आख़िर तक – इन शॉर्ट्स
- प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष, बिबेक देबरॉय का शुक्रवार को निधन हो गया।
- देबरॉय ने भारतीय आर्थिक नीतियों और क्लासिकल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान दिया।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देबरॉय के योगदान की सराहना करते हुए उन्हें एक महान विद्वान बताया।
आख़िर तक – इन डेप्थ
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और विद्वान, बिबेक देबरॉय का 69 वर्ष की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया। देबरॉय, जो प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष रहे, ने भारत की आर्थिक नीतियों और क्लासिकल भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके मार्गदर्शन ने आर्थिक सुधारों और विकास रणनीतियों में अहम भूमिका निभाई, जिससे भारत की आधुनिक आर्थिक संरचना को मजबूती मिली।
1955 में जन्मे देबरॉय ने कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में आगे की पढ़ाई की। उनकी आर्थिक समझ ने उन्हें पश्चिमी और भारतीय आर्थिक नीतियों के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान किया, जिससे वह भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्ध चर्चा में एक प्रमुख योगदानकर्ता बने।
आर्थिक नीतियों में योगदान
देबरॉय ने कई महत्वपूर्ण आर्थिक नीति भूमिकाएं निभाईं। EAC-PM की अध्यक्षता से पहले, वह नीति आयोग के सदस्य रहे, जहां उन्होंने भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए सुधारों का सुझाव दिया। उनके सुझावों ने दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्कों में से एक की दक्षता को बढ़ावा देने में मदद की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “डॉ. बिबेक देबरॉय जी एक महान विद्वान थे, जो अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति और अध्यात्म जैसे विविध क्षेत्रों में निपुण थे। उनकी रचनाएं भारत की बौद्धिक धरोहर में एक अमिट छाप छोड़ गई हैं।”
बहुमुखी विद्वान और दूरदर्शी अर्थशास्त्री
आर्थिक योगदान के अलावा, देबरॉय ने भारतीय महाकाव्यों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। उनकी कृतियों ने महाभारत और भगवद गीता जैसी कृतियों को वैश्विक पाठकों तक पहुँचाया, जिससे भारतीय ज्ञान की प्रासंगिकता और प्राचीन मूल्यों को आधुनिक व्याख्या के साथ जोड़ा गया।
सितंबर में, देबरॉय ने पुणे स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया था। अपने जीवनकाल में, देबरॉय ने 50 से अधिक पुस्तकों की रचना और सह-लेखन किया और कई अकादमिक पत्र लिखे। 2015 में उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
देबरॉय ने एक ऐसे नेता के रूप में विरासत छोड़ी जो आर्थिक नीति और क्लासिकल विद्वता को जोड़ने में माहिर थे। उनके कार्यों का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर भी महसूस किया जाएगा।
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