काल भैरव अष्टक: संपूर्ण पाठ, अर्थ और अचूक लाभ पाएं

Logo (144 x 144)
15 Min Read
काल भैरव अष्टक: पढ़ें संपूर्ण पाठ, पाएं कष्टों से मुक्ति

काल भैरव अष्टक: पढ़ें संपूर्ण पाठ, पाएं कष्टों से मुक्ति

जीवन एक यात्रा है। इस यात्रा में सुख-दुख, सफलता-असफलता और आशा-निराशा के पड़ाव आते रहते हैं। कई बार हम अज्ञात भय, छिपे हुए शत्रुओं, नकारात्मक ऊर्जा और कर्मों के बंधन से खुद को घिरा हुआ पाते हैं। ऐसे में हमें एक ऐसी दिव्य शक्ति की आवश्यकता होती है जो हमारा हाथ थामकर हमें इन सभी बाधाओं से पार लगा सके। यहीं पर भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली और प्रखर स्वरूप, भगवान काल भैरव की महिमा सामने आती है। उनकी स्तुति में रचा गया काल भैरव अष्टक एक ऐसा ही अचूक दिव्य कवच है।

यह स्तोत्र केवल शब्दों का संग्रह नहीं है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक शक्तिशाली आध्यात्मिक उपकरण है। यह साधक को हर प्रकार के भय, कष्ट और संकट से मुक्त करता है। इस लेख में हम काल भैरव अष्टक का संपूर्ण पाठ, उसका सरल हिंदी अर्थ, उसके चमत्कारी लाभ और पाठ की सही विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे। यह ज्ञान आपके जीवन को भय से अभय की ओर ले जाने की क्षमता रखता है।


कौन हैं भगवान काल भैरव? शिव के रौद्र अवतार

इससे पहले कि हम काल भैरव अष्टक की गहराइयों में उतरें, यह जानना आवश्यक है कि भगवान काल भैरव कौन हैं। ‘भैरव’ का अर्थ है ‘भयानक’ या जो भय को हर ले। वे भगवान शिव के गणों में सबसे प्रमुख और उनके रौद्र अवतार माने जाते हैं।

  • उत्पत्ति की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा को अपनी रचना पर अहंकार हो गया। उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया। ब्रह्मा के इसी अहंकार को नष्ट करने के लिए शिव के क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। उन्होंने अपने नाखून से ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया, जिससे उनका अहंकार चूर-चूर हो गया।
  • काशी के कोतवाल: भगवान काल भैरव को ‘काशी का कोतवाल’ भी कहा जाता है। माना जाता है कि काशी में रहने वाले हर व्यक्ति की रक्षा का भार उन्हीं पर है। उनकी आज्ञा के बिना यमराज भी काशी में किसी के प्राण नहीं हर सकते।
  • प्रतीकात्मक स्वरूप: उनका स्वरूप भयानक है। वे श्याम वर्ण के हैं। उनके हाथ में दंड (जिससे वे पापियों को दंड देते हैं) और ब्रह्मा का कटा हुआ सिर (अहंकार का नाश) होता है। उनका वाहन कुत्ता (श्वान) है।

उनका भयानक रूप दुष्टों और पापियों के लिए है। अपने भक्तों के लिए वे परम कृपालु और रक्षक हैं।


काल भैरव अष्टक: महिमा और उत्पत्ति

‘अष्टक’ का अर्थ है आठ पदों या श्लोकों का समूह। काल भैरव अष्टक की रचना 8वीं शताब्दी में महान दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य जी ने की थी। जब वे काशी गए, तो उन्होंने वहां भगवान काल भैरव की महिमा और शक्ति को अनुभव किया। उसी दिव्य अनुभूति से प्रेरित होकर उन्होंने इन आठ श्लोकों की रचना की, जो भगवान काल भैरव के स्वरूप, गुणों और शक्तियों का अद्भुत वर्णन करते हैं। यह स्तोत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक और शक्तिशाली है।


श्री काल भैरव अष्टक – संपूर्ण पाठ (संस्कृत और हिंदी अर्थ सहित)

यहाँ संपूर्ण स्तोत्र, उसके सरल हिंदी अर्थ के साथ प्रस्तुत है। इसे पूरी श्रद्धा और एकाग्रता से पढ़ें।

श्लोक 1

देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥१॥

हिंदी अर्थ:
जिनके पवित्र चरण-कमलों की सेवा देवराज इंद्र करते हैं, जिन्होंने सर्प को ही अपना यज्ञोपवीत बना लिया है, जिनके मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट है, जो परम कृपालु हैं, नारद आदि योगियों का समूह जिनकी वंदना करता है, जो दिगंबर (दिशाओं को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले) हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 2

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥२॥

हिंदी अर्थ:
जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, जो भवसागर (संसार रूपी सागर) से तारने वाले हैं, जो परम श्रेष्ठ हैं, जिनका कंठ नीला है, जो इच्छित फल देने वाले हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो काल के भी काल हैं, जिनके नेत्र कमल के समान हैं, जिनका त्रिशूल अक्षुण्ण है और जो स्वयं अविनाशी हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 3

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥३॥

हिंदी अर्थ:
जिन्होंने अपने हाथों में त्रिशूल, टंक (कुल्हाड़ी), पाश और दंड धारण किया है, जो सृष्टि के आदि कारण हैं, जिनका शरीर श्याम वर्ण का है, जो आदिदेव, अविनाशी और निरोगी हैं, जो भयंकर पराक्रम वाले हैं, जो विचित्र तांडव के प्रेमी हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 4

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥४॥

हिंदी अर्थ:
जो भोग (सांसारिक सुख) और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाले हैं, जिनका सुंदर विग्रह (स्वरूप) प्रशंसनीय है, जो भक्तों पर स्नेह रखने वाले हैं, जो समस्त लोकों में स्थित हैं, जिनकी कमर में सुंदर बजती हुई सोने की करधनी (किंकणी) सुशोभित है, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 5

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥५॥

हिंदी अर्थ:
जो धर्म के सेतु (पुल) के पालक हैं और अधर्म के मार्ग का नाश करने वाले हैं, जो कर्मों के बंधन से मुक्ति दिलाने वाले हैं, जो परम सुख प्रदान करने वाले हैं, जिनका शरीर स्वर्ण वर्ण के शेषनाग के पाश से सुशोभित है, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 6

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥६॥

हिंदी अर्थ:
जिनके चरण-युगल रत्न जड़ित पादुकाओं की चमक से अत्यंत सुंदर लग रहे हैं, जो नित्य, अद्वितीय, हमारे इष्टदेव और निरंजन (माया से रहित) हैं, जो मृत्यु के अहंकार का नाश करने वाले हैं और अपनी भयानक दाढ़ों से मोक्ष दिलाने वाले हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 7

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥७॥

हिंदी अर्थ:
जिनके अट्टहास (जोर की हंसी) से ब्रह्मा द्वारा रचित ब्रह्मांड टूट जाता है, जिनकी दृष्टि पड़ने मात्र से पापों का समूह नष्ट हो जाता है, जिनका शासन कठोर है, जो अष्ट सिद्धियां प्रदान करने वाले हैं और जो कपालों की माला धारण करते हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

श्लोक 8

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥८॥

हिंदी अर्थ:
जो भूत-प्रेतों के नायक हैं, जो विशाल कीर्ति प्रदान करने वाले हैं, जो काशी में रहने वाले लोगों के पुण्य और पाप का शोधन (निर्णय) करने वाले हैं, जो नीति मार्ग में निपुण हैं, जो सबसे पुरातन और जगत के स्वामी हैं, उन काशी नगरी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूँ।

फलश्रुति (पाठ का फल)

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥

हिंदी अर्थ:
जो भी इस मनोहर कालभैरवाष्टक का पाठ करते हैं, जो ज्ञान और मुक्ति का साधन है, जो विचित्र पुण्यों को बढ़ाने वाला है, और जो शोक, मोह, दीनता, लोभ, क्रोध और ताप का नाश करने वाला है, वे निश्चित रूप से मृत्यु के बाद भगवान कालभैरव के चरणों में स्थान प्राप्त करते हैं।


काल भैरव अष्टक के 7 अचूक ज्योतिषीय और आध्यात्मिक लाभ

काल भैरव अष्टक के लाभ बहुत गहरे और प्रभावशाली हैं। यह केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली कवच है।

1. भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति

यह इसका सबसे प्रमुख लाभ है। इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के मन से हर प्रकार का ज्ञात और अज्ञात भय समाप्त हो जाता है। यह प्रेत बाधा, बुरी नजर, और किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से साधक की रक्षा करता है।

2. शत्रुओं पर विजय

यदि आप गुप्त या प्रकट शत्रुओं से परेशान हैं, तो यह पाठ आपके लिए अत्यंत लाभकारी है। भगवान काल भैरव की कृपा से शत्रु स्वयं ही परास्त हो जाते हैं या उनका हृदय परिवर्तन हो जाता है।

3. कर्म बंधनों का नाश

यह स्तोत्र व्यक्ति के संचित कर्मों के बुरे प्रभावों को कम करता है। यह कर्मों के पाश से मुक्ति दिलाकर जीवन को सरल और सुगम बनाता है।

4. शनि, राहु और केतु के दुष्प्रभावों में कमी

ज्योतिष में शनि, राहु और केतु को क्रूर ग्रह माना जाता है। इनकी दशा या अंतर्दशा में व्यक्ति को बहुत कष्ट होता है। भगवान काल भैरव की पूजा और इस स्तोत्र के पाठ से इन ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों में आश्चर्यजनक रूप से कमी आती है।

5. मुकदमों और कानूनी मामलों में सफलता

चूंकि काल भैरव दंड के देवता हैं, इसलिए कानूनी मामलों, कोर्ट-कचहरी और मुकदमों में सफलता के लिए इनका पाठ बहुत प्रभावी माना जाता है। यह न्याय दिलाने में मदद करता है।

6. सिद्धियों की प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति

जो लोग तंत्र या साधना के मार्ग पर हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अष्ट सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। यह आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को खोलता है और कुंडलिनी जागरण में भी सहायक है।

7. रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ

यह स्तोत्र असाध्य रोगों से भी मुक्ति दिलाने में सक्षम है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और जीवन शक्ति में वृद्धि होती है।


काल भैरव अष्टक पाठ की सही विधि

सर्वोत्तम फल पाने के लिए काल भैरव की पूजा विधि और पाठ के नियमों का पालन करना आवश्यक है।

  1. सही समय: पाठ करने का सबसे उत्तम समय रात्रि काल या ब्रह्म मुहूर्त है। इसके अलावा, कालभैरव अष्टमी, रविवार, मंगलवार या शनिवार के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
  2. स्वच्छता और दिशा: स्नान के बाद स्वच्छ, विशेषकर काले या नीले रंग के वस्त्र धारण करें। अपना मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें।
  3. पूजा की तैयारी: भगवान काल भैरव की तस्वीर या यंत्र स्थापित करें। उनके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं। उन्हें काले तिल, उड़द की दाल, और नींबू अर्पित कर सकते हैं। सुगंधित धूप जलाएं।
  4. संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले, हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना का स्मरण करते हुए संकल्प लें कि आप यह पाठ क्यों कर रहे हैं।
  5. पाठ की संख्या: अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार 1, 3, 8, या 11 बार पाठ करें।
  6. ध्यान: पाठ करते समय अपना पूरा ध्यान भगवान काल भैरव के शक्तिशाली और कृपालु स्वरूप पर केंद्रित करें।
  7. क्षमा प्रार्थना: पाठ समाप्त होने पर, अनजाने में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

क्या महिलाएं काल भैरव अष्टक का पाठ कर सकती हैं?

जी हां, महिलाएं पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं। भक्ति पर सभी का समान अधिकार है।

पाठ करने का सबसे अच्छा दिन कौन सा है?

कालभैरव अष्टमी का दिन सर्वश्रेष्ठ है। इसके अलावा, किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार और शनिवार को इसका पाठ करना विशेष शुभ होता है।

क्या घर में काल भैरव की तस्वीर रख सकते हैं?

हाँ, घर में भगवान काल भैरव की सौम्य मुद्रा वाली तस्वीर या यंत्र रखा जा सकता है। उनकी उग्र या रौद्र रूप वाली तस्वीर रखने से बचना चाहिए, क्योंकि घर में उतनी सात्विकता और ऊर्जा को संभालना कठिन हो सकता है।

अगर उच्चारण में गलती हो जाए तो क्या करें?

भगवान भाव के भूखे होते हैं। यदि उच्चारण में अनजाने में कोई त्रुटि हो जाए तो चिंता न करें। पाठ के अंत में क्षमा मांग लें। आप अभ्यास के लिए किसी प्रामाणिक ऑडियो को भी सुन सकते हैं।

इस पाठ को कितनी बार करना चाहिए?

नित्य एक बार पाठ करना भी बहुत लाभकारी है। किसी विशेष प्रयोजन के लिए 11, 21 या 108 बार पाठ करने का विधान भी है। यह पूरी तरह आपकी श्रद्धा पर निर्भर करता है।


निष्कर्ष: भय से अभय की यात्रा

काल भैरव अष्टक एक स्तोत्र से कहीं बढ़कर है। यह एक दिव्य कवच, एक आध्यात्मिक शक्ति और भय से मुक्ति का मार्ग है। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित यह कृति हमें सिखाती है कि कैसे हम भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली स्वरूप की कृपा प्राप्त कर जीवन की हर बाधा को पार कर सकते हैं।

चाहे आप किसी सांसारिक कष्ट से पीड़ित हों, शत्रुओं से परेशान हों, या आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हों, यह स्तोत्र आपका मार्गदर्शन करेगा। इसे अपनी दैनिक पूजा का अंग बनाएं और स्वयं देखें कि कैसे आपके जीवन से अंधकार छंटता है और साहस, सफलता और शांति का प्रकाश फैलता है।


आपकी क्या राय है?

क्या आपने कभी काल भैरव अष्टक का पाठ किया है? आपका अनुभव कैसा रहा है? नीचे कमेंट्स में हमारे साथ अपने विचार और अनुभव साझा करें। यदि यह लेख आपको ज्ञानवर्धक लगा, तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें।


Discover more from आख़िर तक

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Share This Article
कोई टिप्पणी नहीं

Leave a Reply

9 रहस्यमय वैज्ञानिक तथ्य जो आपको हैरान कर देंगे भारत की 10 बेहतरीन मानसून डेस्टिनेशन