1 अक्टूबर को ईरान ने इज़राइल पर लगभग 200 मिसाइलें दागीं, जिनका लक्ष्य इज़राइल के सामरिक सैन्य और सुरक्षा बुनियादी ढांचे थे। हालांकि, वर्तमान में दुश्मन बने ईरान और इज़राइल एक समय पर साझेदार थे। 1970 के दशक में, दोनों देशों ने मिलकर ‘प्रोजेक्ट फ्लावर’ के तहत सतह से सतह तक मार करने वाली मिसाइलों का विकास करने का काम किया था।
‘प्रोजेक्ट फ्लावर’ एक गोपनीय योजना थी जिसका लक्ष्य मिसाइल तकनीक विकसित करना था, जिसमें न्यूक्लियर वॉरहेड्स लगाने की संभावना थी। यह सहयोग ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन के दौरान हुआ था। उस समय, इज़राइल और ईरान के बीच संबंध इतने मजबूत थे कि उन्होंने तेल के बदले हथियार समझौते किए थे।
ईरान और इज़राइल का सहयोग
सत्तर के दशक में, ईरान ने इज़राइल से सैन्य प्रशिक्षण और हथियारों के विकास में मदद ली थी। इस सहयोग के तहत इज़राइल को ईरानी तेल मिलता था, जिससे वह अपने सैन्य उपकरणों का विकास कर पाता था। इसके बदले में, इज़राइल ने ईरान की सेना को आधुनिक हथियारों से लैस करने में मदद की थी।
इस दौरान इज़राइल ने ईरान की खुफिया एजेंसी SAVAK को भी प्रशिक्षित किया था, जिसमें अमेरिकी CIA और इज़रायली मोसाद का सहयोग भी शामिल था। इज़राइली रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “ईरान में हमें राजाओं की तरह सम्मान मिलता था, और उनके साथ हमने बड़े पैमाने पर व्यापार किया था।”
प्रोजेक्ट फ्लावर की विशेषताएँ
1977 में दोनों देशों ने मिलकर सतह से सतह तक मार करने वाली मिसाइलें विकसित करने का समझौता किया था। मिसाइलों को न्यूक्लियर वॉरहेड से लैस किया जा सकता था, लेकिन बाद में इज़राइल ने इस योजना को टाल दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि ईरान के पास न्यूक्लियर तकनीक खतरनाक साबित हो सकती है।
1979 इस्लामिक क्रांति के बाद प्रोजेक्ट फ्लावर का अंत
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद, ईरान में सत्ता परिवर्तन हुआ और शाह के शासन को उखाड़ फेंक दिया गया। नई सरकार ने इज़राइल के साथ सभी सैन्य समझौतों को समाप्त कर दिया, और प्रोजेक्ट फ्लावर बंद हो गया। इसके बाद, ईरान और इज़राइल के रिश्ते तेजी से बिगड़ गए और अब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है।
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