Aakhir Tak – In Shorts
- भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद पर समझौता किया और पांच साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस में द्विपक्षीय बैठक की।
- इसके विपरीत, पाकिस्तान के साथ भारत का रुख कड़ा रहा, पुलवामा हमले के बाद से कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई है।
- चीन के साथ आर्थिक और कूटनीतिक लाभ हैं, जबकि पाकिस्तान के साथ आतंकवाद और आर्थिक अस्थिरता प्रमुख बाधाएँ बनी हुई हैं।
Aakhir Tak – In Depth
भारत और चीन के बीच संबंधों में एक नई राह खुली है, विशेषकर पूर्वी लद्दाख के सीमा विवाद पर समझौते के बाद। पिछले पाँच सालों में तनावपूर्ण रिश्ते अब धीरे-धीरे पटरी पर आ रहे हैं। हाल ही में रूस के कज़ान में हुई द्विपक्षीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नए सिरे से वार्ता की।
हालाँकि, चीन के साथ आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हुए हैं। 2023-24 में दोनों देशों के बीच व्यापार 118.4 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिससे चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण ने चीनी कंपनियों के निवेश की आवश्यकता को भी उजागर किया, ताकि भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी भागीदारी बढ़ा सके।
इसके विपरीत, पाकिस्तान के साथ रिश्तों में खटास बरकरार है। 2019 के पुलवामा हमले के बाद से पाकिस्तान के साथ कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई। इसके पीछे पाकिस्तान का आतंकवाद को अपनी नीति का हिस्सा बनाना और सीमित आर्थिक संभावनाएं हैं।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत जारी है। वहीं पाकिस्तान द्वारा निरंतर आतंकवाद के निर्यात ने दोनों देशों के बीच विश्वासघात को गहरा किया है। हालाँकि चीन के साथ विवाद फिर से उभर सकते हैं, लेकिन इस समय दोनों देशों के मजबूत नेतृत्व ने रिश्तों को संभालने का अवसर दिया है।
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