भारत-पाकिस्तान तनाव: पहलगाम हमले के बाद कूटनीति तेज

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भारत-पाकिस्तान तनाव: पहलगाम हमले के बाद कूटनीति तेज

आख़िर तक – एक नज़र में

  • पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव अभूतपूर्व स्तर पर पहुँच गया है।
  • विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तनाव कम करने के लिए 24 से अधिक वैश्विक नेताओं से बात की है।
  • अमेरिका, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों ने दोनों परमाणु शक्तियों से संयम बरतने का आग्रह किया है।
  • भारत ने हमले के सीमा पार आतंकवाद लिंक को उजागर करने के लिए राजनयिक प्रयास तेज कर दिए हैं।
  • तनाव कम करने के ताजा प्रयासों के बीच, ऐतिहासिक उदाहरण भारत की संभावित प्रतिक्रिया पर सवाल उठाते हैं।

आख़िर तक – विस्तृत समाचार

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पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव चरम पर

पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव खतरनाक रूप से बढ़ गया है। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। इसके बाद से ही दोनों पड़ोसी देशों के बीच टकराव की आशंका गहरा गई है। पिछले कुछ दिनों में, स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए कूटनीतिक चैनल पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। वैश्विक शक्तियां दोनों परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों के बीच पूर्ण पैमाने पर संघर्ष को टालने के लिए प्रयासरत हैं।

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कूटनीतिक हलचल तेज: जयशंकर की व्यस्तता

पहलगाम हमले के तुरंत बाद, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का फोन लगातार बज रहा है। सऊदी अरब से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका तक, दुनिया भर के नेताओं ने उनसे संपर्क साधा है। जैसे-जैसे भारत-पाकिस्तान तनाव बढ़ा, इन कॉलों की संख्या में भी वृद्धि हुई। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार को 130 से अधिक देशों से एकजुटता के संदेश मिले हैं। विदेश मंत्री जयशंकर ने स्वयं एक्स पर जानकारी दी कि उन्होंने हमले के बाद कम से कम 24 राष्ट्राध्यक्षों या उनके राजनयिकों से बात की है।

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भारत का राजनयिक दबाव: पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश

हमले के कुछ ही घंटों बाद, भारत ने कई देशों के राजनयिकों और दूतों के साथ एक बैठक की। इसका उद्देश्य हमले के सीमा पार आतंकवाद से जुड़े तार को उजागर करना था। भारत न केवल आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने के लिए समर्थन जुटा रहा है, बल्कि उसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने का भी प्रयास कर रहा है। भारत लगातार पाकिस्तान पर हमले के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगा रहा है।

खाड़ी देशों और ईरान की संयम की अपील

सैन्य संघर्ष के बढ़ते खतरे के बीच, खाड़ी देशों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कतर, सऊदी अरब और कुवैत ने भारत और पाकिस्तान दोनों से संयम बरतने का आग्रह किया है।

  • ईरान का मध्यस्थता प्रस्ताव: ईरान ने सबसे पहले प्रतिक्रिया दी। ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराघची ने शांति और स्थिरता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस मुश्किल समय में बेहतर समझ बनाने के लिए ईरान की “अच्छी सेवाओं” की पेशकश की। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान ईरान के भाईचारे वाले पड़ोसी हैं।
  • सऊदी अरब की चिंता: सऊदी विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान अल सऊद ने जयशंकर और उनके पाकिस्तानी समकक्ष से अलग-अलग बात की। सऊदी अरब ने दोनों देशों से तनाव कम करने और विवादों को कूटनीतिक चैनल से सुलझाने का आह्वान किया।
  • कतर और कुवैत का रुख: कतर ने बातचीत के माध्यम से मुद्दों को हल करने का आह्वान किया। कुवैत ने भी कहा कि “तर्क और संवाद” सभी मुद्दों को हल करने का आधार होना चाहिए।

इन खाड़ी देशों का समर्थन भारत के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब वे धीरे-धीरे पाकिस्तान से दूरी बना रहे हैं। अधिकांश मुस्लिम देशों द्वारा हमले की निंदा और आतंकवाद की आलोचना के बाद पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगी अब उसे बिना शर्त समर्थन नहीं दे रहे हैं।

अमेरिका का हस्तक्षेप: जांच में सहयोग का आग्रह

तनाव कम करने की सबसे मजबूत आवाज़ संयुक्त राज्य अमेरिका से आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रतिशोध का वादा करने और एक पाकिस्तानी मंत्री द्वारा हमले की आशंका जताए जाने के बाद, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एस जयशंकर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ दोनों से बात की।

  • भारत से आग्रह: रुबियो ने जयशंकर के साथ अपनी बातचीत में आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ सहयोग करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता दोहराई। साथ ही, उन्होंने सावधानी बरतने का आग्रह किया। उन्होंने भारत को पाकिस्तान के साथ मिलकर तनाव कम करने और शांति बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • पाकिस्तान से अपील: रुबियो ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से पहलगाम हमले की जांच में सहयोग करने को कहा। उन्होंने हमले को “अविवेकपूर्ण” बताया।

क्या तनाव कम हो रहा है?

यह देखना अभी बाकी है कि क्या इन कूटनीतिक हस्तक्षेपों से भारत-पाकिस्तान तनाव कम हुआ है। हालांकि, भारत ने गुरुवार को अटारी-वाघा सीमा के माध्यम से पाकिस्तानी नागरिकों की वापसी की समय सीमा में ढील दी। पिछले 24 घंटों में पाकिस्तानी नेताओं की ओर से कोई भड़काऊ बयान भी नहीं आया है। इससे पहले, शरीफ ने कहा था कि पाकिस्तान 22 अप्रैल के हमले की तटस्थ और स्वतंत्र जांच के लिए तैयार है।

ऐतिहासिक संदर्भ: क्या कूटनीति हमेशा काम करती है?

हालांकि, वैश्विक शक्तियों द्वारा संयम बरतने की ऐसी अपीलें नई नहीं हैं। अतीत में भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमलों के बाद इसी तरह के कूटनीतिक चैनल सक्रिय हुए थे।

  • पुलवामा हमला (2019): 44 सैनिकों की शहादत वाले पुलवामा हमले के बाद, तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को फोन किया था। यह हमला पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद ने किया था। इसके 11 दिन बाद, भारत ने पीओके के बालाकोट में हवाई हमले करके सीमा पार आतंकी लॉन्चपैड को नष्ट कर दिया था। इसके बाद हवाई झड़प हुई और विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तान ने पकड़ लिया था, जिन्हें तीन दिन बाद रिहा किया गया।
  • उरी हमला (2016): तीन साल पहले, उरी में सेना ब्रिगेड मुख्यालय पर हुए हमले में 19 सैनिक शहीद हुए थे। तब भी, तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने सुषमा स्वराज से तनाव कम करने का आग्रह किया था। हालांकि, भारत ने 10 दिनों के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की। कमांडो ने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में घुसकर कई आतंकी लॉन्चपैड नष्ट कर दिए थे।

ये ऐतिहासिक उदाहरण बताते हैं कि कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद, भारत ने अतीत में हमलों का सैन्य जवाब दिया है। इसलिए, मौजूदा भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच आगे क्या होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें

  • पहलगाम हमले ने भारत-पाकिस्तान तनाव को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है।
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका और खाड़ी देशतनाव कम करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं।
  • भारत सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • कूटनीतिक चैनलों के सक्रिय होने और कुछ सकारात्मक संकेतों के बावजूद, स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है।
  • पुलवामा और उरी के बाद भारत की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि कूटनीति के साथ सैन्य प्रतिक्रिया भी एक विकल्प रही है।

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आख़िर तक मुख्य संपादक
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