पितृ स्तोत्र: पितरों को प्रसन्न करने का दिव्य मंत्र

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पितृ स्तोत्र: पितरों को प्रसन्न करने का दिव्य मंत्र

पितृ स्तोत्र: पितरों को प्रसन्न करने का दिव्य मंत्र

पितृ स्तोत्र एक महत्वपूर्ण मंत्र है जिसका उपयोग पितरों को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह दिव्य मंत्र ध्यान और पूजन में उपयोगी होता है। यह स्तोत्र पितरों की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा पाने का साधन है। पितृ स्तोत्र में पितरों के विभिन्न रूपों, देवताओं, ग्रहों, और तत्वों की स्तुति की गई है, जो हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं।

इस स्तोत्र में बताया गया है कि किस प्रकार पितरों की पूजा और ध्यान से जीवन के कष्ट दूर हो सकते हैं। यह मंत्र केवल पितरों के लिए ही नहीं, बल्कि सप्तर्षियों, देवताओं, ग्रहों, और अन्य दिव्य शक्तियों की आराधना के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसका नियमित जाप जीवन में शांति, समृद्धि, और पितरों का आशीर्वाद लाता है।

पितृ स्तोत्र में “अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्” जैसे मंत्रों का उच्चारण हमें दिव्य चक्षुओं से पितरों की कृपा प्राप्त करने में सहायता करता है। साथ ही, इसमें सूर्य, चंद्र, अग्नि, वायु और अन्य प्राकृतिक तत्वों की भी स्तुति की जाती है, जो जीवन में संतुलन और स्थिरता लाते हैं।

यह स्तोत्र प्राचीन वैदिक परंपराओं में गहरा महत्व रखता है, और इसे विधिपूर्वक जपने से व्यक्ति को पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। जो लोग पितृ पक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं, उनके लिए यह मंत्र अत्यधिक फलदायी होता है।

पितृ स्तोत्र (Pitru Stotra)


अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥

मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि: ॥

प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ॥

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ॥

तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज: ॥


॥ इति पितृ स्त्रोत समाप्त ॥


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