आख़िर तक – एक नज़र में
- वन नेशन वन इलेक्शन बिल लोकसभा में पेश किया गया।
- प्रधानमंत्री मोदी ने इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की सिफारिश की।
- अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि इस पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए।
- विपक्षी पार्टियों ने बिल का जमकर विरोध किया।
- कांग्रेस, सपा, और टीएमसी समेत कई दलों ने बिल पर आपत्ति जताई।
आख़िर तक – विस्तृत समाचार
वन नेशन वन इलेक्शन: क्या है मामला?
17 दिसंबर को लोकसभा में वन नेशन वन इलेक्शन बिल पेश किया गया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संविधान (129वां संशोधन) बिल, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून संशोधन बिल, 2024 पेश किया। इस बिल का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करना है।
पीएम मोदी का सुझाव
लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट मीटिंग में बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि इस विषय पर हर स्तर पर गहराई से चर्चा होनी चाहिए।
विपक्ष का विरोध
बिल पेश होने के बाद विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। एनसीपी की सुप्रिया सुले, कांग्रेस के मनीष तिवारी, टीएमसी के कल्याण बनर्जी, सपा के धर्मेंद्र यादव, और डीएमके के टीआर बालू ने इस पर आपत्ति जताई।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह बिल संविधान की बुनियादी संरचना को चुनौती देता है। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने भाजपा पर तानाशाही थोपने का आरोप लगाया और कहा कि यह बिल भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा।
सरकार की प्रतिक्रिया
कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि, “वन नेशन वन इलेक्शन बिल पर की जा रही आपत्तियां पूरी तरह से राजनीतिक हैं।”
समर्थन और विरोध का गणित
32 पार्टियों ने इस बिल का समर्थन किया है, जबकि 15 दलों ने विरोध किया। वाईएसआरसीपी जैसे दल भी इस बिल के समर्थन में आ गए हैं।
आख़िर तक – याद रखने योग्य बातें
- वन नेशन वन इलेक्शन बिल संसद में जेपीसी को भेजने की तैयारी।
- विपक्ष ने बिल को संविधान के खिलाफ बताया।
- 32 पार्टियां समर्थन में, 15 विरोध में।
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