आख़िर तक – एक नज़र में
- सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के भलाई के लिए बने कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई।
- भरण-पोषण का उद्देश्य जीवनस्तर सुधारना है, न कि संपत्ति की बराबरी करना।
- केस में पति को पत्नी को ₹12 करोड़ का भरण-पोषण भुगतान करने का आदेश दिया।
- कोर्ट ने पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए आपराधिक मामलों को खारिज किया।
- महिलाओं से कानून को धमकी और वसूली के हथियार के रूप में इस्तेमाल न करने की अपील की।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महिलाओं के कल्याण के लिए बनाए गए कड़े कानूनों के दुरुपयोग पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का उद्देश्य पति-पत्नी के वित्तीय स्तर को बराबर करना नहीं है, बल्कि आश्रित पत्नी को सम्मानजनक जीवनस्तर प्रदान करना है।
केस का संदर्भ
यह टिप्पणी एक विवादित मामले के दौरान आई, जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ अतुल सुभाष ने दावा किया कि उनकी पत्नी और उनके परिवार ने उनसे ₹2 लाख मासिक भरण-पोषण की मांग की, जिसे बाद में ₹3 करोड़ वार्षिक तक बढ़ा दिया गया।
विवाह की पवित्रता पर जोर
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और पंकज मिठा की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्था माना जाता है, न कि एक व्यावसायिक सौदा। कोर्ट ने पति को ₹12 करोड़ का भुगतान अंतिम समझौते के रूप में करने का आदेश दिया।
कानून के दुरुपयोग पर सख्त संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को समझना चाहिए कि ये कानून उनके कल्याण के लिए बनाए गए हैं, न कि धमकी या वसूली का माध्यम बनने के लिए। कोर्ट ने आपराधिक शिकायतों के दुरुपयोग को लेकर भी अपनी चिंता जाहिर की।
निष्कर्ष
अंत में, कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण तय करते समय पति की आय के साथ-साथ पत्नी की जरूरतें और अन्य कारकों का ध्यान रखना चाहिए।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- भरण-पोषण का उद्देश्य जीवनस्तर सुधारना है।
- कानून का दुरुपयोग न करें।
- न्यायिक निर्णय महिला कल्याण और न्याय के बीच संतुलन बनाते हैं।
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