तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अपने भाषण के दौरान जम्मू और कश्मीर का उल्लेख नहीं किया। यह घटना, जिसे भारत के लिए कूटनीतिक विजय माना जा रहा है, पाकिस्तान को झटका देती है। यह संभावित बदलाव तुर्की की BRICS समूह में शामिल होने की आकांक्षाओं से जुड़ा हो सकता है और भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में संकेत देता है।
कश्मीर का उल्लेख न करना तुर्की के रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है। एर्दोगन का यह कदम तब आया है जब तुर्की एक नए समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। फरवरी में, तुर्की ने पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर मुद्दे पर चर्चा की थी।
भारत ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, भारत के पहले सचिव अनुपमा सिंह ने कहा, “हम तुर्की की टिप्पणी पर खेद व्यक्त करते हैं।” पाकिस्तान के लिए यह बदलाव बहुत गंभीर है, जो एर्दोगन के समर्थन पर निर्भर था।
तुर्की की AK पार्टी के एक प्रवक्ता ने कहा, “हमारे राष्ट्रपति ने कई बार कहा है कि हम BRICS के सदस्य बनना चाहते हैं।” BRICS का यह नया गठन महत्वपूर्ण है, जिसमें कई नए देश शामिल हुए हैं।
यहां तक कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भी कश्मीर का उल्लेख नहीं किया। उन्होंने गाज़ा के हालात पर चर्चा की।
पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक मलीहा लोधी ने भी एर्दोगन के इस बदलाव को ध्यान में रखा, कहा, “पिछले पांच वर्षों में एर्दोगन ने UN में कश्मीर का उल्लेख किया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।”
इसलिए, एर्दोगन द्वारा कश्मीर का उल्लेख न करना BRICS में शामिल होने की आकांक्षा के कारण हो सकता है। पाकिस्तान के लिए यह एक गंभीर झटका है क्योंकि उसने अपने करीबी सहयोगी को खो दिया है।
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज़ जहरा बलोच ने कहा, “हमें एक बयान से अनावश्यक निष्कर्ष नहीं निकालने चाहिए।”
तुर्की की इस स्थिति में बदलाव की संभावना को देखते हुए, यह साफ है कि एर्दोगन का रुख पाकिस्तान के लिए एक चुनौती बन गया है।
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