एक राष्ट्र एक चुनाव पर टॉप वकीलों की राय – गणराज्य संकट या कदम आगे?

आख़िर तक
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सरकार ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' रिपोर्ट पर खर्च किए 95,344 रुपये

आख़िर तक – एक नज़र में:

  1. “एक राष्ट्र एक चुनाव” का प्रस्ताव भारत में चुनावों के सिंक्रोनाइज़ेशन के बारे में है।
  2. वरिष्ठ वकील, हरिश साल्वे और अभिषेक मनु सिंघवी, इस मुद्दे पर भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं।
  3. साल्वे ने संविधान में संघवाद के उल्लंघन के आरोपों को निराधार बताया।
  4. सिंघवी ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में देखा, जो राष्ट्रीय और राज्य मुद्दों के भेद को मिटा सकता है।
  5. विशेषज्ञों ने इस प्रस्ताव पर समयबद्ध तरीके से विचार और चर्चा की जरूरत जताई है।

आख़िर तक – विस्तृत समाचार:

“एक राष्ट्र एक चुनाव” – एक विषम दृष्टिकोण

वकीलों की राय
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ (ONOE) प्रस्ताव ने भारतीय राजनीति और संविधान को लेकर गंभीर बहस का विषय बन गया है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य सभी चुनावों को एक ही समय पर आयोजित करना है, जिससे चुनावों का क्रियान्वयन सरल होगा और लागत घटेगी। हरिश साल्वे और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मुद्दे पर अपने विचार साझा किए हैं, और दोनों ने इसके संभावित प्रभावों पर विस्तृत चर्चा की।

संविधान पर प्रभाव
हरिश साल्वे, जो इस मुद्दे पर राम नाथ कोविंद द्वारा गठित समिति के सदस्य भी रहे हैं, ने संघवाद के उल्लंघन के आरोपों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संघवाद में केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का बंटवारा स्वाभाविक रूप से हो सकता है, और इसे कोई ठोस उल्लंघन नहीं माना जा सकता। इसके विपरीत, सिंघवी ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ मानते हुए आरोप लगाया कि यह प्रस्ताव स्वतंत्र रूप से चुने गए सरकारी अधिकारियों की भूमिका को कम कर सकता है।

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सम्पूर्ण मतदान प्रणाली और खर्च पर चर्चा
आर्थिक दृष्टिकोण से, साल्वे ने चुनावों को रोकने वाली अनावश्यक बाधाओं के प्रभाव को उजागर किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक चुनाव की लागत तकरीबन ₹3,000-₹5,000 करोड़ तक हो सकती है, और इन चुनावों से देश की अर्थव्यवस्था में 1% का नुकसान हो सकता है। दूसरी ओर, सिंघवी ने इस बात पर सवाल उठाया कि क्या इस प्रस्ताव से वाकई में अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा लाभ होने वाला है, क्योंकि चुनावों की संरचना लगभग वैसी की वैसी रहती है।

लोकतंत्र पर असर
साल्वे ने आलोचकों के आरोपों का जवाब दिया कि राज्य विधानसभा को पांच साल के लिए संरक्षित नहीं किया जा सकता। सिंघवी ने इस प्रस्ताव पर गंभीर सवाल उठाए और राज्य सरकारों की स्वतंत्रता के लिए इसे खतरा बताया। उनका कहना था कि राज्यों को बिना उनकी सहमति के इस मुद्दे पर कोई निर्णय लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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आगे का रास्ता
हरिश साल्वे ने योजना को लागू करने के लिए व्यवस्थित और समयबद्ध दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित किया। उनके अनुसार यह प्रक्रिया तीन से पांच साल तक लंबी हो सकती है। सिंघवी ने भी सरकार की केंद्रित शक्ति की आलोचना करते हुए कहा कि इससे भाजपा का एकराज्य शासन स्थापित हो सकता है।

आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें:

  • “एक राष्ट्र एक चुनाव” प्रस्ताव पर विशेषज्ञों ने संघवाद, लोकतंत्र, और अर्थव्यवस्था पर गहरे सवाल उठाए हैं।
  • हरिश साल्वे ने संविधान के अनुसार इसे स्वीकार्य बताया, जबकि अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे लोकतंत्र की नींव के लिए खतरनाक माना।
  • इसके कार्यान्वयन के लिए तीन से पाँच साल की समयावधि आवश्यक हो सकती है।

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आख़िर तक मुख्य संपादक
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