सुप्रीम कोर्ट ने बायजूस द्वारा बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये का सेटलमेंट करने के फैसले पर सवाल उठाए हैं। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में एक तीन-जजों की बेंच ने यह पूछा कि जब बायजूस पर 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, तो केवल बीसीसीआई के साथ ही सेटलमेंट क्यों किया गया?
बायजूस का 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज, जिसमें बीसीसीआई को 158 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी था, अब चर्चा का मुख्य विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस सेटलमेंट को “अविवेकी” बताते हुए इसे रोकने का आदेश दिया और अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) को निर्देश दिए कि कोई भी क्रेडिटर्स की मीटिंग तब तक ना हो जब तक कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता।
इससे पहले, 2 अगस्त को एनसीएलएटी ने इस सेटलमेंट को मंजूरी दी थी, जिसने बायजूस के संस्थापक रिजू रवींद्रन को नियंत्रण में वापस ला दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को इस फैसले को “अविवेकी” बताते हुए इसके खिलाफ ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी की अपील पर सुनवाई करते हुए इसे स्थगित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बायजूस से पूछा, “क्या सिर्फ बीसीसीआई ही इकलौता कर्जदार था? क्या एक प्रमोटर अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से बीसीसीआई को भुगतान कर सकता है और बाकी को छोड़ सकता है?” कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यह विवाद फिर से नये सिरे से विचार के लिए भेजा जा सकता है।
यह मामला तब शुरू हुआ जब बीसीसीआई ने दावा किया कि बायजूस ने 158 करोड़ रुपये की स्पॉन्सरशिप राशि का भुगतान नहीं किया था। हालांकि, बाद में रवींद्रन ने यह राशि व्यक्तिगत तौर पर चुकाने की पेशकश की, जिसके बाद कानूनी कार्यवाही रुकी हुई हैं।
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