अवैध प्रवासियों: असम में निर्वासन की चुनौती

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आख़िर तक – एक नज़र में

सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को विदेशियों को निर्वासित करने का आदेश दिया है। अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें निर्वासित करना एक चुनौती है। बांग्लादेश के साथ संबंध तनावपूर्ण होने से निर्वासन और भी मुश्किल हो गया है। कई विदेशी सालों से असम के डिटेंशन कैंपों में बंद हैं। भारत की विदेश नीति और कानूनी प्रक्रियाएं निर्वासन में बाधा डालती हैं।

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आख़िर तक – विस्तृत समाचार

असम में अवैध प्रवासियों का मुद्दा एक जटिल चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को अवैध घोषित विदेशियों को तुरंत निर्वासित करने का आदेश दिया है, लेकिन वास्तविकता बहुत अलग है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जिस तरह से अवैध आप्रवासियों को देश से निकाला, वैसा भारत में संभव नहीं है।

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असम, भारत में अवैध आव्रजन की बहस का केंद्र है। यहां समस्या केवल कानून लागू करने की नहीं है, बल्कि कानूनी, राजनयिक और रसद संबंधी चुनौतियों का जाल है। सुप्रीम कोर्ट विदेशी घोषित लोगों को लंबे समय तक हिरासत में रखने से परेशान है। इन बंदियों को उनकी नागरिकता साबित करने में दिक्कत आ रही है, क्योंकि भारत बांग्लादेश की मदद के बिना उन्हें निर्वासित नहीं कर सकता।

बांग्लादेश इन लोगों को तभी स्वीकार करेगा, जब उनके बांग्लादेशी नागरिक होने का ठोस सबूत होगा। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद भारत और बांग्लादेश के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं, जिससे निर्वासन और भी मुश्किल हो गया है।

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इन बंदियों की पहचान को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। असम के विदेशी न्यायाधिकरण नागरिकता निर्धारित करने का काम करते हैं। विदेशी न्यायाधिकरण व्यक्तियों को उनके मूल देश का निश्चित प्रमाण दिए बिना विदेशी घोषित करते हैं। सत्यापन की जिम्मेदारी भारत सरकार पर है।

1985 के असम समझौते के तहत, अवैध आप्रवासियों को तुरंत निर्वासित किया जाना है। कई बंदियों के पास यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि वे बांग्लादेशी हैं। अगर वे बांग्लादेशी होने की बात स्वीकार भी करते हैं, तो वे अपना पता नहीं बता पाते, जिससे बांग्लादेश सरकार के साथ समन्वय करना मुश्किल हो जाता है।

असम सरकार ने 2019 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) प्रकाशित किया था। इसका उद्देश्य अवैध प्रवासियों की पहचान करना था, लेकिन इसमें 1.9 मिलियन से अधिक लोग बाहर हो गए, जिससे इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठे। विदेशी न्यायाधिकरण भी मनमाने नियमों का पालन करते हैं, जिससे लोगों को कानूनी प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता।

निर्वासन की रसद भी एक चुनौती है। इसमें विदेश मंत्रालय और संबंधित देश की सरकार शामिल होती है। असम सरकार का काम केवल मामलों को विदेश मंत्रालय को भेजना है, जिसमें अक्सर देरी होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में कहा कि अनिश्चितकाल तक हिरासत रखना असंवैधानिक है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला दिया, जो हर व्यक्ति को जीवन और गरिमा का अधिकार देता है।

अवैध प्रवासियों के लिए माटिया ट्रांजिट कैंप एक उदाहरण है। यह प्रशासनिक विफलता और मानवाधिकार उल्लंघन का प्रतीक बन गया है। यहां रहने वालों को खराब स्वच्छता, घटिया भोजन और भीड़भाड़ का सामना करना पड़ता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने सख्त आव्रजन नीतियां लागू कीं। भारत में एक सुसंगत आव्रजन नीति की कमी है। ट्रम्प ने एकतरफा कार्रवाई की, जबकि भारत प्रक्रियात्मक देरी और राजनयिक बाधाओं में फंसा हुआ है।

आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें

असम में अवैध प्रवासियों की समस्या एक जटिल मुद्दा है, जो कानूनी, राजनयिक और मानवाधिकारों से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने निर्वासन की तात्कालिकता पर जोर दिया है। बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध इस प्रक्रिया को और जटिल बनाते हैं। क्या भारत एक ऐसी आव्रजन नीति बना सकता है जो उसके संवैधानिक मूल्यों और जटिल दुनिया की मांगों को संतुलित कर सके?


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आख़िर तक मुख्य संपादक
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