाता।

उर आनन्द समाता,पाप उतर जाता॥

ॐ जय लक्ष्मी माता॥

यम दीपदान विधि

प्रदोष काल में (शाम 5:48 से 7:04 बजे तक) मुख्य द्वार के दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाएँ। यह कर्म मृत्यु‑भय और बाधाओं से रक्षा का प्रतीक है।

धनतेरस की खरीदारी – क्या खरीदें और क्यों?

इस शुभ दिन पर खरीदी गई वस्तुएँ न केवल धन‑वृद्धि का प्रतीक हैं, बल्कि देवी लक्ष्मी को घर आमंत्रण का माध्यम भी हैं। यह माना जाता है कि इन चीजों से घर में शांति, समृद्धि और सौभाग्य का प्रवेश होता है।

धनतेरस पर क्या खरीदें
धनतेरस पर क्या खरीदें

खरीदने योग्य पवित्र वस्तुएँ:

  • पान के पत्ते और सुपारी
  • खील और बताशा
  • साबुत धनिया
  • 13 मिट्टी के दीपक
  • गोमती चक्र
  • कोड़ियां
  • लक्ष्मी‑गणेश जी की प्रतिमा
  • कुबेर यंत्र और महालक्ष्मी यंत्र
  • सोने‑चांदी के सिक्के
  • सफेद धागे वाला झाड़ू
  • नमक (नया पैक)
  • नए कपड़े
  • खिलौने
  • कमल गट्टा
  • लक्ष्मी चरण चिन्ह

महत्व:

  • पान और सुपारी अर्पित करने से वैवाहिक और पारिवारिक सुख बढ़ता है।
  • साबुत धनिया धन वृद्धि का प्रतीक माना गया है।
  • 13 दीपक जलाने से वर्ष भर घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
  • झाड़ू खरीदने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  • नमक घर में शुद्धता का संकेत है और रोग‑प्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है।

विशेष धनतेरस उपाय (Dhanteras 2025 Upay)

  1. गोमती चक्र उपचार:
    पाँच गोमती चक्रों पर केसर और चंदन से श्रीं ह्रीं श्री लिखें, पूजा के बाद इन्हें धन स्थान पर रखें।
  2. श्री यंत्र स्थापना:
    तांबे या पीतल के पात्र में गुलाब जल से स्नान कराकर श्री यंत्र रखें।
  3. कुबेर दिशा पूजन:
    दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कुबेर मंत्रों का जप करें।
  4. मुख्य द्वार प्रकाश:
    दोनों ओर दीपक जलाएँ — इससे घर में धन‑वृद्धि और दरिद्रता नाश का योग बनता है।

घर में महालक्ष्मी का आगमन कैसे सुनिश्चित करें?

धनतेरस 2025
धनतेरस 2025
  • हर दिशा में स्वच्छता रखें और सुगंधित जल का छिड़काव करें।
  • मुख्य दरवाजे पर लक्ष्मी चरण के पदचिन्ह बनाएं।
  • शंख ध्वनि और घंटा नाद से वातावरण शुद्ध करें।
  • “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं” का 108 बार जप करें।

पूजा के दौरान आचरण

  • पूजा के समय मन एकाग्र रखें।
  • पूजा‑स्थल पर लाल या गुलाबी वस्त्र धारण करें।
  • धनतेरस रात को 13 दीपक अवश्य जलाएँ — एक मुख्य द्वार पर और शेष पूरे घर में फैलाएँ।

स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए धन्वंतरि पूजा

भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता हैं। धनतेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है।
इस दिन अमृतकलश के प्रतीक रूप में तुलसी पत्र या लौकी पर जल अर्पित करें।

धन्वंतरि स्तोत्र का अर्थ:

जो देवता शंख, चक्र और अमृतकलश धारण करते हैं, वे रोगों का नाश करते हैं।
धनतेरस पर धन्वंतरि की स्मृति से रोगमुक्ति और ऊर्जा का संचार होता है।

FAQs: धनतेरस 2025

प्र. 1: धनतेरस पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त क्या है?
उ.: शाम 7:16 – 8:20 बजे का समय सर्वश्रेष्ठ है।

प्र. 2: क्या खरीदना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है?
उ.: सोना, चांदी, बर्तन, झाड़ू, धनिया और लक्ष्मी‑गणेश प्रतिमा।

प्र. 3: यम दीपदान कब करना चाहिए?
उ.: प्रदोष काल में — दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाकर।

प्र. 4: पूजा में कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए?
उ.: लक्ष्मी मंत्र, कुबेर मंत्र और धन्वंतरि मंत्र का शुद्ध उच्चारण।

प्र. 5: महालक्ष्मी घर कैसे आएँ?
उ.: स्वच्छता, सही विधि, और श्रद्धा‑भाव से की गई पूजा से।

समापन

इस धनतेरस 2025 पर पूजा विधि, शुभ मंत्र और शुभ खरीदारी से अपने घर महालक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि का स्वागत करें।
हर दीपक में श्रद्धा का प्रकाश जलाएँ, और इस पर्व को समृद्धि, स्वास्थ्य और आशा का प्रतीक बनाएं।


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