आख़िर तक – संक्षेप में:
- भारत-चीन के बीच डिसएंगेजमेंट वार्ता के 21 राउंड पूरे हुए।
- भारत ने अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल करने की मांग पर जोर दिया।
- ब्रिक्स, एससीओ, और क्वाड सम्मेलनों में भारत की कूटनीतिक ताकत ने चीन पर दबाव बनाया।
- एनएसए अजीत डोभाल और वांग यी के बीच उच्च-स्तरीय वार्ता ने समझौते को गति दी।
- प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग ने पांच साल बाद द्विपक्षीय वार्ता की।
आख़िर तक – विस्तार में:
भारत और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे पूर्वी लद्दाख के देपसांग और देमचोक क्षेत्रों में गतिरोध को खत्म करने के लिए 21 राउंड की कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता की गई। भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि जब तक चीन अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल नहीं करता, तब तक डिसएंगेजमेंट नहीं हो सकता।
ब्रिक्स, एससीओ और क्वाड सम्मेलनों में भारत की कूटनीतिक सफलता ने चीन पर गहरा प्रभाव डाला। इसके साथ ही, भारत ने जी20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के बाद अपना दबदबा दिखाया।
सूत्रों के अनुसार, उच्च-स्तरीय वार्ता के बाद, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भाग लिया, दोनों देशों ने शेष सीमा विवादों को हल करने और संबंध सुधारने पर सहमति जताई।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी एक माह पहले कहा था कि 75% मुद्दों का समाधान हो चुका है। 21 अक्टूबर को भारत ने एलएसी के साथ गश्त पर एक समझौते की घोषणा की, जो 2020 में गलवान घाटी के बाद शुरू हुए चार साल पुराने विवाद को समाप्त करने का प्रमुख कदम था।
चीन ने भी इस समझौते की पुष्टि की, यह कहते हुए कि दोनों पक्ष “संबंधित मामलों” पर सहमत हो गए हैं। 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग ने रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात की और इस समझौते का स्वागत किया।
याद रखने के मुख्य बिंदु:
- भारत-चीन वार्ता ने अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल की।
- जी20, ब्रिक्स सम्मेलनों में भारत की कूटनीतिक सफलता ने चीन पर दबाव बढ़ाया।
- समझौता एनएसए अजीत डोभाल और वांग यी की वार्ता से संभव हुआ।
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