सुप्रीम कोर्ट ने SCs, STs के लिए कोटा के भीतर कोटा को मंजूरी दी

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एक महत्वपूर्ण निर्णय में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने SCs (अनुसूचित जातियाँ) और STs (अनुसूचित जनजातियाँ) के भीतर उप-श्रेणीकरण की वैधता की पुष्टि की है। यह निर्णय 2005 के फैसले को पलटता है, जिसमें राज्य सरकारों को इन समूहों के भीतर उप-श्रेणियाँ बनाने से प्रतिबंधित किया गया था। कोर्ट का 6:1 का निर्णय आरक्षण के आवंटन के तरीके पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

ऐतिहासिक संदर्भ और कोर्ट का निर्णय

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संविधान पीठ, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने की, ने इस मामले की समीक्षा की कि क्या SCs और STs के भीतर उप-श्रेणीकरण की अनुमति है। पूर्व के 2005 के निर्णय ने इन श्रेणियों के लिए उप-श्रेणियाँ बनाने पर रोक लगाई थी। हालांकि, वर्तमान पीठ ने उप-श्रेणीकरण की अनुमति दी और पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति अधिनियम, 2006 और तमिलनाडु अरंथथियर्स अधिनियम को मान्यता दी।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि उप-श्रेणीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने स्वीकार किया कि SCs और STs के सदस्य अक्सर प्रणालीगत भेदभाव का सामना करते हैं, जो उनकी प्रगति को बाधित करता है। इसलिए, उप-श्रेणियाँ बनाने से इन विषमताओं को संबोधित करने में मदद मिल सकती है।

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न्यायसंगत आधार की आवश्यकता

कोर्ट ने कहा कि किसी भी उप-श्रेणीकरण को मात्रात्मक और प्रदर्शनीय डेटा द्वारा समर्थन प्राप्त होना चाहिए। राज्यों को उप-श्रेणीकरण की आवश्यकता को साबित करने के लिए ठोस सबूत प्रदान करने होंगे, क्योंकि उनके निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगे। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बताया कि राज्य राजनीतिक सुविधा के आधार पर स्वेच्छा से निर्णय नहीं ले सकते।

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नीति और क्रीमी लेयर

न्यायमूर्ति बीआर गवई ने बहुमत के निर्णय से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे SCs और STs के भीतर अधिक पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा कि केवल कुछ लोगों को ही आरक्षण का लाभ मिलता है और SCs और STs के भीतर कुछ समूहों ने लंबे समय से अत्यधिक उत्पीड़न का सामना किया है।

न्यायमूर्ति गवई ने यह भी कहा कि राज्य को SCs और STs के भीतर “क्रीमी लेयर” की पहचान के लिए एक नीति बनानी चाहिए। यह दृष्टिकोण वास्तविक समानता सुनिश्चित करने और आरक्षण के प्रभावी वितरण के लिए महत्वपूर्ण है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने इस विचार का समर्थन किया और कहा कि क्रीमी लेयर सिद्धांत SCs के लिए भी लागू होना चाहिए, जैसा कि OBCs के लिए है।

असहमति की राय

न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने अपनी असहमति की राय में कहा कि राज्यों द्वारा SCs और STs के उप-श्रेणीकरण से संविधान के अनुच्छेद 341 का उल्लंघन होता है। अनुच्छेद 341 राष्ट्रपति को SCs और STs की सूची तैयार करने का अधिकार देता है, और इस सूची में किसी भी परिवर्तन को केवल संसद के कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने चेतावनी दी कि उप-श्रेणीकरण से राष्ट्रपति की सूची के भीतर असमानता उत्पन्न हो सकती है, जिससे अन्य वर्गों को लाभ से वंचित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आरक्षण नीति के ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। उप-श्रेणीकरण की अनुमति देकर, कोर्ट का उद्देश्य SCs और STs के भीतर अधिक पिछड़े समूहों की विशिष्ट चुनौतियों को संबोधित करना है। हालांकि, न्यायसंगत डेटा प्रदान करने और क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीतियों पर जोर देने से यह स्पष्ट होता है कि आरक्षण लाभार्थियों के सही चयन के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।


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