आख़िर तक – एक नज़र में
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वन नेशन वन इलेक्शन बिल को मंजूरी दी।
- यह बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है।
- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने इसे लागू करने की सिफारिश की है।
- कई विपक्षी दलों ने इस कदम की आलोचना की और इसे “गैर-लोकतांत्रिक” बताया।
- सरकार इसे व्यापक सहमति के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की योजना बना रही है।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन बिल?
वन नेशन वन इलेक्शन बिल का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। इससे चुनावी खर्च कम होंगे और प्रशासनिक प्रक्रिया में सुधार होगा। यह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चुनावी घोषणापत्र का एक प्रमुख वादा है।
बिल के पीछे सरकार की सोच
गृह मंत्री अमित शाह ने कैबिनेट को तकनीकी मुद्दों पर जानकारी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों को जनता को इसके लाभ समझाने का निर्देश दिया। सरकार का दावा है कि एकसाथ चुनावों से नीतिगत स्थिरता आएगी और विकास कार्यों में रुकावटें कम होंगी।
सिफारिशें और चुनौतियाँ
रामनाथ कोविंद समिति ने दो चरणों में इसे लागू करने का सुझाव दिया है। पहला चरण लोकसभा और विधानसभा चुनावों को सिंक्रनाइज़ करना है। दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव शामिल होंगे। इसके लिए 18 संवैधानिक संशोधन आवश्यक हैं।
हालांकि, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे दलों ने इसे असंवैधानिक और संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “तानाशाही कदम” करार दिया।
सरकार की योजना
विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा ताकि व्यापक सहमति बनाई जा सके। राज्य विधानसभाओं के स्पीकर, विशेषज्ञों और जनता के सुझाव भी लिए जाएंगे।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- वन नेशन वन इलेक्शन का उद्देश्य चुनावों की प्रक्रिया को सरल और किफायती बनाना है।
- विपक्ष ने इसे संघीय ढांचे के लिए खतरा बताया है।
- इसे लागू करने के लिए 18 संवैधानिक संशोधन आवश्यक हैं।
- सरकार जनता और विशेषज्ञों की राय लेने के लिए तैयार है।
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