आख़िर तक – इन शॉर्ट्स
- खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने पाकिस्तान के एक नागरिक, मोहम्मद सलमान यूनुस, के साथ अमेरिका में गठजोड़ किया है।
- पन्नू और यूनुस ने मिलकर ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (SFJ) और ‘कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट’ (KKRF) की स्थापना की, जो पाकिस्तान की ISI द्वारा समर्थित है।
- पश्चिमी देशों की चुप्पी ने इन संगठनों को और मज़बूती दी है, जिससे वे बिना किसी रोक-टोक के भारत के खिलाफ अपनी गतिविधियाँ जारी रखे हुए हैं।
आख़िर तक – इन डेप्थ
गुरपतवंत सिंह पन्नू, जो खालिस्तानी आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा है और भारत में प्रतिबंधित संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (SFJ) का नेतृत्व करता है, पाकिस्तान के समर्थन से अपनी गतिविधियाँ अमेरिका में आसानी से संचालित करता है। यह संगठन भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल है और विभिन्न प्लेटफार्मों पर हिंसा भड़काता है। हालाँकि, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है, जिससे यह संगठन और मजबूत हो रहा है।
पन्नू का पाकिस्तान से गठजोड़
पन्नू का पाकिस्तान से गठजोड़ तब और स्पष्ट हो गया जब यह जानकारी सामने आई कि ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ की स्थापना पाकिस्तान के नागरिक मोहम्मद सलमान यूनुस की मदद से की गई थी। यह संगठन एक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में पंजीकृत है और पन्नू और यूनुस ने इसके ज़रिए भारत-विरोधी गतिविधियों को आगे बढ़ाया है। उन्होंने ‘कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट’ (KKRF) की भी शुरुआत की, जो पाकिस्तान की ISI के समर्थन से चलता है और इसका मकसद भारत को अस्थिर करना है।
ISI और अलगाववादी गठजोड़
KKRF का सीधा संबंध एक और पाकिस्तान समर्थित संगठन ‘फ्रेंड्स ऑफ कश्मीर’ (FOK) से है, जिसका नेतृत्व ग़ज़ाला हबीब कर रही हैं। ISI के सहयोग से यह संगठन अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाता है। 2020 में, FOK ने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों और पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के साथ एक वेबिनार आयोजित किया, जिसमें खालिस्तान और कश्मीर मुद्दों को बढ़ावा दिया गया। इसके बाद भी, पश्चिमी देशों ने इन संगठनों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की।
ISI और खालिस्तान का पुराना एजेंडा
पाकिस्तान की ISI का खालिस्तानी अलगाववादी समूहों के साथ गठजोड़ नया नहीं है। 1980 के दशक से यह एजेंडा भारत की एकता को तोड़ने के लिए चलाया जा रहा है। पन्नू और उनके समर्थकों ने ‘खालिस्तान रेफरेंडम’ जैसे आयोजनों के ज़रिए इस आंदोलन को नई दिशा दी है। बावजूद इसके, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों ने इन चरमपंथियों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इन देशों की चुप्पी ने इन संगठनों को और मज़बूत किया है।
Discover more from पाएं देश और दुनिया की ताजा खबरें
Subscribe to get the latest posts sent to your email.