सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के 65% आरक्षण रद्दीकरण पर रोक लगाने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को अस्थायी रूप से रोकने की मांग की गई थी। यह आदेश बिहार में 65% आरक्षण को रद्द करने से संबंधित था, और इसका राजनीतिक और कानूनी प्रभाव गहरा है।
सुप्रीम कोर्ट का बिहार के आरक्षण कोटा पर निर्णय
आरक्षण रद्दीकरण का मामला
सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पटना हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की अपील की गई थी। हाई कोर्ट ने बिहार के 50% से 65% तक आरक्षण बढ़ाने के फैसले को असंवैधानिक करार दिया था।
उच्च न्यायालय का आदेश और इसके प्रभाव
पटना हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने 20 जून को बिहार विधानसभा द्वारा 2023 में किए गए संशोधनों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक मानते हुए, संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन बताया, जो समानता की गारंटी देते हैं और भेदभाव को रोकते हैं।
बिहार सरकार की प्रतिक्रिया और भविष्य की प्रक्रिया
बिहार सरकार की कानूनी रणनीति
पटना हाई कोर्ट के आदेश के बाद, नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार ने 2 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सरकार इस आदेश को चुनौती दे रही है और फैसले की समीक्षा और पलटी की मांग कर रही है।
आरक्षण संशोधन विधेयक की जानकारी
बिहार विधानसभा ने नवंबर 2023 में आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया, जिससे आरक्षण कोटा 65% तक बढ़ गया। इसमें शामिल थे:
- अनुसूचित जातियों के लिए 20%
- अनुसूचित जनजातियों के लिए 2%
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 43%
- अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के लिए प्रावधान
इस विधेयक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण भी शामिल था, जिससे कुल आरक्षण 75% तक बढ़ गया, जो सुप्रीम कोर्ट के 50% सीमा से अधिक है।
आगामी कानूनी कार्यवाही
सितंबर की सुनवाई और भविष्य की घटनाएँ
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए सितंबर का समय निर्धारित किया है। यह सुनवाई उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव और बिहार में आरक्षण नीतियों के भविष्य को समझने में महत्वपूर्ण होगी।
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