कलकत्ता हाई कोर्ट ने हाल ही में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुए भीड़ के हमले और तोड़फोड़ को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की कड़ी आलोचना की है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश ने इसे “राज्य मशीनरी की पूर्ण विफलता” करार देते हुए सरकार की कड़ी निंदा की और कहा कि सरकार अस्पताल और इसके कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में असफल रही है।
यह घटना स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हुई थी, जब पूरे देश में ‘रात को पुनः प्राप्त करो’ विरोध प्रदर्शन चल रहा था। इस दौरान अस्पताल परिसर में व्यापक हिंसा और क्षति हुई थी। कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने राज्य की स्थिति को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि शहर की पुलिस खुद को सुरक्षित नहीं कर पाई, तो ऐसे में डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ कैसे बिना डर के काम कर सकते हैं?
कोर्ट ने इसे क्षेत्र की “खेदजनक स्थिति” करार देते हुए कहा कि अधिकारी कानून और व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने में असमर्थ थे। यह मामला तब अदालत के समक्ष आया जब अस्पताल में हुई तोड़फोड़ और भीड़ के हमले के संबंध में कई ईमेल और रिपोर्ट प्राप्त हुईं, जिससे नागरिकों के बीच व्यापक चिंता व्यक्त हुई।
मुख्य न्यायाधीश ने राज्य को पर्याप्त उपायों को लागू न करने के लिए फटकार लगाई, जैसे कि सार्वजनिक अशांति की संभावनाओं के मद्देनजर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 144 लागू करना। “जब इतना हंगामा हो रहा था, तो आपको क्षेत्र की घेराबंदी करनी चाहिए थी,” मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जिससे राज्य की स्थिति को नियंत्रित करने में विफलता उजागर हुई।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि 7,000 लोगों की भीड़ को बिना किसी रोक-टोक के कैसे चलने दिया गया, यह सुझाव देते हुए कि हिंसा की स्थिति से बचने के लिए कुछ निवारक उपाय किए जा सकते थे। इस आलोचना से स्पष्ट होता है कि अदालत राज्य की प्रतिक्रिया से असंतुष्ट है और पश्चिम बंगाल में अधिक सख्त शासन और कानून प्रवर्तन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
सुनवाई से पता चलता है कि संवेदनशील क्षेत्रों, जैसे कि अस्पतालों में, सार्वजनिक सुरक्षा के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है, जहां मरीजों और चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा सर्वोपरि है। कोर्ट की कड़ी टिप्पणियां पश्चिम बंगाल सरकार से अधिक मजबूत प्रतिक्रिया की अपेक्षा करती हैं, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।
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