सेबी अध्यक्ष पर हितों के टकराव के आरोप

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कांग्रेस ने हाल ही में सेबी अध्यक्ष माधबी पुरी बुच पर हितों के टकराव का गंभीर आरोप लगाया है, जिसमें कहा गया है कि वह सेबी में कार्यरत रहते हुए भी ICICI बैंक से भुगतान ले रही थीं। कांग्रेस का दावा है कि बुच ने 2017 से सेबी में शामिल होने के बाद ICICI से 16.8 करोड़ रुपये की आय प्राप्त की है, जो कि सेबी से प्राप्त 3.3 करोड़ रुपये की तुलना में बहुत अधिक है।

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेरा ने बुच की आलोचना करते हुए कहा कि सेबी में उच्च पद पर रहते हुए भी वह ICICI बैंक से वेतन और ESOP लेती रहीं, जो कि सेबी के नियम 54 का उल्लंघन है। खेरा ने जोर देकर कहा कि इस तरह के काम नियामक भूमिकाओं की साख को कमजोर करते हैं और यह दर्शाते हैं कि ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों का निजी क्षेत्र से वित्तीय संबंध नहीं होना चाहिए।

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माधबी बुच ICICI से 1989 से जुड़ी हुई हैं और 2009 से 2011 तक ICICI सिक्योरिटीज की CEO रहीं। कांग्रेस का आरोप है कि 2017 में सेबी के पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद भी उन्होंने ICICI से नियमित आय प्राप्त की, जिसमें वेतन और ESOP शामिल हैं। ये भुगतान 2022 में सेबी अध्यक्ष बनने तक जारी रहे।

ICICI बैंक ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद बुच को कोई वेतन या ESOP नहीं दिया गया, सिवाय उनके सेवानिवृत्ति लाभ के। बैंक ने स्पष्ट किया कि बुच ने बैंक के नियमों के तहत अपने ESOP का उपयोग किया, जो सेवानिवृत्त कर्मचारियों को ESOP के अधिकार का 10 साल तक उपयोग करने की अनुमति देता है।

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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार पर आरोपों को नजरअंदाज करने की आलोचना की और नियामक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के मानदंडों पर सवाल उठाए। उन्होंने बुच की नियुक्ति और आरोपों पर सरकार की प्रतिक्रिया की पारदर्शिता की मांग की।

जैसे-जैसे यह विवाद आगे बढ़ रहा है, नियामक निकायों की साख और उनकी स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। सेबी और सरकार की प्रतिक्रिया इन चिंताओं को दूर करने और नियामक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होगी।

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