आख़िर तक – एक नज़र में
- शशि थरूर कूटनीतिक विवाद ने भारतीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है।
- ऑपरेशन सिंदूर के बाद, सरकार ने थरूर को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक मिशन का नेतृत्व सौंपा।
- भाजपा ने इस मुद्दे पर कांग्रेस और विशेषकर राहुल गांधी को घेरने का प्रयास किया।
- कांग्रेस ने थरूर के मनोनयन पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे पार्टी से बिना पूछे लिया गया फैसला बताया।
- यह पूरा घटनाक्रम राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति की जटिलताओं को उजागर करता है।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
परिचय: थरूर के मनोनयन से उपजा राजनीतिक तूफान
कांग्रेस सांसद शशि थरूर एक बार फिर राजनीतिक सुर्खियों में हैं। प्रधानमंत्री मोदी सरकार द्वारा उन्हें एक प्रमुख बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंपे जाने के बाद शशि थरूर कूटनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। यह प्रतिनिधिमंडल ऑपरेशन सिंदूर के मद्देनजर विदेश भेजा जा रहा है। थरूर, जो पूर्व संयुक्त राष्ट्र राजनयिक रह चुके हैं, के इस मनोनयन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच तीखी जुबानी जंग छेड़ दी है। थरूर इस राजनीतिक टकराव के केंद्र में आ गए हैं। यह विवाद विदेश नीति जैसे अहम मसलों पर घरेलू राजनीति के हावी होने का एक और उदाहरण प्रस्तुत करता है।
ऑपरेशन सिंदूर पर कूटनीतिक पहल: भारत का एकीकृत स्वर
मामले की शुरुआत 22 अप्रैल को हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद हुई। इस हमले में 26 नागरिकों की दुखद मृत्यु हो गई थी। इसके प्रत्युत्तर में, सरकार ने “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया। सरकार ने सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों को प्रमुख वैश्विक राजधानियों में भेजने की घोषणा की। इनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देश भी शामिल हैं। इन प्रतिनिधिमंडलों का उद्देश्य पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के विरुद्ध भारत का एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करना था।
प्रत्येक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विभिन्न दलों के प्रमुख सांसद कर रहे हैं। कांग्रेस सांसद और विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर भी इनमें से एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वालों में शामिल हैं। इस भूमिका को स्वीकार करते हुए, थरूर ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “मैं भारत सरकार के निमंत्रण से सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। मुझे हाल की घटनाओं पर हमारे राष्ट्र का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए पांच प्रमुख राजधानियों में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का अवसर मिला है। जब राष्ट्रीय हित का प्रश्न हो, और मेरी सेवाओं की आवश्यकता हो, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। जय हिंद!” थरूर का यह कदम उनके अनुभव और वाक्पटुता को दर्शाता है।
थरूर के मनोनयन पर भाजपा बनाम कांग्रेस: तीखे आरोप-प्रत्यारोप
शशि थरूर के इस कूटनीतिक मिशन में शामिल होने को भाजपा ने तुरंत कांग्रेस पर हमला बोलने का हथियार बना लिया। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सवाल उठाया, “शशि थरूर की वाक्पटुता पर कोई संदेह नहीं कर सकता… तो फिर कांग्रेस – और विशेष रूप से राहुल गांधी – ने उन्हें प्रतिनिधिमंडलों के लिए नामित क्यों नहीं किया? क्या यह असुरक्षा है? ईर्ष्या? या ‘हाईकमान’ से आगे निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रति असहिष्णुता?”
भाजपा के एक अन्य प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने भी इसी तरह की भावना व्यक्त की। उन्होंने कहा, “राहुल गांधी अपनी ही पार्टी में भारत के लिए बोलने वाले हर व्यक्ति से नफरत क्यों करते हैं?” यह शशि थरूर कूटनीतिक विवाद को और हवा दे गया।
दूसरी ओर, कांग्रेस ने सरकार को चार नामों की एक अलग सूची सौंपी थी। इनमें आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और राजा बराड़ शामिल थे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश के अनुसार, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कांग्रेस नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को फोन पर अनुरोध करने के बाद ये नाम सद्भावनापूर्वक भेजे गए थे।
लेकिन, कांग्रेस तब हैरान रह गई जब एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में शशि थरूर को प्रतिनिधिमंडल नेता के रूप में घोषित किया गया। थरूर का नाम कांग्रेस द्वारा दिए गए चार नामों में शामिल नहीं था। जयराम रमेश ने तीखे शब्दों में कहा, “कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना में ज़मीन-आसमान का अंतर है।” उन्होंने सरकार पर “नारद मुनि राजनीति” करने का आरोप लगाया। रमेश ने स्पष्ट किया, “आप पार्टी से परामर्श किए बिना सांसदों के नाम शामिल नहीं कर सकते। हम अपने द्वारा सौंपे गए चार नामों को नहीं बदलेंगे।” यह स्थिति शशि थरूर कूटनीतिक विवाद की गंभीरता को दर्शाती है।
भाजपा का कांग्रेस के प्रस्तावित नामों पर हमला
भाजपा ने कांग्रेस द्वारा नामित नामों को भी निशाना बनाया। अमित मालवीय ने सैयद नसीर हुसैन के नाम को “चौंकाने वाला” बताया। उन्होंने हुसैन के समर्थकों द्वारा कथित तौर पर “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाने से जुड़े पिछले विवादों का हवाला दिया। इन दावों का आधार गिरफ्तारियां और फॉरेंसिक रिपोर्टें थीं।
मालवीय ने गौरव गोगोई की कथित “15-दिवसीय” पाकिस्तान यात्रा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कांग्रेस पर “गंभीर आरोपों” का सामना कर रहे नेताओं को संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय मिशनों पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजने का आरोप लगाया। मालवीय ने पूछा, “कांग्रेस क्या संदेश देने की कोशिश कर रही है, और वास्तव में किसके हितों की सेवा की जा रही है?” इन आरोपों ने शशि थरूर कूटनीतिक विवाद में एक नया आयाम जोड़ दिया।
सरकार का ‘राष्ट्रीय एकता’ का दावा: मतभेदों से परे एक पहल
इस राजनीतिक तूफान के बीच, नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना पक्ष मजबूती से रखा है। सरकार का कहना है कि प्रतिनिधिमंडल का चयन उनकी दलीय संबद्धता और वाक्पटुता को ध्यान में रखकर सावधानीपूर्वक किया गया है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “यह राजनीति से ऊपर, मतभेदों से परे राष्ट्रीय एकता का एक शक्तिशाली प्रतिबिंब है।” उन्होंने आगे कहा कि लक्ष्य विश्व स्तर पर भारत के “आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता” के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करना है।
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार, प्रत्येक प्रतिनिधिमंडल के साथ अनुभवी राजनयिक होंगे। ये प्रतिनिधिमंडल लगभग पांच देशों का दौरा करेंगे। प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करने वाले अन्य नेताओं में भाजपा के रविशंकर प्रसाद, बैजयंत पांडा, जद(यू) के संजय झा, डीएमके की कनिमोझी, एनसीपी(एसपी) की सुप्रिया सुले और शिवसेना के श्रीकांत शिंदे शामिल हैं। यह विविधतापूर्ण चयन सरकार के राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखने के दावे को पुष्ट करता है।
क्या कांग्रेस में मतभेद? थरूर की स्वतंत्र राह
शशि थरूर का विदेश नीति पर कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से बढ़ता अलगाव उन्हें पार्टी के लिए असहज स्थिति में डाल सकता है। हाल ही में हुई कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में, वरिष्ठ नेताओं ने कथित तौर पर चेतावनी दी कि “थरूर ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है।” हालांकि थरूर ने बाद में बैठक में “रचनात्मक सुझाव” दिए, लेकिन भारत-पाकिस्तान संबंधों जैसे मुद्दों पर उनके अकेले रुख और सरकार के कूटनीतिक कदमों का समर्थन करने की उनकी इच्छा पर चिंताएं बनी हुई हैं।
सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद एक वरिष्ठ नेता के हवाले से कहा गया, “हम एक लोकतांत्रिक पार्टी हैं और लोग अपनी राय व्यक्त करते रहते हैं, लेकिन इस बार थरूर ने सीमा लांघ दी है।” यह टिप्पणी शशि थरूर कूटनीतिक विवाद के पीछे पार्टी के आंतरिक गतिरोधों की ओर इशारा करती है।
शशि थरूर ने अपनी ओर से शुरू से ही स्पष्ट कर दिया था कि वे जो विचार प्रस्तुत कर रहे थे, वे उनके अपने थे। ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी के लिए कांग्रेस की आलोचना की खबरों के बाद थरूर ने कहा, “इस समय, संघर्ष के समय, मैंने एक भारतीय के रूप में बात की। मैंने कभी किसी और के लिए बोलने का नाटक नहीं किया। मैं पार्टी का प्रवक्ता नहीं हूं। मैं सरकार का प्रवक्ता नहीं हूं। मैंने जो कुछ भी कहा है, आप उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं, इसके लिए व्यक्तिगत रूप से मुझे दोषी ठहराएं, और यह ठीक है।”
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, “मैंने यह बहुत स्पष्ट कर दिया कि मैं अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त कर रहा हूं। यह वास्तव में राष्ट्रीय विमर्श में एक योगदान था, ऐसे समय में जब हमारे लिए ध्वज के चारों ओर रैली करना बहुत महत्वपूर्ण था, खासकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर। हमारे दृष्टिकोण को सुने जाने की относительная कमी थी, खासकर अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व में।” उन्होंने यह भी जोड़ा, “लोग मेरे दृष्टिकोण को अस्वीकार करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। मुझे पार्टी से कोई सूचना नहीं मिली है।” थरूर का यह बयान शशि थरूर कूटनीतिक विवाद में उनके स्वतंत्र रुख को और भी स्पष्ट करता है। यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पार्टी लाइन के बीच संतुलन पर भी सवाल उठाता है।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- शशि थरूर कूटनीतिक विवाद मोदी सरकार द्वारा उन्हें एक अहम प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंपने से शुरू हुआ।
- यह विवाद ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
- भाजपा और कांग्रेस के बीच इस मुद्दे पर तीखी बयानबाजी हुई, जिससे राजनीतिक मतभेद खुलकर सामने आए।
- कांग्रेस ने थरूर के चयन की प्रक्रिया पर सवाल उठाए, जबकि भाजपा ने कांग्रेस के आंतरिक मामलों पर निशाना साधा।
- यह प्रकरण राष्ट्रीय हित और विदेश नीति जैसे मुद्दों पर राजनीतिक दलों के बीच समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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