आखिर तक – संक्षेप में
- केरल हाई कोर्ट ने मीडिया को निष्पक्षता बनाए रखने और “लक्ष्मण रेखा” का पालन करने का निर्देश दिया।
- कोर्ट ने कहा कि मीडिया ट्रायल से सार्वजनिक राय प्रभावित होती है, जिससे न्याय प्रणाली पर अविश्वास बढ़ सकता है।
- कोर्ट ने मीडिया को ऐसे मामलों में सावधानी बरतने की हिदायत दी जो अभी न्यायिक प्रक्रिया में हैं।
- कोर्ट ने माना कि मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, परन्तु इसके भी सीमाएं हैं।
- यह आदेश कई याचिकाओं पर दिया गया जो मीडिया की जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप की आलोचना करती हैं।
आखिर तक – विस्तार से
केरल हाई कोर्ट ने मीडिया को उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए एक विशेष दिशा-निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत मीडिया को अदालती फैसले देने का अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति ए.के. जयशंकरन नांबियार और चार अन्य न्यायाधीशों की खंडपीठ ने मीडिया को सलाह दी कि वे जांच प्रक्रिया या किसी भी अपराध के मामलों पर खुद को न्यायालय या जांच अधिकारी के रूप में प्रस्तुत न करें।
कोर्ट ने कहा कि मीडिया ट्रायल से आम जनता में पूर्वाग्रह उत्पन्न हो सकता है, जो न्यायिक प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। मीडिया को केवल तथ्यों पर रिपोर्ट करनी चाहिए और मामलों पर निष्कर्ष निकालने से बचना चाहिए। इस तरह का पक्षपाती रवैया न केवल आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन करता है बल्कि पीड़ित के सम्मान और निजता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
इस फैसले का आधार तीन याचिकाएं थीं, जिनमें मीडिया की शक्ति पर नियंत्रण की मांग की गई थी। कोर्ट ने मीडिया की भूमिका को रेखांकित किया, लेकिन उसे यह भी सलाह दी कि वह ‘लक्ष्मण रेखा’ का पालन करे और निष्पक्षता बनाए रखे।
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