राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायिक प्रणाली में बलात्कार मामलों के लंबित होने और उनकी संवेदनशीलता की कमी पर चिंता व्यक्त की। जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि बलात्कार जैसे मामलों में अदालत के फैसले पीढ़ी बीतने के बाद आते हैं, जिससे आम व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता की कमी महसूस होती है।
उन्होंने कहा, “जब बलात्कार जैसे मामलों में अदालत के फैसले पीढ़ी गुजरने के बाद आते हैं, तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता की कमी है।” राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग न्यायालय को “दिव्य” मानते हैं और कहते हैं, “भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।” लेकिन उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यह देरी कितनी लंबी हो सकती है और इसके कारण पीड़ितों के जीवन पर जो प्रभाव पड़ता है, उस पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कोलकाता में एक 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के हालिया मामले का जिक्र करते हुए कहा कि लम्बे समय तक खिंचने वाले कानूनी प्रक्रियाओं के कारण पीड़ित और उनके परिवारों को निराशा का सामना करना पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ अपराधी खुली हवा में घूमते रहते हैं, जबकि पीड़ित भय में जीवन बिताते हैं और उन्हें समाज का समर्थन नहीं मिलता।
राष्ट्रपति मुर्मू ने न्यायालयों में “स्थगन संस्कृति” को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया और शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव उपाय करने की अपील की। उन्होंने न्यायिक अधिकारियों में महिलाओं की बढ़ती संख्या पर खुशी जताई, लेकिन यह भी कहा कि न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए प्रणालीगत बदलाव जरूरी हैं। इस कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट के नए ध्वज और प्रतीक चिन्ह का भी अनावरण किया गया।
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