परिचय
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने शहीदी दिवस पर अपनी गृह नजरबंदी का दावा किया है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर अपने आवास के बंद गेट की तस्वीरें साझा की हैं। यह दावा क्षेत्र में बढ़ते तनाव के बीच आया है।
शहीदी दिवस का पृष्ठभूमि
कश्मीर में शहीदी दिवस 13 जुलाई को मनाया जाता है। यह 1931 में महाराजा की सेना द्वारा मारे गए 22 प्रदर्शनकारियों के बलिदान को याद करता है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता मज़ार-ए-शुहदा में श्रद्धांजलि देने आते हैं।
महबूबा मुफ्ती का आरोप
महबूबा मुफ्ती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी स्थिति साझा की। उन्होंने अपने आवास के बंद गेट की तस्वीरें पोस्ट कीं। मुफ्ती का दावा है कि उन्हें मज़ार-ए-शुहदा जाने से रोकने के लिए ऐसा किया गया।
मुफ्ती का बयान
अपने पोस्ट में मुफ्ती ने कहा, “मेरे घर के गेट फिर से बंद कर दिए गए हैं ताकि मुझे मज़ार-ए-शुहदा जाने से रोका जा सके – जो कश्मीर के प्रतिरोध और अत्याचार, दमन और अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। हमारे शहीदों का बलिदान इस बात का सबूत है कि कश्मीरियों की आत्मा को कुचला नहीं जा सकता।”
सरकार की आलोचना
मुफ्ती ने केंद्र सरकार पर कश्मीरियों की सामूहिक यादों को मिटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया। उन्होंने 5 अगस्त 2019 की घटनाओं का संदर्भ दिया, जब जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया गया था। मुफ्ती ने कहा, “5 अगस्त 2019 को, जम्मू-कश्मीर को विखंडित, कमजोर और हमारे लिए पवित्र हर चीज से वंचित कर दिया गया। ऐसे हमले केवल हमारे अधिकारों और गरिमा के लिए लड़ाई जारी रखने के हमारे संकल्प को मजबूत करेंगे।”
उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी अपनी निराशा व्यक्त की। उन्होंने नेताओं और नागरिकों पर लगाए गए प्रतिबंधों को उजागर किया। अब्दुल्ला ने कहा, “एक और 13 जुलाई, शहीदी दिवस, एक और बंद गेट का दौर… देश के बाकी हिस्सों में इन लोगों को सम्मानित किया जाता, लेकिन जम्मू-कश्मीर में प्रशासन इन बलिदानों को नजरअंदाज करना चाहता है। यह आखिरी साल है जब वे ऐसा कर पाएंगे। इंशाल्लाह, अगले साल हम 13 जुलाई को इस दिन को जितनी गरिमा और सम्मान के साथ मनाएंगे।”
सरकार का रुख
सरकार ने इन आरोपों का आधिकारिक रूप से जवाब नहीं दिया है। शहीदी दिवस पर की गई कार्रवाइयाँ व्यापक सुरक्षा उपायों का हिस्सा हैं। हालाँकि, इन उपायों को अक्सर राजनीतिक अभिव्यक्ति को दबाने के रूप में देखा जाता है।
ऐतिहासिक संदर्भ
शहीदी दिवस का कश्मीर के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। 1931 की घटनाओं ने क्षेत्र के निरंकुश शासन के खिलाफ संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। यह दिन प्रतिरोध और न्याय की खोज का प्रतीक है।
राजनीतिक प्रभाव
शहीदी दिवस पर गृह नजरबंदी के आरोप जम्मू-कश्मीर में चल रहे राजनीतिक तनाव को उजागर करते हैं। क्षेत्र के नेता केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी असहमति व्यक्त करते रहते हैं। ये घटनाएँ क्षेत्र की राजनीतिक परिदृश्य की जटिलताओं को दर्शाती हैं।
निष्कर्ष
शहीदी दिवस पर महबूबा मुफ्ती के गृह नजरबंदी के दावे ने कश्मीर में चल रहे राजनीतिक विमर्श को और बढ़ा दिया है। जैसे-जैसे नेता और नागरिक इन घटनाओं से उत्पन्न चुनौतियों को नेविगेट करते हैं, न्याय और मान्यता के लिए संघर्ष एक केंद्रीय विषय बना रहता है।
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