शिव तांडव स्तोत्र – भगवान शिव की महिमा

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शिव तांडव स्तोत्र

श्लोक 1:

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डम निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥

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अर्थ: भगवान शिव की जटाओं से बहती जलधारा, जो पवित्र गंगा की धारा है, उनके कंठ में लटकी हुई विशाल सर्पमाला के साथ मिलती है। शिव के डमरू की ध्वनि ‘डमड्डमड्डमड्डम’ के साथ प्रचंड तांडव नृत्य करते हुए, हमें शिव के कल्याणकारी रूप का आशीर्वाद दे।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के गंगा धारण की कथा से जुड़ा है। जब गंगा को पृथ्वी पर लाने की आवश्यकता हुई, तब भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण कर लिया ताकि उनकी शक्ति से पृथ्वी को क्षति न पहुंचे। डमरू की ध्वनि उनके तांडव नृत्य का संकेत है, जो सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है। उनके गले में सर्पमाला उनकी निडरता और शक्ति का प्रतीक है।

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श्लोक 2:

जटाकटाहसंभ्रम भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥

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अर्थ: भगवान शिव की जटाओं से बहती गंगा, जो उनके सिर पर मणियों की तरह चमक रही है, और उनके मस्तक पर प्रज्वलित अग्नि के साथ, उनके ललाट पर विराजमान किशोर चंद्रमा, मेरे मन को हर क्षण शिव के प्रति प्रेम से भर देते हैं।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के त्रिनेत्र और उनके मस्तक पर चंद्रमा की कथा से संबंधित है। त्रिनेत्र उनके असीम ज्ञान और दृष्टि का प्रतीक है, जबकि चंद्रमा उनकी शीतलता और शांति का प्रतीक है। यह भी मान्यता है कि शिव के मस्तक पर अग्नि उनके संहारक रूप को दर्शाती है, जो बुराई का नाश करती है।

श्लोक 3:

धराधरेन्द्रनन्दिनी विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्तति प्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥

अर्थ: धरती के राजा हिमालय की पुत्री पार्वती, जिनकी विलासिता और सुंदरता की कोई सीमा नहीं है, जो शिव के साथ आनंदित मन में समाई रहती हैं। शिव के कृपाकटाक्ष से कठिनाईयों का नाश होता है, और उनके दिगम्बर रूप का चिंतन मन को अद्वितीय आनंद प्रदान करता है।

कथा: यह श्लोक देवी पार्वती और भगवान शिव के प्रेम और एकता को दर्शाता है। पार्वती, जो हिमालय की पुत्री हैं, शिव की पत्नी हैं और उनके साथ उनका प्रेम और सौहार्द्र सभी बाधाओं को दूर करता है। शिव का दिगम्बर रूप उनकी तपस्या और त्याग का प्रतीक है।

श्लोक 4:

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥

अर्थ: भगवान शिव की जटाओं में फुफकारते हुए सर्पों की मणियों की चमक और कदम्ब के फूलों के कुंकुम से सजी हुई दिशाओं के मुख जैसे लगते हैं। उनकी धवल वस्त्रावस्था मन को अद्भुत आनंद प्रदान करती है और सभी प्राणियों के पालनकर्ता शिव की महिमा का बखान करती है।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के सर्प धारण की कथा से जुड़ा है। शिव के गले में लिपटे हुए सर्प उनकी निडरता और शक्ति का प्रतीक हैं। कदम्ब के कुंकुम से सजी दिशाएं उनकी सौम्यता और सुगंध को दर्शाती हैं, जो सभी दिशाओं में फैली हुई है।

श्लोक 5:

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥५॥

अर्थ: हजार आंखों वाले इंद्र और अन्य देवताओं की मणियों से सजी पुष्पों की धूल से विभूषित भगवान शिव के चरणों की महिमा, जो सर्पराजा की माला से सुशोभित उनकी जटाओं में बंधी है, हम सबके कल्याण के लिए हमेशा बनी रहे।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के चरणों की महिमा का वर्णन करता है, जिन्हें देवता और असुर दोनों पूजते हैं। उनकी जटाओं में सर्पराजा वासुकि की माला उनकी शक्ति और उच्चता का प्रतीक है। उनकी महिमा से सभी देवता धन्य हो जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

श्लोक 6:

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥६॥

अर्थ: भगवान शिव के ललाट पर ज्वलंत अग्नि, जो कामदेव के पंचबाणों को नष्ट कर चुकी है, देवताओं के नेता को नमस्कार करती है। उनके मस्तक पर चंद्रमा की शीतल किरणें उनकी महिमा को बढ़ाती हैं। उनका यह दिव्य रूप हमारे लिए शुभ और कल्याणकारी हो।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के कामदेव वध की कथा से संबंधित है। जब कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया, तो शिव ने अपनी तीसरी आंख खोलकर उसे भस्म कर दिया। शिव के ललाट की अग्नि उनकी शक्ति और तपस्या का प्रतीक है, और चंद्रमा उनकी शांति और सौम्यता का।

श्लोक 7:

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतिक्रत प्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥

अर्थ: भगवान शिव के भाल प्रदेश पर प्रज्वलित अग्नि, जो प्रचंड पञ्चबाणों का नाश कर चुकी है, धरती के राजा हिमालय की पुत्री पार्वती के स्तनों के नजदीक स्थित चित्रपट्र की तरह शोभित होती है। त्रिनेत्रधारी शिव, मेरी भक्ति हमेशा आप पर बनी रहे।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव और पार्वती के प्रेम और उनकी त्रिनेत्र की महिमा का वर्णन करता है। शिव के भाल पर अग्नि उनकी शक्ति का प्रतीक है और पार्वती का प्रेम उनके सौम्य और सृजनात्मक पक्ष का। त्रिनेत्र उनकी सर्वदृष्टि और ज्ञान का प्रतीक है।

श्लोक 8:

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्दुरंधरः॥८॥

अर्थ: नवीन मेघों के समूह के समान शिव के कंधों पर बहती गंगा, जो कठिनाईयों का नाश करती है और रात्रि के अंधकार को हरती है, वे कलानिधान (चंद्रमा) के साथ सुशोभित होते हैं। वे हमारे लिए कल्याण और समृद्धि का आशीर्वाद दें।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के मेघवर्ण और गंगा धारण की महिमा का वर्णन करता है। शिव का मेघवर्ण उनकी विशालता और गहराई का प्रतीक है, और उनके कंधों पर बहती गंगा उनकी पवित्रता और जीवनदायिनी शक्ति का। चंद्रमा उनके मस्तक पर उनकी शीतलता और शांति का प्रतीक है।

श्लोक 9:

प्रफुल्लनीलपङ्कज प्रपञ्चकालिमच्छटा
विधूमनिध्रसञ्ज्ञकं धनञ्जयाहुतीकृतम्।
शरावशान्तहन्तकं भजेमतं पुरान्तकं
मखान्तकं गजान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥९॥

अर्थ: भगवान शिव, जिनकी महिमा प्रफुल्लित नील कमल के समान है, जो कामदेव के बाणों को नष्ट करने वाले हैं, जिनका स्वरूप हर काल को मात देता है, मैं उनकी आराधना करता हूँ। वे पुराण्तक (पुरियों के नाशक), मखान्तक (यज्ञों के नाशक), गजान्तक (गजासुर के नाशक) और अंतक के अंतकर्ता हैं।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों का वर्णन करता है। वे कामदेव का नाश करते हैं, जो मनुष्य की इच्छाओं और वासनाओं को नियंत्रित करता है। वे पुरियों के नाशक हैं, यज्ञों के नाशक हैं, और गजासुर और अंतक का नाश करते हैं, जो बुराई के प्रतीक हैं।

श्लोक 10:

अखर्वसर्वमङ्गला कलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजयतेऽजं सुतम्।
विभूतिमस्मिताक्षरं सुदूरदुर्धरं च
महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥१०॥

अर्थ: भगवान शिव, जिनकी महिमा अनंत है और जो समस्त मंगलकारी शक्तियों के स्वामी हैं, जिनकी विभूति (राख) धारण करने से सभी पापों का नाश होता है, उनके मस्तक पर स्थित जटा हमें सभी विपत्तियों से बचाए।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव की विभूति और उनके मंगलकारी स्वरूप का वर्णन करता है। शिव की विभूति पवित्रता और तपस्या का प्रतीक है, और इसे धारण करने से सभी पापों का नाश होता है। उनकी जटा, जिसमें गंगा और चंद्रमा स्थित हैं, उनकी शक्ति और शांति का प्रतीक है।

श्लोक 11:

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वसद्द
विनिर्गमत्क्रमिस्फुरद्धरं महाहवप्रभुः।
धिमिधिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गलध्वनि
प्रवृत्तताण्डवः सदा शिवः शिवं तनोतु नः॥११॥

अर्थ: भगवान शिव की जटाओं में फुफकारते हुए सर्पों के फुफकार के साथ, उनके महाहव (महान युद्ध) में प्रचंड रूप से विचरण करते हुए, मृदंग की धिमिधिमि ध्वनि के साथ उनके प्रचंड तांडव नृत्य की महिमा हमें कल्याण और शुभ प्रदान करे।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के प्रचंड तांडव नृत्य का वर्णन करता है, जो सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है। उनके नृत्य की ध्वनि और उनकी जटाओं में फुफकारते हुए सर्प उनकी असीम शक्ति और प्रचंडता का प्रतीक हैं। मृदंग की ध्वनि उनके नृत्य की लय को दर्शाती है, जो सृष्टि के प्रत्येक अंश में गूंजती है।

श्लोक 12:

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोः
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकाः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥१२॥

अर्थ: भगवान शिव, जो पाषाण और रत्न दोनों के समान सुशोभित हैं, जिनकी सर्पमालाएं मणियों की तरह शोभायमान हैं, जो शत्रु और मित्र दोनों के लिए समान हैं, और जिनकी दृष्टि कमल के समान है, मैं उनकी आराधना करता हूँ। वे राजा और प्रजा दोनों के लिए समान रूप से मंगलकारी हैं।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव की समानता और असीम न्याय की महिमा का वर्णन करता है। वे पाषाण और रत्न दोनों के समान सुशोभित हैं, जो उनकी अद्वितीयता और संतुलन का प्रतीक है। उनकी सर्पमालाएं उनकी निडरता और शक्ति को दर्शाती हैं। वे शत्रु और मित्र दोनों के लिए समान हैं, जो उनकी न्यायप्रियता और संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है।

श्लोक 13:

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥

अर्थ: कब मैं गंगा के निकट स्थित किसी गुफा में वास करूँगा, अपने दुर्भावनाओं से मुक्त होकर, शिव की आराधना करते हुए, मेरे मन में शिव के प्रति प्रेम और भक्ति की धारा बहेगी। शिव मंत्र का उच्चारण करते हुए, मैं सदा सुखी और आनंदित रहूँगा।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव की आराधना और उनके प्रति असीम भक्ति की महिमा का वर्णन करता है। शिव के मंत्र का उच्चारण और उनकी उपासना करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त होकर सदा सुखी और आनंदित रह सकता है। शिव की आराधना मन को शांति और संतोष प्रदान करती है।

श्लोक 14:

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥१४॥

अर्थ: जो मनुष्य इस उत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और उच्चारण करता है, वह सदा पवित्रता प्राप्त करता है। वह भगवान हर और गुरु में सच्ची भक्ति को प्राप्त करता है और अन्य किसी भी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाता है। भगवान शिव का चिंतन मनुष्य को सभी मोहों से मुक्त करता है।

कथा: यह श्लोक भगवान शिव के तांडव स्तोत्र की महिमा का वर्णन करता है। जो मनुष्य इस स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और उच्चारण करता है, वह पवित्रता और भक्ति को प्राप्त करता है। शिव का चिंतन सभी मोहों से मुक्त करता है और मनुष्य को सच्चे सुख और आनंद की प्राप्ति होती है।

श्लोक 15:

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥१५॥

अर्थ: जो मनुष्य प्रदोषकाल में भगवान शम्भु की पूजा के अंत में इस दशमुखी गीत का पाठ करता है, भगवान शिव उसे स्थिर रथ, हाथी, घोड़े और समृद्धि प्रदान करते हैं। उसकी लक्ष्मी सदा सुमुखी और सुखदायी होती है।

कथा: यह श्लोक प्रदोषकाल में भगवान शिव की पूजा की महिमा का वर्णन करता है। जो भक्त इस समय शिव की पूजा के अंत में इस स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान शिव उसे स्थिर समृद्धि और सुखदायी लक्ष्मी प्रदान करते हैं। प्रदोषकाल में शिव की आराधना अत्यंत फलदायी मानी जाती है और भक्त को सभी प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।

भगवान शिव की महिमा
भगवान शिव की महिमा

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा, शक्ति और सौम्यता का अद्वितीय वर्णन है। यह स्तोत्र न केवल भगवान शिव के विभिन्न रूपों और लीलाओं का वर्णन करता है, बल्कि उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा को भी प्रकट करता है। शिव का तांडव नृत्य सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है, और यह स्तोत्र भगवान शिव की अपार महिमा और उनके दिव्य स्वरूप की आराधना करता है। शिव तांडव स्तोत्र का नित्य पाठ और स्मरण करने से भक्त को अनंत शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


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