आख़िर तक – एक नज़र में
- इस वर्ष देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई 2025 को रखा जाएगा, जो अत्यंत शुभ मानी जा रही है।
- इसी पवित्र दिन से भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं, जिससे चातुर्मास का आरंभ होता है।
- इस बार रवि और त्रिपुष्कर जैसे दुर्लभ संयोग बन रहे हैं, जो व्रत के पुण्य फल को कई गुना बढ़ा देंगे।
- चातुर्मास का महत्व साधना और संयम से जुड़ा है, इस अवधि में मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।
- इस लेख में हम व्रत की विधि, पौराणिक कथा और भगवान विष्णु के पाताल लोक जाने का रहस्य जानेंगे।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष स्थान है। यह तिथि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इसी दिन से सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस काल को चातुर्मास कहा जाता है। चातुर्मास का महत्व आध्यात्मिक उन्नति और आत्म-संयम से जुड़ा है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि लाता है। इस वर्ष यह शुभ तिथि 6 जुलाई 2025 को है।
देवशयनी एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि 5 जुलाई 2025 को शाम 6:58 बजे शुरू होगी। यह तिथि 6 जुलाई की रात 9:14 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई, रविवार को रखा जाएगा।
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:08 से 04:49 बजे तक।
- अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:58 से दोपहर 12:54 बजे तक।
- रवि योग: सुबह 05:56 से रात 10:42 बजे तक।
- त्रिपुष्कर योग: रात 09:14 से रात 10:42 बजे तक।
इन शुभ योगों के कारण इस बार की एकादशी अत्यंत फलदायी मानी जा रही है।
क्या है देवशयनी एकादशी का महत्व?
इस एकादशी को ‘पद्मनाभा’ और ‘हरिशयनी एकादशी’ भी कहते हैं। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत करने से अनजाने में हुए पाप भी नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि यह व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है। इस दिन से चातुर्मास शुरू होता है। इन चार महीनों में विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते। हालांकि, पूजा, अनुष्ठान और खरीदारी की जा सकती है। यह समय साधना और तप के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
क्यों योग निद्रा में जाते हैं भगवान विष्णु?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु अपने भक्त राजा बलि का वचन रखने के लिए पाताल लोक जाते हैं। वामन अवतार में उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। दो पग में उन्होंने पृथ्वी और स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। इससे प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पाताल का राजा बनाया। बलि ने वरदान मांगा कि भगवान उसके महल में निवास करें। माता लक्ष्मी के अनुरोध पर भगवान विष्णु चार माह बलि के पास रहते हैं। यह अवधि देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक होती है।
देवशयनी एकादशी व्रत की संपूर्ण विधि
- व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- घर के मंदिर में दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल और पीतांबर अर्पित करें।
- पंचामृत से अभिषेक कर षोडशोपचार पूजन करें।
- व्रत कथा पढ़ें या सुनें और अंत में आरती करें।
- पूजा के बाद सफेद चादर वाले बिस्तर पर भगवान को शयन कराएं।
- इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें
चातुर्मास का महत्व संयम और नियम पालन में निहित है। इन चार महीनों में कुछ चीजों का त्याग करना चाहिए।
- क्या त्यागें: गुड़, तेल, शहद, मूली, बैंगन और दूसरे का दिया दही-भात।
- क्या करें: जमीन पर सोएं, ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- श्रावण में साग, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।
देवशयनी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा
सतयुग में मांधाता नाम के एक प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। इससे भयंकर अकाल पड़ गया। प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगी। दुखी राजा अपनी सेना के साथ जंगल की ओर चल दिए। वहाँ वे अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुँचे। राजा ने ऋषि से अपनी व्यथा सुनाई। ऋषि ने बताया कि उनके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। सतयुग में केवल ब्राह्मणों को तप का अधिकार था। इसी अधर्म के कारण वर्षा नहीं हो रही है।
राजा एक निरपराध तपस्वी को मारना नहीं चाहते थे। उन्होंने ऋषि से कोई और उपाय पूछा। तब महर्षि अंगिरा ने उन्हें देवशयनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने राजधानी लौटकर सभी के साथ विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई। पूरा राज्य फिर से धन-धान्य से संपन्न हो गया।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- देवशयनी एकादशी 6 जुलाई 2025 को है, जिससे चार माह के चातुर्मास का आरंभ होगा।
- भगवान विष्णु इस दिन से चार महीनों के लिए पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाते हैं।
- इस बार रवि और त्रिपुष्कर योग बनने से व्रत का फल कई गुना अधिक प्राप्त होगा।
- चातुर्मास का महत्व साधना और संयम से है, इस दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
- विधि-विधान से व्रत रखने पर व्यक्ति को पापों से मुक्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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