आख़िर तक – इन शॉर्ट्स
- दूध उबालने की आदत सांस्कृतिक रूप से गहरी जड़ें रखती है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार पैकेज्ड दूध को उबालने की ज़रूरत नहीं होती।
- पाश्चुरीकरण के बाद दूध में मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, जिससे उबालने की आवश्यकता कम हो जाती है।
- अधिक उबालने से दूध के पोषक तत्व, जैसे कि विटामिन C और B, कम हो सकते हैं और प्रोटीन का असर भी घट सकता है।
आख़िर तक – इन डेप्थ
भारत में दूध उबालने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। पुराने समय में दूध सीधे डेयरी से लिया जाता था और उसमें मौजूद बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने के लिए उबालना आवश्यक था। हालाँकि, आजकल अधिकांश पैकेज्ड दूध पहले से ही पाश्चुरीकृत होता है, जिसका मतलब है कि इसे उच्च तापमान पर पहले ही गरम किया जा चुका है ताकि हानिकारक जीवाणु समाप्त हो सकें।
विशेषज्ञों का कहना है कि पैकेज्ड दूध को उबालने की ज़रूरत नहीं होती। इंड्राप्रस्थ अपोलो अस्पताल के डॉ. राकेश गुप्ता बताते हैं, “पाश्चुरीकृत दूध पहले से ही सुरक्षित होता है। इसे उबालने की कोई अतिरिक्त ज़रूरत नहीं होती, खासकर अगर पैकेट ठीक से सील है।” उबालने से दूध में मौजूद प्रोटीन के टूटने की प्रक्रिया शुरू होती है, जिससे वह पचने में आसान हो जाता है। हालाँकि, अधिक उबालने से विटामिन C और B की मात्रा कम हो सकती है, और दूध में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया भी समाप्त हो सकते हैं।
हालांकि, कुछ लोग दूध को उबालना अभी भी पसंद करते हैं, क्योंकि यह एक सांस्कृतिक आदत बन चुकी है। साथ ही, लोगों को यह भी लगता है कि उबालने से दूध में किसी भी प्रकार की मिलावट की संभावना खत्म हो जाती है। ऐसे लोग भी हैं जो स्वाद और गाढ़ेपन के लिए उबला हुआ दूध पसंद करते हैं। हालाँकि, जब पैकेज्ड दूध में कोई भी बाहरी गंदगी या नुकसान नजर आता है, तो उसे उबालना सही हो सकता है।
पाश्चुरीकरण प्रक्रिया में, दूध को 72°C पर 15-20 सेकंड के लिए गरम किया जाता है ताकि सभी हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाएं। यह प्रक्रिया दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मदद करती है और इसे उबालने की आवश्यकता को खत्म कर देती है। हालाँकि, अगर दूध के पैकेट को ठीक से ठंडा नहीं रखा गया है, या पैकेट क्षतिग्रस्त है, तो उबालने से दूध को अतिरिक्त सुरक्षा मिल सकती है।
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