आख़िर तक – इन शॉर्ट्स
- हिंदुजा भाइयों का साम्राज्य, जो एकता और साझेदारी के सिद्धांतों पर टिका था, पारिवारिक विवादों की वजह से बिखर गया।
- 2014 में हस्ताक्षरित एक पत्र, जो साझा संपत्ति की पुष्टि करता था, विवाद का कारण बना और कानूनी लड़ाई का रूप ले लिया।
- 2023 में श्रीचंद हिंदुजा के निधन के बाद भाइयों ने अपने मतभेद सुलझाते हुए व्यवसाय का बंटवारा कर लिया, जिससे पारिवारिक एकता की एक नई शुरुआत हुई।
आख़िर तक – इन डेप्थ
हिंदुजा परिवार का विवाद: एकता से अलगाव तक की कहानी
हिंदुजा परिवार, जो एक समय दुनिया की सबसे बड़ी और विविधीकृत कंपनियों में से एक का नेतृत्व करता था, एक असाधारण एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता था। चार भाइयों—श्रीचंद, गोपीचंद, प्रकाश, और अशोक—ने मिलकर इस साम्राज्य को खड़ा किया, जिसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर फैला था। लेकिन यह एकता 2014 में सामने आई एक पत्र के कारण टूट गई। यह पत्र, जिसमें सभी भाइयों ने लिखा था कि “सब कुछ सभी का है, और किसी का नहीं,” परिवार के बीच कानूनी विवाद का कारण बन गया।
कानूनी लड़ाई और सार्वजनिक विवाद
2020 में श्रीचंद हिंदुजा के परिवार ने इस पत्र की वैधता को चुनौती दी, जिससे यह विवाद सार्वजनिक हो गया। यूके हाई कोर्ट ने 2022 में श्रीचंद के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन यह फैसला परिवार के भीतर की दरार को कम नहीं कर सका। श्रीचंद के निधन के बाद, भाइयों ने आखिरकार 2023 में एक समझौता किया, जिसमें उन्होंने साम्राज्य का बंटवारा किया और परिवार के बीच की खाई को पाटने का प्रयास किया।
व्यवसाय का बंटवारा और नई पीढ़ी की भूमिका
समझौते के तहत, श्रीचंद के परिवार को हिंदुजा बैंक का नियंत्रण मिला, जबकि बाकी संपत्तियों को अन्य भाइयों के बीच विभाजित किया गया। इस बंटवारे के साथ, हिंदुजा साम्राज्य की अगली पीढ़ी, विशेष रूप से श्रीचंद की बेटियां, विंऊ और शानू, अब प्रमुख भूमिकाएं निभाने लगी हैं। इससे पारिवारिक व्यवसाय में नई दिशा और नेतृत्व की उम्मीद की जा रही है।
धन और सत्ता की कीमत
यह घटना दिखाती है कि कैसे परिवार और साझेदारी पर आधारित एक साम्राज्य भी दरारों से नहीं बच सकता। जैसे-जैसे परिवार ने अपने व्यवसाय को विभाजित किया, यह सवाल भी उभरता है कि कब संपत्ति एकजुटता के बजाय कलह का कारण बन जाती है। हिंदुजा परिवार की कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी-कभी संपत्ति के बंटवारे से ही शांति और सद्भाव लौट सकता है।
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