शिव तांडव स्तोत्र: कथा, अर्थ और चमत्कारी लाभ | 2025

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शिव तांडव स्तोत्र: कथा, अर्थ और चमत्कारी लाभ | 2025

शिव तांडव स्तोत्र: संपूर्ण कथा, अर्थ और चमत्कारी लाभ

भगवान शिव, जिन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है, हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। उनकी शक्ति, वैराग्य और करुणा अद्वितीय है। जब हम भगवान शिव की स्तुति की बात करते हैं, तो शिव तांडव स्तोत्र का नाम सबसे पहले आता है। यह केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि भक्ति, ऊर्जा और शक्ति का एक अद्भुत संगम है। इसकी रचना परम शिव भक्त रावण ने की थी। यह स्तोत्र भगवान शिव के रौद्र और आनंदमय स्वरूप का वर्णन करता है। इस लेख में हम शिव तांडव स्तोत्र की पौराणिक कथा, प्रत्येक श्लोक का हिंदी अर्थ, इसके चमत्कारी लाभ और पाठ करने की सही विधि को विस्तार से जानेंगे।

यह स्तोत्र इतना शक्तिशाली क्यों माना जाता है? इसके पीछे एक अद्भुत कहानी है, जो भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाती है।

शिव तांडव स्तोत्र की पौराणिक कथा

इस दिव्य स्तोत्र की रचना का श्रेय लंका के राजा रावण को जाता है। रावण एक महान विद्वान, पराक्रमी राजा और भगवान शिव का परम भक्त था। उसकी भक्ति में अहंकार का भी अंश था।

एक बार रावण ने अपनी शक्तियों के घमंड में चूर होकर कैलाश पर्वत को ही उठाने का प्रयास किया। कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है। रावण ने अपनी बीस भुजाओं से पर्वत को उठाना शुरू कर दिया। इससे कैलाश हिलने लगा और माता पार्वती भयभीत हो गईं।

भगवान शिव तो अंतर्यामी हैं। उन्होंने रावण का घमंड तोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने शांत भाव से अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। इस दबाव से रावण की भुजाएं पर्वत के नीचे दब गईं। वह असहनीय पीड़ा से चिल्लाने लगा। उसका सारा घमंड चूर-चूर हो गया।

तब रावण को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने का निर्णय लिया। पीड़ा में होते हुए भी, उसने अपनी एक भुजा और नसों से एक वाद्ययंत्र (वीणा) बनाया। फिर उसने भगवान शिव की स्तुति में एक अत्यंत शक्तिशाली और संगीतमय स्तोत्र गाना शुरू किया। यही स्तोत्र “शिव तांडव स्तोत्र” कहलाया।

इस स्तोत्र में रावण ने शिव के सौंदर्य, शक्ति, और उनके तांडव नृत्य का अद्भुत वर्णन किया। इस भक्तिमय स्तुति को सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए। उन्होंने रावण को मुक्त कर दिया और उसे “रावण” नाम दिया, जिसका अर्थ है “भयंकर चीत्कार करने वाला”। उन्होंने उसे चंद्रहास नामक एक दिव्य खड्ग भी प्रदान किया।


क्या है भगवान शिव का तांडव?

तांडव एक दिव्य नृत्य है। यह नृत्य भगवान शिव द्वारा किया जाता है। यह केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है। इसके दो मुख्य स्वरूप हैं:

  1. आनंद तांडव: यह शिव का रचनात्मक नृत्य है। जब शिव प्रसन्न होते हैं, तो वे यह नृत्य करते हैं। यह नृत्य ब्रह्मांड में जीवन, आनंद और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  2. रौद्र तांडव: यह शिव का विनाशकारी नृत्य है। जब शिव क्रोधित होते हैं, तो वे यह नृत्य करते हैं। यह अधर्म, अहंकार और नकारात्मकता का नाश करने के लिए होता है। इसके बाद ही नई सृष्टि का मार्ग प्रशस्त होता है।

शिव तांडव स्तोत्र में इन दोनों ही स्वरूपों की झलक मिलती है। यह शिव की उस ऊर्जा का वर्णन करता है जो सृजन भी करती है और संहार भी।

संपूर्ण शिव तांडव स्तोत्र – संस्कृत श्लोक और हिंदी अर्थ

यह स्तोत्र कुल 17 श्लोकों का है। प्रत्येक श्लोक शिव के एक विशेष गुण और स्वरूप का वर्णन करता है। आइए, प्रत्येक श्लोक और उसके अर्थ को समझें।

श्लोक 1

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||

अर्थ: जिनकी जटारूपी वन से बहने वाली गंगाजल की धाराओं से उनका कंठ पवित्र है, जिनके गले में सर्पों की माला लटक रही है, और जो डमरू से डमट्-डमट् की ध्वनि निकालते हुए प्रचंड तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे भगवान शिव हम सबका कल्याण करें।

श्लोक 2

जटाकटासम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि |
धगद्धगद्धगज्ज््वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||

अर्थ: जिनकी जटाओं में अत्यंत वेग से घूमती हुई देव नदी गंगा की चंचल लहरें सुशोभित हो रही हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की धधकती ज्वालाएं हैं, और जिनके सिर पर बाल चंद्रमा विराजमान हैं, उन भगवान शिव में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

श्लोक 3

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर, स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि, क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||

अर्थ: पर्वतराज की पुत्री पार्वती के विलास में आनंदित होने वाले, जिनकी कृपा दृष्टि मात्र से बड़ी से बड़ी विपत्तियां दूर हो जाती हैं, और जो दिगंबर (दिशाओं को वस्त्र के रूप में धारण करने वाले) हैं, उन शिव में मेरा मन आनंदित रहे।

श्लोक 4

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा, कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे |
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे, मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

अर्थ: जिनकी जटाओं में लिपटे सर्प के फन की मणियों का पीला प्रकाश दिशा रूपी वधुओं के मुख पर कुमकुम की तरह लग रहा है, और जो मदमस्त हाथी के चर्म का वस्त्र धारण किए हुए हैं, उन सभी प्राणियों के पालक शिव में मेरा मन अद्भुत आनंद प्राप्त करे।

श्लोक 5

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर, प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः, श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||५||

अर्थ: इंद्र आदि सभी देवताओं द्वारा अर्पित पुष्पों की धूल से जिनके चरण धूसरित हो रहे हैं, जिनकी जटाएं सर्पराज की माला से बंधी हुई हैं, और जिन्होंने चंद्रमा को अपने शीश पर धारण किया है, वे भगवान शिव हमें चिरकाल के लिए संपत्ति प्रदान करें।

श्लोक 6

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा, निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ||६||

अर्थ: जिन्होंने अपने मस्तक की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, जिन्हें सभी देवगण नमस्कार करते हैं, और जिनकी जटाएं अमृत की किरणों वाले चंद्रमा से सुशोभित हैं, वे हमें कपाल धारण करने वाले शिव की संपत्ति प्रदान करें।

श्लोक 7

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल, द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक, प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ||७||

अर्थ: जिन्होंने अपने विकराल मस्तक की धधकती अग्नि में प्रचंड कामदेव की आहुति दे दी थी, और जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तनों पर चित्रकारी करने वाले एकमात्र शिल्पी हैं, उन तीन नेत्रों वाले भगवान शिव में मेरी प्रीति बनी रहे।

श्लोक 8

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्, कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः, कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ||८||

अर्थ: जिनका कंठ अमावस्या की रात की तरह नवीन मेघों की घटाओं से घिरा हुआ काला है, जो गजचर्म धारण करते हैं, और जो कलाओं के निधान चंद्रमा से सुशोभित हैं, वे जगत का भार धारण करने वाले शिव हमारा कल्याण करें।

श्लोक 9

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा, वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं, गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ||९||

अर्थ: जिनका कंठ खिले हुए नीलकमल की कालिमा के समान है, मैं उन शिव को भजता हूँ, जो कामदेव, त्रिपुरासुर, भव (संसार), दक्ष के यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर और यमराज का भी विनाश करने वाले हैं।

श्लोक 10

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी, रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं, गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ||१०||

अर्थ: जो सभी मंगलों की कलाओं की कलियों से बहने वाले रस के प्रवाह की मधुरता का आनंद लेने वाले भौंरे के समान हैं, मैं उन कामदेव, त्रिपुरासुर, संसार, यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर और यमराज का अंत करने वाले शिव को भजता हूँ।

श्लोक 11

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस, द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल, ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||

अर्थ: जिनके मस्तक पर धधकती हुई अग्नि, उनके सर्पों की श्वास के वेग से और भी प्रचंड हो रही है, और जो धिमित-धिमित की मंगल ध्वनि करने वाले मृदंग की ताल पर प्रचंड तांडव कर रहे हैं, उन भगवान शिव की जय हो।

श्लोक 12

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो, र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः, समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ||१२||

अर्थ: मैं कब उन सदाशिव का भजन करूंगा, जो पत्थर और सुंदर बिस्तर, सर्प और मोतियों की माला, मूल्यवान रत्न और मिट्टी के ढेले, मित्र और शत्रु, तिनके और कमल जैसी आंखों वाली प्रजा और महाराजा में समान भाव रखते हैं?

श्लोक 13

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्, विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः, शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||

अर्थ: मैं कब गंगा नदी के किनारे कुंज में निवास करता हुआ, अपनी बुरी भावनाओं को त्यागकर, सिर पर अंजलि धारण किए हुए, और मस्तक पर तिलक लगाकर ‘शिव’ मंत्र का उच्चारण करते हुए सुखी होऊंगा?

श्लोक 14

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसन्ततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ||१४||

अर्थ: जो व्यक्ति इस सर्वोत्तम स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ, स्मरण और उच्चारण करता है, वह सदा के लिए पवित्र हो जाता है। वह शीघ्र ही गुरु शिव की सच्ची भक्ति प्राप्त करता है और किसी अन्य गति को प्राप्त नहीं होता, क्योंकि शिव का ध्यान ही प्राणियों के मोह को दूर करने वाला है।

श्लोक 15

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं, यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां, लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ||१५||

अर्थ: जो व्यक्ति शाम के समय (प्रदोष काल में) पूजा के अंत में रावण द्वारा गाए गए इस शिव-पूजन स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान शंभु उसे रथ, गज, घोड़ों से युक्त स्थिर और सदा अनुकूल रहने वाली लक्ष्मी प्रदान करते हैं।


शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के चमत्कारी लाभ

इस स्तोत्र का पाठ केवल भक्ति प्रकट करने के लिए ही नहीं, बल्कि इसके कई भौतिक और आध्यात्मिक लाभ भी हैं।

  • आत्मविश्वास और निर्भयता: इसके शक्तिशाली शब्द और लय व्यक्ति के मन से भय को दूर करते हैं। यह आत्मविश्वास और साहस को बढ़ाता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: इसके पाठ से घर और आसपास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं।
  • शिव की कृपा प्राप्ति: यह भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल और शक्तिशाली तरीका है। नियमित पाठ से शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है।
  • धन और समृद्धि: स्तोत्र के अंतिम श्लोकों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इसका पाठ करने वाले को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यह धन-संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
  • कलात्मक क्षमताओं में वृद्धि: जो लोग नृत्य, संगीत और अन्य कलाओं से जुड़े हैं, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभकारी है। यह रचनात्मकता को बढ़ाता है।
  • ग्रह दोषों से मुक्ति: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इसके पाठ से शनि साढ़ेसाती, ढैय्या और कालसर्प दोष जैसे कठिन ग्रह दोषों के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
  • मानसिक शांति और एकाग्रता: स्तोत्र का लयबद्ध पाठ मन को शांत करता है। यह ध्यान और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने की सही विधि

अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ सही विधि से करना चाहिए।

  1. सही समय: इसका पाठ करने का सबसे उत्तम समय प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) होता है। इसके अलावा, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद भी इसका पाठ किया जा सकता है।
  2. स्वच्छता: पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  3. उच्चारण: शिव तांडव स्तोत्र में संस्कृत के कठिन शब्द हैं। इसलिए, सही उच्चारण पर विशेष ध्यान दें। आप शुरुआत में किसी ऑडियो की मदद ले सकते हैं। गलत उच्चारण से अर्थ बदल सकता है।
  4. एकाग्रता: शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठकर पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ पाठ करें।
  5. नृत्य मुद्रा में पाठ: यदि संभव हो, तो नृत्य मुद्रा में या कम से कम ऊर्जावान होकर इसका पाठ करें। इससे इसकी शक्ति का अधिक अनुभव होता है।
  6. नियमितता: इसका पूर्ण लाभ पाने के लिए नियमित रूप से पाठ करने का संकल्प लें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न 1: क्या महिलाएं शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?
उत्तर: हाँ, बिल्कुल। भक्ति में कोई लैंगिक भेद नहीं होता है। कोई भी महिला या पुरुष पूरी श्रद्धा के साथ इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 2: शिव तांडव स्तोत्र सुनने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
उत्तर: सुनने के लिए कोई विशेष समय की पाबंदी नहीं है। आप इसे सुबह, शाम या किसी भी समय सुन सकते हैं जब आपका मन शांत हो और आप भक्ति में लीन होना चाहते हों। प्रदोष काल में सुनना विशेष फलदायी माना जाता है।

प्रश्न 3: रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना क्यों की?
उत्तर: जब रावण ने अहंकार में कैलाश पर्वत को उठा लिया, तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया, जिससे रावण का हाथ नीचे दब गया। असहनीय पीड़ा से मुक्ति पाने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने इस स्तोत्र की रचना की।

प्रश्न 4: क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से सच में धन की प्राप्ति होती है?
उत्तर: हाँ, स्तोत्र के 15वें श्लोक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो प्रदोष काल में इसका पाठ करता है, उसे भगवान शंभु स्थिर लक्ष्मी प्रदान करते हैं। यह व्यक्ति के कर्मों के साथ-साथ उसकी मेहनत को सफलता में बदलने में मदद करता है।

प्रश्न 5: मुझे संस्कृत नहीं आती, तो मैं इसका पाठ कैसे करूं?
उत्तर: यदि आपको संस्कृत पढ़ने में कठिनाई होती है, तो आप इसे हिंदी में लिखे हुए रूप में पढ़ सकते हैं। इसके अलावा, आप प्रतिष्ठित गायकों द्वारा गाए गए ऑडियो को सुनकर उसके साथ-साथ दोहराने का प्रयास कर सकते हैं। भाव और श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

शिव तांडव स्तोत्र मात्र शब्दों का संग्रह नहीं है, यह ध्वनि और ऊर्जा का एक ऐसा ब्रह्मांड है जो भक्त को सीधे भगवान शिव से जोड़ता है। यह रावण के अहंकार से भक्ति तक के परिवर्तन की कहानी है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति किसी भी भूल को क्षमा करा सकती है और ईश्वर की कृपा दिला सकती है।

चाहे आप आध्यात्मिक शांति की तलाश में हों, जीवन की बाधाओं से लड़ रहे हों, या बस उस परम शक्ति से जुड़ना चाहते हों, यह स्तोत्र आपके लिए एक मार्गदर्शक है। इसका नियमित पाठ और श्रवण आपके जीवन में एक अद्भुत सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।


अब आपकी बारी!

इस दिव्य स्तोत्र पर आपके क्या विचार हैं? क्या आपने कभी इसके पाठ से मिली ऊर्जा को महसूस किया है? अपने अनुभव नीचे कमेंट्स में साझा करें और इस ज्ञान को अन्य शिव भक्तों तक पहुंचाने के लिए इस लेख को शेयर करें। ॐ नमः शिवाय!


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