दिल्ली विधानसभा चुनाव और अंबेडकर के योगदान पर राजनीतिक घमासान

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दिल्ली विधानसभा चुनाव और अंबेडकर के योगदान पर राजनीतिक घमासान

आख़िर तक – एक नज़र में

  1. 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर अंबेडकर के योगदान पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है।
  2. बीजेपी, कांग्रेस, और आम आदमी पार्टी ने दलित वोटों के लिए अपनी जोरदार रणनीतियाँ तैयार की हैं।
  3. बीजेपी का दावा है कि विपक्ष अंबेडकर के योगदान को कभी गंभीरता से नहीं सम्मानित किया।
  4. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को दलित अधिकारों की प्रमुख बहस के रूप में पेश कर रहे हैं।
  5. दिल्ली की 12 एससी आरक्षित सीटों पर यह विवाद चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है।

आख़िर तक – विस्तृत समाचार

अंबेडकर के योगदान पर सियासी घमासान

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के करीब आते ही, डॉक्टर बी.आर. अंबेडकर के योगदान पर चल रहा राजनीतिक विवाद तीव्र हो गया है। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में अंबेडकर का सम्मान न करने के आरोप ने पूरे दिल्ली राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है। यह मुद्दा अब दिल्ली की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों – बीजेपी, कांग्रेस, और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच प्रचार की दिशा तय कर रहा है। ये आरोप-प्रत्यारोप, विशेषकर दिल्ली की 12 एससी आरक्षित सीटों पर असर डाल सकते हैं, जो कुल 70 सीटों में से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

दलित वोटों का महत्व

दिल्ली की राजनीति में दलित वोट अहम स्थान रखते हैं। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली की कुल आबादी का लगभग 16.7 प्रतिशत हिस्सा दलित समुदाय से है, जिससे यह वोट बैंक बहुत प्रभावशाली है। विशेष रूप से सुलतानपुरी, करोल बाग और गोकलपुरी जैसे विधानसभा क्षेत्रों में दलित मतदाताओं की अधिकता है। इन क्षेत्रों में दलित जनसंख्या का लगभग 30 से 44 प्रतिशत है, जो चुनावी परिणामों पर सीधे असर डाल सकता है।

दलित समुदाय का सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व

दलित समुदाय में विभिन्न उप-जातियाँ जैसे जाटव, बाल्मीकि, खटीक, रायगर, कोली, बैरवा, और धोबी शामिल हैं, जिनकी संस्कृति और क्षेत्रीय पहचान अलग-अलग है। दिल्ली के जाटव उप-समुदाय की राजनीतिक हिस्सेदारी बहुत अहम है, क्योंकि ये लगभग आधे दलित वोटों के हिस्सेदार माने जाते हैं। अंबेडकर का सम्मान इन समुदायों में बहुत अधिक है, खासकर जाटवों के बीच, जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रमुख हैं।

2020 चुनाव और आम आदमी पार्टी का दबदबा

पिछले दो विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने इन 12 आरक्षित सीटों पर पूरी तरह कब्जा किया। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी AAP ने 12 सीटों में से सभी पर विजय हासिल की। यह साफ दिखाता है कि दलित मतदाता खासकर अंबेडकर के प्रति सम्मान और AAP की सामाजिक कल्याण योजनाओं की वजह से AAP के पक्ष में रहे। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए इस वोट बैंक को जीतना चुनौतीपूर्ण होगा।

भा.ज.पा. की रणनीतियाँ और कांग्रेस की स्थिति

भा.ज.पा. दिल्ली में सरकार बनाने के लिए दलित वोटों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके लिए उन्होंने विशेष तौर पर झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों और JJ कालोनियों में संपर्क अभियान शुरू किया है। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संविधान के महत्व को अपने चुनाव प्रचार में शामिल किया है, ताकि दलितों को उनके अधिकारों का एहसास हो सके।

2025 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में दलित समुदाय के वोट अहम भूमिका निभा सकते हैं, जिससे इन तीनों पार्टियों के लिए यह चुनाव और भी मुश्किल हो जाएगा।


आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें

  1. दिल्ली विधानसभा चुनाव में अंबेडकर के योगदान को लेकर सियासी विवाद है।
  2. दलित समुदाय का वोट चुनावी परिणामों पर महत्वपूर्ण असर डालेगा।
  3. आम आदमी पार्टी ने लगातार दलित सीटों पर कब्जा किया है।
  4. भाजपा और कांग्रेस दोनों दल अब दलित वोटों को अपने पक्ष में लाने के लिए सक्रिय हैं।
  5. 2025 के चुनावों में दलित समुदाय के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं।

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आख़िर तक मुख्य संपादक
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