अरविंद केजरीवाल का दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना राजनीतिक क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। उनके इस निर्णय के पीछे पांच मुख्य कारण हो सकते हैं, जो उन्हें राजनीतिक तौर पर मजबूती दिलाने का काम कर सकते हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं कि यह उनके लिए क्यों ‘पॉलिटिकल सिक्सर’ साबित हो सकता है।
- खोने को कुछ नहीं, चुनाव करीब हैं:
दिल्ली विधानसभा चुनाव फरवरी 2025 में होने थे, लेकिन केजरीवाल ने इस्तीफा देकर नवंबर में चुनाव कराने की मांग की है। इससे वह समय से पहले चुनावी माहौल तैयार कर सकते हैं, जिसमें वह खुद को भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रूप में पेश करेंगे। - आप पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्ति पाने की कोशिश:
अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, विशेष रूप से शराब नीति से जुड़े मामलों में। ऐसे में इस्तीफा देकर वह जनता की अदालत में खुद को ‘सत्य का प्रतीक’ साबित करने की कोशिश करेंगे। - एंटी-इन्कम्बेंसी को मात देने का प्रयास:
केजरीवाल पिछले 10 साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। लगातार सत्ता में बने रहने से जनता में असंतोष का खतरा था। इस्तीफा देकर वह नए सिरे से चुनावी मैदान में उतरेंगे और ‘नई शुरुआत’ का संदेश देंगे। - विपक्षी दलों के बीजेपी विरोधी माहौल से फायदा उठाने की कोशिश:
देशभर में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का माहौल बना हुआ है। महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, जहां बीजेपी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। केजरीवाल ने इस समय का चुनाव किया ताकि वह इस माहौल का फायदा उठाकर दिल्ली में भी जीत दर्ज कर सकें। - दिल्ली में राष्ट्रपति शासन से बचने का प्रयास:
अगर केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहते, तो केंद्र सरकार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा सकती थी। इसलिए उन्होंने इस्तीफा देकर इस संकट से बचने का रास्ता चुना।
केजरीवाल का यह कदम निश्चित रूप से एक राजनीतिक चाल है, जो उन्हें आगामी चुनावों में बढ़त दिला सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह निर्णय दिल्ली की राजनीति पर कैसा प्रभाव डालता है।
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